तीन बेर से... तीन बेर तक
तीन बेर से... तीन बेर तक
यदि सरकारी लोगों पर काली कमाई के छापे के बाद भी उनकी जिंदगी इतने ही मजे से चलती रहे तो छापे का मतलब ही या रह जाता है।
लोकायुक्त छापे में यदि चार कारें, चार मकान या ऐसी ही स्पत्ति मिलती है तो उन पर सरकार का कब्जा क्यों नहीं हो जाना चाहिए? बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सबसे पहले यह काम किया था कि भ्रष्ट अफसरों के बंगलों में सरकारी स्कूल खोल दिए थे। हमारे यहां तो जोशी द्पती की इतनी बड़ी काली दौलत सामने आने के बाद भी कुछ ज्यादा नहीं किया गया। जब यह पता चल जाता है कि करोड़ों का मकान या लाखों की गाड़ियां या जेवर उस कर्मचारी के वेतन से संभव नहीं है और ये सारी काली कमाई है तो उसे जब्त करने में कोताही क्यों बरती जाती है? मध्यप्रदेश के करोड़पति आरटीओ क्लर्क रमण धूलधोये की सम्पत्ति जब्त कर मध्यप्रदेश शासन ने सही कदम देर से उठाया है। मध्यप्रदेश में हर साल दर्जनों भ्रष्ट अफसर चपेट में आते हैं, मगर सिवाय बदनामी के उनकी जेब से छदाम भी कम नहीं होती है। यदि काले पैसे के लिए ही काले काम किए गए थे तो ऐसे काले पैसों को सरकारी खजाने में जमा करना ही चाहिए।
पैसे की मार सबसे बड़ी होती है, अगर गलत ढंग से पैसा कमाने वाले का मकसद पैसा ही हो तो। ऐसे में उन्हें फौरन सजा का यही तरीका है कि उस पैसे से ही उन्हें महरूम कर दिया जाए, जिसमें उनकी जान और ईमान बसता है। पैसे की मार से ही इन पर असर हो सकता है। वरना तो छापे के बाद भी दावतों में खिलखिलाते चेहरे नजर आते रहते हैं। उनके रोजमर्रा के शाही खर्चों में किसी तरह की कमी नहीं होती है। ऐसा कभी हो सकेगा कि ‘तीन बेर खाती थीं जो, तीन बेर खाती हैं... या ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी... ऊंचे घोर मंदर में रहती हैं....’ छापे में चार कारें पकड़ाने के फौरन बाद क्या अफसर का परिवार सिटी बस में नजर आया कभी? लोकायुक्त, इनकम टैक्स या सीबीआई के छापे पड़ते हैं तो मामला सालों साल चलता है और काली कमाई का सुविधा से ज्यादा अय्याशी के लिए उपयोग लाता है। इस पर रोक लगाना जरूरी है। जब बिहार सरकार दो साल पहले ही यह काम कर चुका है तो बाकी जगह भी इसको लागू किया जाना चाहिए! मध्यप्रदेश में अकेला धूलधोये नहीं है, ऐसे ना जाने कितने हैं, जिनकी फाइलें धूल खा रही हैं और वे शान की जिंदगी जी रहे हैं
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