ये कैसी ममता है!


ममता बैनर्जी के अविश्वास प्रस्ताव की जिस तरह से भद् पिटी है, अनहोनी नहीं है। चार दिन पहले ही यह पता चल गया था कि विपक्ष भले ही कांग्रेस को घेरने के लिए तैयार हो, लेकिन वह ममता बैनर्जी के पीछे खड़ा होने को तैयार नहीं है।ममता बैनर्जी को अगर बंगाल की उमा भारती कहा जाता है तो इसीलिए कि वे अपनी सनक, जिद और बदमगजी के चलते किसी की सुनने को तैयार नहीं होती हैं। कायदे से तो उन्हें वामपंथियों के मलवे को उठाना था और बंगाल को नंदन-वन बना देना चाहिए था, मगर प्रादेशिक मुख्यमंत्री होते हुए ममता बैनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में दखल का मोह नहीं छोड़ पा रही हैं। पंचायत के चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि ममता बैनर्जी से वहां के लोगों का मोहभंग हो रहा है और वामदल को फिर से याद करने लगे हैं। 
कहने को ममता मुख्यमंत्री हैं, मगर आज भी उनका बर्ताव विपक्ष की नेता वाला ही है। वे यह भूल ही जाती हैं कि हर जगह उनकी उपस्थिति प्रार्थनीय नहीं होती है। ऐसे भी कई काम हैं, जो सिर्फ दफ्तर में बैठकर भई किए जा सकते हैं, लेकिन ममता हर समय नजर आना चाहती हैं और इसी चक्‍कर में वे घनचक्‍कर हो रही हैं।दिल्ली की राजनीति में अगर इतनी ही दिलचस्पी थी तो मुख्यमंत्री पद किसी प्‍यादे को दे देना चाहिए था, लेकिन ममता को ये भी मीठा लग रहा था और वो भी। प्रणब मुखर्जी को जब राष्ट्रपति पद का उ्मीदवार बनाया गया था तो ममता ने विरोध का झंडा उठा लिया था, जबकि सभी को पता था कि यह दिखावे का ही विरोध है और प्रणब-ममता की जोड़ी कभी टूटने वाली नहीं है। फिर क्‍या हुआ..., ममता ने प्रणब मुखर्जी का कोलकाता में स्मान भी कर दिया कि पहले बंगाली शख्स राष्ट्रपति बने हैं। माचिस की तीली से रात रोशन नहीं की जा सकती है, उसके लिए तो चिमनी की ही जरूरत होती है। ममता में चिंगारी तो है, पर लौ की बेहद कमी है। यही कारण है कि विपक्षी दल भले ही ममता को उकसाते रहें, मगर उनका साथ देने वाले नहीं हैं। किस झोंक में ममता किस तरफ बह जाएं, कुछ पता नहीं है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि ममता बैनर्जी के जरिए कांग्रेस ने ही विपक्ष की हवा निकाल दी हो?

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