संदेशे क्यों आते हैं....
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने यदि मोबाइल और इंटरनेट के जरिए हमारे देश में अफरातफरी फैला दी, तो हम क्या कर रहे थे? जब हजारों लोग भागने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंच गए, तब हमारी नींद खुली कि ये साजिश है?शुरुआती दो दिन तो सरकार इसे साम्प्रदायिक दलों की करतूत मान आंख बंद किए बैठी रही और जब जागी तो पता चला कि तार देश के बाहर है। पाकिस्तान ने भले ही सिमी जैसे गद्दार संगठनों की मदद से देश में हड़कंप और डर का माहौल बनाया हो, दोष तो सरकार का ही है कि उसके गुप्तचर क्या कर रहे थे! देश का आईटी विभाग और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली एजेंसियां कहा गाफिल थीं।हम क्यों आग लगने पर ही जागते हैं और समय रहते हमारे कुएं खुदे क्यों नहीं मिलते। जब सब तरह से पाकिस्तान हमारे अंदरुनी मामलों में लंबे समय से गड़बड़ी फैला रहा है, तो हम चौबीस घंटे उस पर नजर क्यों नहीं रख रहे?
जब वह हमारे जंगलों में बैठे नक्सलवादियों तक अपनी पैठ बना रहा है, तो हम दफ्तरों में कुर्सियां क्यों तोड़ रहे हैं। क्या सरकार और उसकी सुरक्षा एजेंसियों को इतना भी अनुमान नहीं रहा कि आधुनिक संचार सुविधाओं का इस्तेमाल कभी भी देश के दुश्मन कर सकते हैं और इसके उपाय समय रहते कर लिए जाएं।अब बात राज्य सरकारों की सुरक्षा में खामी की कि एक भी राज्य में ऐसा नहीं हुआ कि समय रहते सरकार की आंख खुल गई हो। स्थानीय स्तर पर इतनी बड़ी घटना की खबर सरकार को मिले ही नहीं, तो डरना जरूरी है कि कभी भी हालात किसी भी सरकार के हाथ से फिसल सकते हैं कि उसे तो कोई खबर होती ही नहीं। हजारों लोग अकारण, बिना सूचना और व्यवस्था के यदि एक जगह जमा हो जाएं, या भागने लगें, तो एकाएक कोई क्या कर सकता है। ताजा घटना ने दिखा दिया है कि केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारें सोई पड़ी हैं और लोग भय से जाग रहे हैं। पाकिस्तान ने फिर पुराना राग अलापा है कि सबूत दो। सरकार उसे सबूत दे या न दे, लोगों को भरोसा जरूर दे कि अब वह जागती रहेगी, ताकि लोगों को भागना न पड़े।
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