सूचना के सूतक!
सूचना के सूतक! काम करने का तरीका बेहतर और नीयत साफ हो तो डरने का कोई कारण ही बाकी न रहे। प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को यह सूतक नहीं सताता कि सूचना के अधिकार का कुछ लोग दुरुपयोग कर रहे हैं।माना कि कई लोगों के लिए ये अधिकार हथियार का काम कर रहा है और उनकी निजी पसंद-नापसंद में इसका इस्तेमाल भी हो रहा है, लेकिन इसमें डरने जैसी क्या बात? यदि किसी भी तरह की सूचना जानने का हक है और उसका इस्तेमाल हो रहा है तो डरने की जरूरत केवल उसे है, जो गलती पर है। दुरुपयोग भी तो उसी जानकारी का होगा, जो दबाव में ला सकती हो। क्या कभी किसी सही जानकारी का गलत इस्तेमाल हो सकता है? जाहिर है नहीं। उपयोग करने की मंशा वाला मन ही मन ईमानदारी और जिम्मेदारी से काम के प्रति सिर झुकाएगा और पछताएगा। जितने बड़े घोटाले सामने आए हैं, उसमें कोर्ट, केग के अलावा जड़ में जानने का हक ही है, जो शासन-प्रशासन की हकीकत उजागर कर सके हैं। इसे लागू करते समय मनमोहन सरकार को भी आशंका नहीं थी कि उसका किया-धरा सामने आए बिना न रहेगा। प्रधानमंत्री की बात मन के चोर की तरह लगती है और गले नहीं उतरती।
ये भी नहीं भूलना चाहिए कि जानने का हक भी अभी पूरी तरह मिला नहीं है। केन्द्र और राज्य सरकारों के पास इस हक की हजारों अर्जियां पेंडिंग हैं और जानबूझकर जानने के इच्छुक लोगों को निराश किया जा रहा है। गुजरात के नरेन्द्र मोदी हों या मध्यप्रदेश के शिवराजसिंह, नहीं चाहते कि ऐसे हजारों आवेदन मंजूर किए जाएं। मध्यप्रदेश के सूचना आयुक्त के पास पांच हजार से ज्यादा आवेदन रास्ता देख रहे हैं फैसले का। केंद्र सरकार के सभी विभागों में हजारों अर्जियां जवाब के इंतजार में हैं। जो कुछ थोड़े लोग सूचनाएं जुटाने में सफल हुए हैं, उससे ही इतनी हायतौबा मच गई है कि हक देने वाले ही पछता रहे हैं कहां ये अधिकार देने की गलती हो गई।
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