सजा की जगह मजा....

प्रशासन में गिरावट का कारण गलती करने वाले को सजा का नहीं मिलना है। लीपापोती की आदत से गलत करने वाले की हौसला आफजाई ने ही व्यवस्था तार-तार की है। इंदौर के विधायक सुदर्शन गुप्‍ता के खिलाफ पुलिस ने तुरंत मामला दर्ज कर लिया कि जांच तक नहीं की।विवेक का उपयोग तक नहीं किया। यह भी नहीं देखा कि मामला दर्ज करा रहा व्यक्‍ति कौन और कैसा है। जब मामला दर्ज होने के बाद पुलिस पानी पी-पीकर कह रही है कि गुप्‍ता और अन्य लोग घटना के समय वहां थे ही नहीं और वहां सैकड़ों सिपाही व्यवस्था संभाल रहे थे और हजारों लोग मौजूद थे, तो फिर मामला दर्ज कैसे हो गया? कहां तो पुलिस बड़े से बड़े अपराध में रिपोर्ट दर्ज ही नहीं करती और तमाम दखल हो जाने के बाद फरियादी अपनी शिकायत दर्ज करा पाता है और कहां उसने ऐसी गलती कर डाली कि खुद ही सफाई देनी पड़ रही हो।
इंदौर पुलिस का ये काम गुण्डों की हौसला आफजाई का है और यह भी तब, जब हाईकोर्ट ने दो दिन पहले ही सख्त आदेश दिया कि गुण्डों में पुलिस का खौफ हो। अदालत के आदेश की ऐसी तौहीन पुलिस के सिवाय और कौन कर सकता है। इस मामले में राजनीति से ज्यादा दोषी प्रशासन है। माना कि गुटीय कारणों से राजनीति वाले अपनी हरकतों से बाज नहीं आते, लेकिन पुलिस को तो आना चाहिए। उसे यह पता ही नहीं है इससे आम आदमी कितना डर गया है कि यदि पुलिस अवांछित तत्वों के इशारे पर गुण्डों से लड़ने वाले विधायक पर मामला दर्ज कर सकती है, तो आम आदमी की क्‍या बिसात? वह तो बेचारा अब रिपोर्ट भी नहीं करने जाएगा कि पता नहीं उसे ही आरोपी बना दिया जाए। यदि ऐसा करने वाले अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हो जाए, तो शायद इस बुराई पर नकेल डले। बुरा करने वाले अकसर सजा से बच जाते हैं और बाद में अपने किए का मजा लेते है, इसी कारण व्यवस्था पटरी से उतर चुकी है। ज्मिेदारी तो अब घेरे में आ गए विधायक की है वो मजा ले रहे ज्मिेदारों को सजा दिलाएं।
कानून का दुरुपयोग निर्दोषों को फंसाने वाले मामलों में आज तक किसी अफसर की नौकरी नहीं गई। यही कारण है कि पुलिस की ह्मित आसमान पर है कि उसे फंसाने में यह भी डर नहीं लगता कि वह विधायक को सजा दे रही है। इंदौर में अपराध यों बढ़ रहे हैं, समझ आ रहा है, सिवाय प्रदेश के मुखिया के। जब यह सवाल उठ खड़ा हो कि ‘ऐसा हुआ क्‍यों?’ तो फिर दोबारा ऐसा नहीं होगा। लेकिन यह नौबत आने दी जाए जब। तब तक तो सजा देने वाले मजा ले ही रहे हैं।

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