फांसी से बड़ी माफी!

खून से रंगे हाथों पर सद्भावना के दास्ताने समभाव और सर्वधर्म वाला नहीं बना सकते! गुजरात दंगों के दाग मोदी चाह कर भी नहीं छुड़ा पा रहे हैं तो कारण उनकी कथनी- करनी का अंतर है।वाल्मिकी को डाकू से संत मान लेने वाला भारतीय समाज यदि मोदी को माफ नहीं कर पा रहा है, तो मूल में मोदी का पश्चाताप और प्रायश्चित नहीं, इमेज बदलने की राजनीतिक छटपटाहट है। मन में मोदी के कोई पछतावा और सद्भाव नहीं है। यदि ऐसा होता, तो सद्भावना उपवासों में वो मुस्लिम टोपी पहनने और हरा रूमाल लेने से मना नहीं करते। अभी भी उनकी ताजा नौटंकी किसी के गले नहीं उतर रही कि यदि मैं दोषी हूं, तो मुझे फांसी दे दो। कौन देगा फांसी? क्‍या गुजरात सरकार ने दंगों की सही जांचें और कार्रवाइयां होने दीं? क्‍या दोषियों के खिलाफ निष्पक्ष प्रकरण दर्ज हुए? और फांसी मांग रहे मोदी माफी मांगने को तैयार नहीं। जब मनमोहनसिंह, सोनिया गांधी मुस्लिमों से बाबरी मस्जिद ध्वंस के लिए माफी मांग सकते हैं, तो मोदी गुजरात दंगों के लिए क्‍यों नहीं? जब अटलजी बाबरी मामले में खेद जता सकते हैं, तो मोदी को क्‍या अड़चन?यदि उन्हें अटलजी जैसा देश का नेता बनना है, तो उनके जैसा आचरण अपनाए बिना कैसे संभव है। 
फांसी मांग रहे मोदी का पाखंड तो माफी नहीं मांगने से ही उजागर हो रहा है। भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा गुण क्षमा मांगना और देना माना गया है। मोदी के मन में अपने किए का पछतावा होता, तो उन्हें फांसी नहीं मांगनी पड़ती, माफी कभी की मिल चुकी होती, लेकिन मोदी कुटिल नेता हैं और सद्गुणों और सद्भावों का राजनीतिक इस्तेमाल करने और देश का नेता बनने के इरादों को पूरा करना चाहते हैं। यह संभव नहीं है। लालकृष्ण आडवाणी के हश्र से उन्हें सीखना चाहिए कि जिन्ना की मजार पर जाकर भी वो अपना मूल स्वरूप नहीं बदल पाए थे और देश ने उनके मुकाबले मनमोहनसिंह का साथ दिया था, जो सिखों से अपनी पार्टी के किए पर माफी मांग चुके थे। मोदी यदि दोषी नहीं हैं तो अटलजी ने उस समय राजधर्म निभाने की नसीहत किसे दी थी?

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