मैं...मैं... और मैं

अण्णा हजारे ने कहा है सरकार ने अगर हमारी मांग नहीं मानी तो  मैं अनशन पर बैठूंगा। उन्होंने कहा मैं सरकार को चार दिन की मोहलत देता हूं। अण्णा की बातों से साफ है कि उनकी भूख में कोई खास बात है।उनका भूखा रहना उन लोगों की भूख से ज्यादा खास है, जो पहले से अनशन पर हैं। क्‍या अण्णा के अनशन पर बैठने से ही फर्क पड़ेगा? क्‍या उनकी भूख दूसरों की भूख से खास है? सालभर पहले तक अण्णा को कौन जानता था। पिछले साल जुलाई में अनशन पर बैठे थे और रामलीला मैदान की मिट्टी से ही उनकी शोहरत की शुरुआत हुई थी। तब से लेकर आज तक वो रोज अखबारों में छपते हैं या टीवी पर आते हैं। पहले उनकी बातों में सहजता दिखती थी और लगता था कि सत्तर साल का आदमी देश के लिए कुछ करने निकला है, लेकिन अब उनकी बातों में ‘मैं’ ज्यादा नजर आता है। मैंने ये कहा, मैं ये चाहता हूं, मैं यह बोल रहा हूं, मैं अनशन पर बैठूंगा यही सब। पहले उनकी लड़ाई सही जगह पर दिखती थी, लेकिन अब वो और उनकी टीम भटक गए हैं।ये कहना भी गलत नहीं कि उनका आंदोलन कांग्रेस के ही खिलाफ है। एक बात और है जो सोचने पर मजबूर करती है। आखिर क्‍यों वो हर कांग्रेसी नेता के बयान पर बात करते हैं। क्‍यों वो नेताओं से बहस करते हैं। जब उनका लक्ष्य बड़ा और नेक है तो क्‍यों नहीं वे खामोशी के साथ बढ़ते। अण्णा भी चाहते हैं कि वो सुर्खियों में बने रहें, लोगों की नजरों में बने रहने का उन्हें शौक लग गया है और अगर ऐसा नहीं है तो क्‍यों वो हर बार मनचाही जमीन की मांग करते हैं। क्‍यों उन्हें अपनी बात कहने के लिए रामलीला मैदान और जंतर-मंतर की जरूरत पड़ती है। अगर उनकी बात में दम है और खुद पर भरोसा है तो कहीं भी आंदोलन क्‍यों नहीं करते?
फिर उनके गांधीवादी होने पर भी शक होता है। शराब पीने वालों को वो बांधकर मारने की बात कहते हैं। शरद पवार को पड़े थप्‍पड़ पर उन्होंने कहा एक ही पड़ा क्‍या...। ए. राजा और अमरसिंह के जेल जाने पर वे फांसी दे देने की बात करते हैं और येदियुरप्‍पा के मामले में पूछने पर चुप लगा जाते हैं। गांधीजी ने तो कभी ऐसी बातें नहीं की। बाबा रामदेव से भी वो लालच के चलते जुड़े। उन्हें मालूम था बाबा के पास भीड़ है। जब उन्होंने दिल्ली में अनशन किया था तो लाखों लोग आए थे, लेकिन मुंबई अनशन के समय गिनती के थे। उन्हें लगा अगर बाबा को साथ ले लेते हैं तो भीड़ खुद-ब- खुद साथ आ जाएगी। कुल मिलाकर अण्णा जिस ईमानदारी की बात करते हैं, उसमें कहीं न कहीं खोट जरूर है।

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