बोल वचन में ‘सिंघम’!
पुलिसवालों से बात करते समय मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा था कि उन्हें अमले में सिंघम चाहिए। वो सख्ती से काम करने की हिदायत दे रहे थे और खुद मुख्यमंत्री की करनी, कहनी पर खरी नहीं ठहर रही।यदि इंदौर के राजेन्द्र नगर थाने के सीएसपी दिलीपसिंह तोमर का तबादला अवैध शराब बेचने वाले को पकड़ने पर नहीं किया जाता और भाजपा विधायक के दबाव को ठेंगा बता दिया जाता, तो अब एएसपी राकेशसिंह का तबादला नहीं करना पड़ता, जो गुंडे पर कार्रवाई करने से मंत्री की नाराजी का कारण बन गए थे। सिंघम होगा कैसे?
यदि आप ही खलनायक का रोल करेंगे, तो नायक होने से रहा। राकेशसिंह का दोष बस यह है कि वो विधायक के खिलाफ फर्जी रिपोर्ट दर्ज कराने वाले के खिलाफ सख्त थे।इन्दौर की बदहाल कानून व्यवस्था में इस तरह कोई सिंघम होने से रहा। केवल बोलने भर से कानून व्यवस्था सुधरती नहीं। नीति, नीयत और अमल में सख्ती और ईमान से काम लेना होता है। भाजपा शासन में यदि शहर और प्रदेश में गुण्डों की पौ बारह है, तो कारण सरकार का अपराधियों के पक्ष में बेशर्मी से खड़े रहना है इंदौर में गुंडागर्दी की हद है कि सरकार का विधायक भी सुरक्षित नहीं। सरकार भी गजब की कि अपने ही विधायक को न्याय दिलाने में लगे अफसर का तुरंत तबादला कर दे। सिंघम की जरूरत तो राजनीति में है। पुलिस बेचारी तबादले की तलवार के आगे बेबस है। पूरे प्रदेश में कानून-व्यवस्था ऐसी है कि हर जिले में सिंघम की जरूरत महसूस हो रही है और मुख्यमंत्री किसी को सिंघम होने नहीं दे रहे। बहुत बुरा है। खराब कानून-व्यवस्था से गुस्सा किस कदर है, इसका सबूत संघ के लोगों ने भाजपा कार्यालय पर तोड़फोड़ कर दिया है। जनता में गुस्सा है, लेकिन वो इंतजार कर रही है अपनी बारी के आने का कि वह सिंघम की तरह दूध का दूध और पानी का पानी करे। इसके पहले एक मौका है सुधार और सुधरने का। फैसला सीएम के हाथ है।
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