हथियार होती वसूली!

मध्यप्रदेश सरकार ने परिवहन एक्‍ट में संशोधन कर गलती करने वाले वाहन चालकों के लिए दंड की राशि नौ गुना बढ़ा दी है। अब हेलमेट नहीं लगाने से लेकर रांग पार्किंग तक के ‘अपराध’ पर पचास की जगह साढ़े चार सौ रुपए दंड भरना होगा।नहीं सुधरने वालों के लिए ये दंड वाजिब नजर आएगा कि आखिर सरकार करे भी तो क्‍या? लेकिन इससे यातायात का सुधार होना कठिन है। उल्टे इससे राज्य भर की पुलिस की वसूली में जरूर सुधार हो जाएगा। जब दंड की रकम ही पचास रुपए थी, तो सिपाही ज्यादा से ज्यादा क्‍या मांगता? अब तो मामला चार सौ पचास का हो चुका, तो इससे कम में क्‍या मानेगा! दरअसल, दंड से यदि सुधार होता, तो अभी तक सब सुधर चुके होते कि हर अपराध की सजा तय है। ट्रैफिक नियमों का जब तक सख्ती से पालन कराने की आदत नहीं डाली जाए, तब तक कोई भी और कितना भी गुना दंड यातायात नहीं सुधार सकता। यातायात ढंग से चले इसके लिए अमला ही नहीं है।शहरों के विस्तार के हिसाब से अब पुलिस जितना अमला ही ट्रैफिक के लिए भी चाहिए। जरा सी सख्ती करनी हो या किसी खास मौके का इंतजाम करना हो, तो थाने का अमला ट्रैफिक में झोंकना पड़ता है। जो अमला ट्रैफिक में है, उसका आधे से अधिक तो केवल वसूली में लगा रहता है।
 प्रदेश के सभी शहरों में वसूली की बीमारी आम और रोजाना का काम है। ऐसे में दंड की रकम बढ़ने से सुविधा इन्हीं को होनी है कि अब गाड़ी मालिक को दबाने का सबसे कारगर हथियार सरकार ने थमा दिया। ऐसा नहीं है कि दंड हो ही नहीं। हो, लेकिन जो मूल समस्या है नियमों का पालन कराने में, अमले की कमी, वह पूरी हुए बिना इस तरह की कसरत फिजूल है। दंड से जिन्हें जर है वो तो पचास रुपए से भी इतना ही डरते हैं, जितना साढ़े चार सौ हो जाने पर डरेंगे! अलावा इसके रसूख वालों को तो कितना भी दंड बढ़ाओ, उन्हें किसकी परवाह? यह वजन आखिर में उठाना तो केवल आम लोगों को ही है।

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