गृह-लक्ष्मी
घर संभालने वाली महिलाएं सिर ऊंचा कर सकती हैं कि वो परिवार की कमाऊ और बहुत उपयोगी सदस्य हैं। बीमा क्पनी के दावे में गृहिणी को नाकारा सदस्य बताने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ठीक ही व्यवस्था दी है कि घरू काम भी कमाई है कि आय माना जाए।कारण कि यदि यही काम कोई दूसरा करे तो पगार देना पड़े। न्यायालय ने आम गृहिणी की औसत घरू काम आमदनी तीन हजार रुपए महीना मानी है, लेकिन यदि वाकई चौबीस घंटे किसी को घरू काम के लिए रखा जाए तो महानगरों में इसके लिए हर परिवार रहने-खाने के अलावा दस से पंद्रह हजार रुपए महीना खर्च करता है, लेकिन जो आम गृहिणी परिवार संभालने के लिए मां, पत्नी, बहन और बेटी के रूप में घरू काम करती है, क्या उसे आंका जा सकता है? उसकी कोई कीमत हो सकती है? जाहिर है नहीं।
भारतीय समाज की परिवार इकाई को मजबूत बनाने और संभाले रखने में इन्हीं करोड़ों घरेलू महिलाओं का योगदान है, जो कभी न आंका जाता है, न स्मान पाता है। घरू काम करने वाली करोड़ों महिलाएं नौकर श्रेणी से भी नीचे मानी जाती हैं कि घरू काम भी कोई काम है। महिलाओं के हक में अदालत का आदेश मील का पत्थर है और इज्जत का सबूत है कि घरेलू काम कोई फोकट रोटी तोड़ने का कारण नहीं। मेहनत, निष्ठा और समर्पण की कीमत बताने वाले आदेश ने करोड़ों गृहिणियों को स्मान और हक दिलाया है कि उनके योगदान और पसीने को निहायत बेजा न माना जाए। घरू काम भी पेशगत काम की बराबरी आने वाले समय में करेगा और ताजा आदेश से इसके रास्ते खुल चुके हैं।
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