केचुए की केचुली!
क्या ऐसा संभव है कि जो बात मुंबई के पुलिस कमिश्नर को पता हो, वह प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष को पता न हो?
क्या गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, सोनिया गांधी और मनमोहनसिंह से भी ज्यादा ताकतवर हैं कि बिना उनकी सहमति और स्वीकृति के अजमल कसाब को फांसी दिए जाने का राजनीतिक फैसला कर बैठें? जहां विभाग का सचिव बदलने का फैसला भी सोनिया से प्रभावित रहता है, वहां कसाब की फांसी उनकी जानकारी में लाए बिना देने की बात कतई गले नहीं उतरती और गृहमंत्री का होना बताती है। कोई भी नहीं मानेगा सिवाय शिंदे के कि सोनिया और मनमोहन को पता ही न था। शिंदे ने ऐसा कहकर सरकार की इस मुद्दे पर चमक फीकी ही की है, क्योंकि सब जानते हैं कि शिंदे कोई सरदार पटेल तो हैं नहीं, जो नेहरू से पूछे बिना रियासतों को मिला दे और कश्मीर में सेना भेजने जैसे फैसले ले लेते थे कि वो ह्म्मित, अनुभव और कद में नेहरू से बड़े थे। शिंदे में है ऐसा कुछ, जो उन्हें सोनिया से बड़ा जाहिर करे। वे कांग्रेसी बाग के पालतू केचुए हैं और उन्हें इस तरह केचुली छोड़ने की इजाजत नहीं।
माना कि कसाब की फांसी के बारे में प्रधानमंत्री और यूपीए अध्यक्ष को पता न था तो सवाल और गंभीर है कि इतने खास, गंभीर और अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर आखिर जिम्मेदार लोगों की जिम्मेदारी क्या है? यदि सोनिया और मनमोहन को ही पता नहीं है तो देश चला कौन रहा है? नाजुक फैसले क्या मंत्री अपने स्तर पर ही लेने के लिए आजाद कर दिए गए हैं? जो बात मुंबई के कमिश्नर सत्यपालसिंह और आईजी देवेन्द्र भारती तक को पता हो, वह ज्मिेदारों को पता न होना डराता है कि पता नहीं कल को कोई क्या फैसला कर ले और देश संकट से घिर जाए। गृहमंत्री के बयान ने मामले की गरिमा और भरोसा दोनों ही कम किया है।
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