लगा लेता हूं सीने से... दुश्मन जो सच्चा देखता हूं


भोपाल : नवीन जोशी। ‘‘अब तो गाने ऐसे लोग लिख रहे हैं, जो उसका मुखड़ा तक नहीं लिख सकते हैं। गीत के बोल का कोई अर्थ ही नहीं होता। गीत ऐसे लिखे जाना चाहिए, जिनकी उम्र लंबी हो, लोग उन्हें ताउम्र याद रखें।’’
शायर, कवि, गीतकार इब्राहिम अश्क ने संस्कृति विभाग के पावस महोत्सव में विशेष इंटरव्यू में यह बात कही। उन्होंने कहा कि आज खुशामदियों की फिल्मों को पुरस्कार मिलते हैं। मुन्नी बदनाम हुई, शीला की जवानी और होंठ रसीले जैसे गीतों की उम्र चार दिन होती है। ऐसे गीतों का कोई मतलब नहीं होता। मेरे गीत ऐसे होते हैं, जो याद रखे जाते हैं। अश्क ने कहा- उन्हें स्कूली जीवन में किताबें पढ़कर कविता का शौक जागा। उनकी सात पुश्तों में कोई कवि या शायर पैदा नहीं हुआ। अलबत्‍ता मां लोकगीत गाती थीं, जिसे वे गुनगुनाते थे। ‘‘हादसे कुछ दिल पे ऐसे हो गए, हम समंदर से भी गहरे हो गए।’’ ‘‘लगा लेता हूं सीने से उसे, कोई दुश्मन जो सच्चा देखता हूं।’’ अश्क ने कहा- कहो ना प्‍यार है, कोई मिल गया, ये तेरा घर ये मेरा घर, लैक एंड व्हाइट, वेलकम, क्रश में उनके गीतों ने लोकप्रियता का नया पायदान हासिल किया। बहार आने तक फिल्म का ‘मोह बत इनायत करम देखती है’ गीत सबसे ज्यादा मशहूर हुआ।

Comments