धुआं... धुआं समझ!


पैकेट पर फोटो छापने का कोई मतलब नहीं। सरकार यदि यह विचार कर रही है कि अब सिगरेट के पैकेट पर ‘स्वास्थ्य की हानि’ के साथ कैंसर मरीज का फोटो भी चस्पा हो, तो शायद पीने से परहेज बढ़े। इस उपाय का कोई मतलब नहीं।सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, यह सूचना कितनी बारीक छापती है कि पढ़ने में ही नहीं आती। इसके साथ फोटो भी छोटा सा छप जाएगा तो क्‍या गजब हो जाएगा! फोटो भी इतना छोटा होगा कि दूर से कंपनी का लोगो लगेगा। विदेशों की तरह हमारे यहां क्‍यों नहीं होता कि पैकेट के एक पूरे हिस्से पर सिर्फ संदेश ही हो कि सिगरेट पीना कैंसर न्यौतना है। कम से कम पीने वाले का ध्यान तो जाए। जहां आधी से अधिक आबादी निरक्षर है, वहां साफ और अपनी भाषा में संदेश जरूरी है। देश में ऐसे सिगरेट पीने वाले हर राज्य में हैं, जो न अंग्रेजी जानते हैं, न हिंदी। क्‍या मतलब रह जाता है चेतावनी का?अलावा इसके चेतावनी केवल सिगरेट पर ही क्‍यों? पान मसालों और शराब के पैकेट पर क्‍यों नहीं? ये भी तो तबीयत को बुरी तरह खराब कर कैंसर सहित तमाम बीमारियां बुलाने के साधन हैं और जितनी बर्बादी सिगरेट से हो रही है, उससे ज्यादा का योगदान इन दोनों खराब चीजों का भी है। 
इन पर भी चेतावनी का होना जरूरी है। सिगरेट पीने वालों में वयस्क पुरुषों की तादाद ज्यादा है, लेकिन पान मसाले तो महिला और बच्चे भी धड़ल्ले से चबा रहे हैं। होना तो यह चाहिए कि इन चीजों पर सख्ती से रोक ही लगा दी जाए। जिस तरह कई राज्यों में पान मसालों पर रोक लगा दी गई है, वैसी ही शराब और सिगरेट पर लगा दी जाए। सरकारों के लिए टैक्‍स जरूरी है या लोगों की जान? फोटो छापने से कुछ नहीं होगा। समझ बढ़ाने के लिए जन जागरण और सख्ती से रोक ही कारगर होगी।

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