उन्मुक्‍त-विचार


खेल कोई पार्ट-टाइम जॉब नहीं है कि जब फुर्सत हुई, मन हुआ और मौका लगा तो कर लिया। खेल के लिए भी उतना ही समय, समर्पण और समझ की जरूरत होती है, जितनी कि पढ़ाई के लिए।आज भी हमारे घरों में बच्चों को खेल की इजाजत ‘होमवर्क’ पूरा करने के बाद ही मिलती है। परीक्षा नजदीक आती है तो खेल से तौबा करवा दी जाती है। आम भारतीय मां-बाप की यही जिद होती है कि पहले डिग्री हासिल कर लो, बाद में जितना चाहो खेल लेना, जबकि सभी जानते हैं कि डिग्री लेने के बाद खेलने लायक कुछ भी बाकी नहीं रह जाता है। खेल और पढ़ाई का तालमेल बैठाना आज के दौर में तो लगभग नामुमकिन ही है। या तो आप खेल लें या पढ़ लें।
 दो नाव की सवारी नहीं हो सकती। फिर भी यदि कोई खिलाड़ी पढ़ने की भी इच्छा रखता है तो उसे छूट, सुविधा या रियायत क्‍यों नहीं दी जानी चाहिए? भारत के लिए विश्व कप जीतने वाले नन्हे कप्‍तान उन्मुक्‍त चंद का एक साल इसलिए खराब करने की तैयारी है कि उसने कॉलेज में जरूरी पूरे दिन नहीं भरे हैं। जो लड़का देश के लिए गौरव के पल तराश रहा था, उससे कॉलेज में बैठकर पढ़ाई करने को कहना ज्यादती नहीं है? माना कि नियम- कायदे हैं और उनका पालन किया जाना चाहिए, लेकिन क्‍या ऐसे मामलों में रियायत नहीं बरती जाना चाहिए? क्‍या खेलने वालों को इस तरह की छूट देना गलत होगा? क्‍या सिर्फ कॉलेज में पूरी हाजरी देने वाले ही परीक्षा पास कर लेते हैं?हमारे यहां खेल को वैसे ही ‘खराब’ की नजर से देखा जाता है, क्‍योंकि हम तो बच्चों को ‘नवाब’ बनाना चाहते हैं और इसके लिए पढ़ाई ही अकेला जरिया है। हम बच्चों को ‘नवाब’ ही क्‍यों बनाना चाहते हैं? देश के लिए वह गौरव का काम करे, क्‍या हमें यह भी मंजूर नहीं है? वह खिलाड़ी सिर्फ हाजरी-माफी चाह रहा है, यह तो नहीं मांग रहा है कि बगैर परीक्षा लिए उसे पास कर दिया जाए या उसके जवाब इस छूट के साथ जांचे जाएं कि वह खिलाड़ी है? नियम हमारे लिए बनते हैं, हम नियमों के लिए नहीं हैं। ओलम्‍पिक में हमारी ताजा-ताजा किरकिरी को भी हम अनदेखा कर रहे हैं। लगता है मां-बाप और शिक्षा के सारे रखवाले इस बात पर पिल पड़े हैं कि बच्चा सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई करे...। उसे इतनी छूट न दी जाए कि वह खेलने लग जाए। क्‍या हमें पता है कि हमने अपनी इस जिद के चलते अपने बच्चों को उस जगह से कहीं दूर ला खड़ा कर दिया है, जिसे ‘जीत का दम’ कहते हैं। बच्चे पढ़-लिख जाते हैं, पर पूरी उम्र न खेल पाने का दंश झेलते रहते हैं।

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