ब्रांड की भावुकता!
किसी भी परिवार में गमी होती है, तो निश्चय ही उस घर में चूल्हा नहीं जलता है। नजदीकी रिश्तेदार या मित्र ही गमजदा लोगों के खाने-पीने का इंतजाम और ध्यान रखते हैं।
यह हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय बुनावट का हिस्सा है और कमोबेश हर शख्स जीवन के इस सच से कभी न कभी रूबरू होता है। लेकिन क्या कभी किसी ने ढिंढोरा पीटा कि उसने फलां रिश्तेदार की गमी में खाना भिजवाया? कोई विज्ञापन कभी नहीं देखा गया कि किसी ने प्रचार लूटने के लिए ऐसे किसी योगदान का चर्चा किया हो। अमिताभ बच्चन ने राजेश खन्ना के गमजदा परिवार को खाना भेजने की बात कर महानायक के कद को बौना किया है। ये बात दुनिया को बताने की है? कोई बहुत महान और न भूलने वाला काम कर डाला आपने, जो इसका ऐसा चर्चा जरूरी था? क्या राजेश खन्ना के बचे परिवार का कोई नहीं है, जो खाना पाने के लिए आप पर मोहताज है? फिर क्यों इस तरह के छोटेपन की हरकत की गई।
दरअसल, बच्चन परिवार विज्ञापन की दुनिया का सबसे बड़ा ब्रांड है और ब्रांड को लोक लुभावन हरकतें जरूरी हैं, जिससे उसकी छवि लोकप्रिय और उपयोगी बनी रहे। जो अमिताभ 2009 से मरने तक एक ही इलाके में रहते हुए राजेश खन्ना से मिले तक नहीं, फोन तक नहीं लगाया, जो उनके बार-बार बीमार होने और अस्पताल में दाखिल होने की जग जाहिर खबरों के बाद देखने तक नहीं गए, वो उनके शव को देखकर सुबक पड़े? सुबकने का दर्द जिसके दिल में हो, वो सुध ही नहीं ले, क्या ऐसा संभव है? जाहिर है कि सब फंडा ब्रांड वैल्यू और मार्केटिंग का है। भारतीय समाज में की गई मदद और दिए गए दान को गिनाना ओछापन माना जाता है और निश्चय ही खाना भिजवाने जैसे चर्चे महानायक को महान नहीं बनाते। उल्टे इससे उन्हें नुकसान हुआ कि ये भी कोई तरीका है प्रचार पाने का। लेकिन जब कोई बाजार का हिस्सा बन जाता है और उसके कामकाज मार्केटिंग कंपनियों के ज्मिे हो जाते हैं, तो ध्यान रख ही नहीं पाते कि हर घटना ब्रांड वैल्यू के लिए नहीं होती। यही गलती इस बार भी हुई है।
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