इन चिरागों को बचाया जाए
सरकार की मर्जी से ही काम करने वाले अफसर लंबे समय तक एक जगह और पद पर बने रहते हैं। यही वजह होती है कि एक सरकार के जाते ही सारे पुराने अफसर दूसरी जगह खपा दिए जाते हैं।सरकार को आंख दिखाने वाले अफसर वैसे ही इस देश में कम हैं और जो हैं, उनका हाल अशोक खेमका की तरह होता है कि इक्कीस साल में चालीस तबादले। इस अफसर ने किसी भी जगह पर दो साल पूरे नहीं किए। चूंकि अफसर की ईमानदारी से सभी वाकिफ हैं, इसलिए उन पर न तो दबाव की कोशिश हुई और न ही लालच ही उन्हें दिया गया! उनका कहना सही है कि लोग तभी लालच देते हैं, जबकि आप उसमें आ जाने वाले हों। एक बार यह मालूम हो जाए कि अफसर ‘सूमड़ा’ है तो कोई उस तरफ फटकता भी नहीं है।यदि राबर्ट वाड्रा का मामला नहीं होता तो खेमका के इतने तबादले का आज भी जिक्र नहीं होता। क्या इस तरह के ईमानदार और सख्त अफसर की यही नियति है कि वह हर समय अपना बोरिया-बिस्तर तैयार रखे और यहां से वहां फेंका जाता रहे? अफसर को तो उसकी ईमानदारी की सजा सरकारें दे रही हैं, मगर उस परिवार पर क्या गुजरती होगी, जो हर दिन, नए शहर की तरफ कूच करने की आशंका के साथ शुरू करता होगा। हर अफसर का परिवार होता है और ऐसे अफसर के परिवार को अपने न किए ‘अपराध’ की सजा भुगतना होती है।
वैसे तो अफसरों के कई संगठन हैं, जो वेतन और सुविधाओं के लिए जब-तब कमर पट्टे कसते रहते हैं, लेकिन क्या उन ईमानदार अफसरों के हक में ये संगठन कभी उठ खड़े होते हैं? क्या इसलिए ये अनदेखी करते हैं कि ज्यादातर अफसर ईमानदार नहीं हैं और सरकार के आगे पूंछ हिलाने वाले हैं। सरकारी नौकरी का मतलब अपने जमीर को गिरवी रखना तो नहीं ही होता है। खेमका ने ठीक ही कहा है कि गरीबों के हक पर जो भी हाथ मारेगा, उसके खिलाफ मेरी कलम यूं ही चलती रहेगी। सरकार के इन नौकरों को यह याद दिलाया जाना जरूरी है कि वे पहले जनसेवक हैं और उनको ब्रेड-बटर इसी आम आदमी की सेवा से मिलता है। गलत काम से इंकार कर देने पर भी ज्यादा से ज्यादा तबादला ही हो सकता है ना! नौकरी से निकालने की ह्म्मित तो किसी भी सरकार में नहीं होती है। खेमका के तबादले पर सभी की नाराजी जाहिर होना चाहिए।
Comments
Post a Comment