बिजली का अंधेरा!
महानगर जितने बड़े भूटान ने यदि हमें बिजली देकर रेलें चालू कराई तो समझा जा सकता है कि हम इस मामले में कितने अंधेरे में हैं। भूटान से बिजली? क्या देश में कोई और ऐसी व्यवस्था नहीं थी कि कम से कम वक्त जरूरत बिजली की कामपूर्ति सप्वलाय तो हो पाती।आधे देश का अंधेरे में डूब जाना और पंद्रह घंटे इस हालत में बने रहना सोचने को मजबूर कर रहा है कि रोशनी का काम बंद आंख वालों के पास हैं जो देख नहीं नहीं पा रहे कि क्या होना चाहिए और कैसे! माना कि राज्यों की बिजली जरूरतें तेजी से बढ़ी है और वो संयम नहीं रखकर ग्रिड से बिजली लेते हैं, तो सवाल है कि पूरे देश को अंधेरे में झोंकने की बजाय संबंधित राज्य की आपूर्ति ही क्यों बंद नहीं की गई?
एक की गलती की सजा देश के करोड़ों लोगों ने किसकी लापरवाही से उठाई? यदि यूपी ने ज्यादा बिजली खींची तो उसे सजा मिलनी थी, लेकिन आधा देश अंधेरे में डूबा रहा। इस वजह से देश को जो अरबों रुपये की चपत लगी है, उसका ज्मिेदार राज्य माना जाए या केंद्र? बिजली के मामले में आंकड़े डराने वाले हैं कि हर वर्ष तीस हजार करोड़ रुपये की चोरी केवल इसी मद में हो रही है। कुल बिजली का चालीस प्रतिशत फिजूल चला जाता है और तीस प्रतिशत से ज्यादा लोग कीमत ही अदा नहीं करते। ऐसे में अंधेरे ही मिलेंगे। केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे का यह कहना कि हमारी बिजली व्यवस्था अमेरिका से बेहतर है, गुस्सा भी दिलाता है और हंसी भी आती है मंत्री की समझ पर कि वहां तीन मिनट के लिए बिजली बंद हुई थी तो सरकार को जवाब देना भारी पड़ गया था कि करोड़ों रुपये स्थापना और रखरखाव के फिर खर्च क्यों किए जा रहे हैं। ताजा बिजली संकट ने देश की इस बारे में चिंता बढ़ा दी है. भले टीम अण्णा ने इसे अपने खिलाफ सरकार की साजिश बताने की हास्यास्पद हरकत बताई हो, लेकिन जिस तरह से लाखों यात्री रेलों में जंगल में थम गए, उससे भरोसा तो उठ ही गया है कि बिजली को संभालने वाले दिल-दिमागों में ज्मिेदारी का करंट नाम को न है। यूपी में बिजली की हालत बेहद खस्ता है और कई दिनों तक लोगों को बिजली नहीं मिलती। अखिलेश सरकार ने चौबीस घंटे बिजली देने का वादा किया है और इसकी पूर्ति के लिए वह अपने हिस्से से ज्यादा बिजली खींच रही है, जिसकी वजह से ताजा संकट खड़ा हुआ है।
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