सबकी ‘जय’ हो!
पहली बार छह पदक देश को दिलाने वाले सभी खिलाड़ी शाबासी के हकदार हैं, लेकिन सुशील कुमार ने जिस विपरीत हालात में मैदान मारा, वो नाज करने लायक है।पहले दौर में हार चुके सुशील निर्णायक दौर में बीमार होने के बाद भी जिस तरह जीते और दो ओलम्पिक में लगातार पदक पाने वाले पहले भारतीय बन गए, दिल को खुश करता है। देश को बड़ी उम्मीद थी कि वो सोना जीतेंगे, लेकिन बीमारी ने उन्हें चांदी पर ही रखा।कोई बात नहीं। अभी उनके पास अगला ओलम्पिक और है सोना जीतने के लिए।पिछली बार कांस्य पदक जीतने वाले सुशील चार बरस से मेहनत कर रहे थे और सोने के लिए पसीना-पसीना थे, लेकिन चांदी पर संतोष करना पड़ा और देश को भी उनके निजी रूप से पदक जीतने का इतिहास बन जाने से संतोष मिला। सुशील पर इनामों और स्मानों की बौछार स्वाभाविक है, लेकिन जिस एक खिलाड़ी को जैसी चर्चा और इनाम दिए जाने चाहिए थे, वह नहीं हो पाया है, जो अखरता है।
असम की साधारण गृहिणी और तीन बच्चों की मां मेरीकॉम को असम सरकार ने महज पचास लाख रुपए दिए? जब हरियाणा और हिमाचल सहित दिल्ली सरकार अपने प्रदेश के खिलाड़ियों को एक-एक करोड़ दे रही है, तो असम सरकार क्यों नहीं?अरबों रुपए फिजूल खर्च करने वाली सरकार क्या इतनी कंगाल है कि उस महिला की झोली नहीं भर सकती, जिसने देश को उ्मीदों और खुशियों से भर दिया। सारे विजयी खिलाड़ियों में सबसे ज्यादा स्मान और मदद की हकदार मेरीकॉम हैं कि न तो उसकी कोई ट्रेनिंग थी, न उसके पास संसाधन थे। सितारा तो वो थी ही नहीं। मामूली घर की इस गैरमामूली खिलाड़ी के साथ जिस तरह सरकार और मीडिया का मामूली व्यवहार है, वह गलत है। जिसने देश का मान बढ़ाया और महिला होकर मुक्केबाजी जैसे खेल में सबको धराशायी किया, उसे भी उतनी ही तवज्जो दी जानी थी, जितनी सुशील, नारंग या साइना को दी गई। हम कब समझेंगे कि जो प्रचार और खेल की मार्केटिंग नहीं जानते, उनका भी गुणगान जरूरी है। मेरीकॉम के साथ हुआ पक्षपात अखरता है।
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