एक गलती, हजार बातें!

फेल होकर अण्णा हजारे को समझ आया कि वो पहले पास थे और एक ही गलती से उनके विरोध में हजार बातें हो गईं। अण्णा का आंदोलन सही था और लोग भ्रष्टाचार से परेशान हैं, इसलिए उनके साथ हो गए थे, लेकिन लोगों की कसौटी पर खरा उतरना भी जरूरी है।लोग अण्णा को चाहते थे, न कि उनकी टीम को। उनकी टीम, जो उन्होंने कल भंग की, यदि उसे पहले ही चलता कर देते, तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती कि मुंह छुपाने के लाले पड़ जाएं और अनशन तुड़वाने के लिए खुद ही पहल करनी पड़े। कल अण्णा ने माना कि बार-बार का अनशन गलती थी। यह पहले मान लेते तो सरकार पर उनकी चमक और धमक दोनों ही बनी रहती। अब कलई खुल जाने पर आगे भी कुछ करने लायक न रहे। ‘शेर आया- शेर आया’ बना रहता तो शायद सरकार डर कर कुछ न कुछ करती रहती। जब शेर आ ही गया तो सरकार ने उसे पिंजरे में बंद कर हमेशा के लिए टंटा खत्म कर दिया।अण्णा का इस तरह फेल हो जाना, वाकई नुकसान है कि इससे सरकारें बारह माथे की हो जाती हैं, उन्हें किसी का भय नहीं रहता। अब फिर ऐसा आंदोलन खड़ा करने में दस-बीस बरस का इंतजार जरूरी है। दरअसल, अण्णा और टीम मिले जनमत से खुद बारह माथे की हो गई और उसे लगा कि अब देश में वो सबसे ऊपर है। टीम ये भूल बैठी कि आंदोलनकारी से लोग ज्यादा संयम और बुद्धिमानी की उ्म्‍मीद करते हैं कि उसे नतीजे तक पहुंचना होता है। जिस तरह टीम और अण्णा फेल हुए हैं, उससे उन्हें राजनीति में कुछ मिलने वाला नहीं। ये जमावड़ा वहां भी पास नहीं होगा। जो स्कूल में फेल हो गया, वो कॉलेज में क्‍या कर दिखाएगा? अण्णा ने फिर भी अपना रास्ता राजनीति से अलग रखा है, यह ठीक रहा। लोगों को उनकी टीम से न कोई उ्मीद थी, न है। राजनीति में टीम अण्णा कुछ कर ही नहीं पाएगी कि उनके पास विचार, दृष्टि और संयम तीनों गुणों की कमी है। यदि ये तीन गुण उनमें होते, तो आंदोलन ही फेल नहीं होता। अब अण्णा टीम भंग करें या और कुछ, लोग दंग नहीं रहने वाले। एक उचित और सार्थक आंदोलन का बेमौत मरना लोकतंत्र का नुकसान है।

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