जैसे अण्णा, वैसे बाबा
अगर बड़े नोट बंद करने से काले धन पर अंकुश लगता है, तो छोटे नोट भी बंद कर दिए जाने चाहिए। ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। हम वस्तु विनिमय के युग में पहुंच जाएंगे।रामदेव और अण्णा की प्रेरक शक्त एक ही है और वो है ईर्ष्या। रामदेव भी उनसे ईर्ष्या करते हैं, जिनका काला धन विदेशों में जमा है। काला धन भारत लाए जाने के जो फायदे वे गिना रहे हैं, वे काल्पनिक हैं। काले धन का जो आंकड़ा वे बता रहे हैं, वो भी यकीन के काबिल नहीं लगता। केवल अनुमान ही हैं। अण्णा और बाबा दोनों ही अड़ियल हैं। विचारहीनता दोनों के पास है। जिस तरह अण्णा के पास आदमी को ईमानदार बनाने का कोई नुस्खा नहीं था, उसी तरह बाबा के पास भी बढ़ते काले धन की रोकथाम का कोई उपाय नहीं है। विदेशों में जो काला धन पड़ा है, उसे भारत लाने में सैकड़ों तकनीकी परेशानियां हैं। इसलिए विचार इस बात पर होना चाहिए कि काला धन न बढ़े। काले धन का सबसे बड़ा कारण है टैक्स सिस्टम। कमाई जितनी बढ़ती चली जाती है, टैक्स की दर भी उतनी ही बढ़ जाती है।
लगता है कि सरकार भी ज्यादा कमाने वालों से दुश्मनी-सी रखती है। टैक्स का मतलब होता है दूसरों के लिए कमाना। टैक्स मुनासिब और वाजिब हो, तो काले धन की समस्या एक हद तक मिट सकती है। मगर बाबा रामदेव का ध्यान जड़ों पर नहीं है। रामलीला मैदान में बैठकर वे उतनी ही बेतुकी बातें कह रहे हैं, जितनी कोई भी भगवाधारी कर सकता है।उनके आंदोलन का मकसद काला धन वापस लाना नहीं, मौजूदा सरकार के खिलाफ जनता को भड़काना है। अलावा इसके बाबा ने कल जिस तरह शहीदों और महापुरुषों के साथ जेल में बंद बालकृष्ण का फोटो प्रमुखता से लगाया और विरोध होने पर हटाया, उससे उनके मंदबुद्धि होने का भी खुलासा हुआ। जो देश के लिए जेल गए, उनके और बालकृष्ण के जेल जाने में बाबा अंतर ही नहीं कर पाए? गांधी, सुभाष, आजाद और भगतसिंह के बराबर है ठग बालकृष्ण? ऐसा करने से पहले बाबा और उनके सलाहकारों को शर्म तक नहीं आई? बालकृष्ण और जयेन्द्र सरस्वती में ऐसा क्या है कि उनकी तुलना छत्रपति शिवाजी से की जाए? ढोंग, पाखंड और आंखों में धूल झोंकना और किसे कहते हैं? देश के अवाम को समझने में अण्णा और उनके सलाहकारों ने जो गलती की थी, वही बाबा कर रहे हैं। देशभक्त का ऐसा भोंडा दुरुपयोग रामदेव के अलावा और कोई कर भी नहीं सकता कि ऐसा करने के लिए पूरी तरह बेशर्म होना पड़ता है।
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