घर की आग बुझ नहीं रही

नरेन्द मोदी खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मान रहे हैं, पर उन्हें अपने ही घर में विरोध झेलना पड़ रहा है - केशुभाई के रूप में। फिर लोकसभा चुनाव के पहले गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं।इस चुनाव में जय- पराजय ही दिल्ली का रास्ता तय करेगी। जो काम आज केशुभाई पटेल कर रहे हैं, वह काम 96- 97 में शंकरसिंह वाघेला कर चुके हैं। हालांकि वे अभी कांग्रेस के पाले में हैं, पर उनका महत्व कम नहीं हुआ है। नगर निकाय चुनाव में भाजपा को हार झेलना पड़ी है, जिससे माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी का ग्राफ गिर रहा है। 
लोगों का मानना है कि भाजपा में विरोध की खिचड़ी खदबदा रही है। वाघेला का कहना है कि भाजपाई अपने आप को महफूज नहीं समझ रहे हैं, पर वे इसलिए सामने नहीं आ रहे हैं,क्‍योंकि वे नरेन्द्र मोदी से डर रहे हैं। उनका मानना है कि उनका शुरू किया चक्र पूरा हो गया है। भाजपा के खिलाफ जो उन्होंने किया, बाद में कांशीराम राणा और सुरेश मेहता ने किया और अब केशुभाई पटेल कर रहे हैं। उन्होंने अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की संभावना बताई है। उनका मानना है कि जिस गति से भाजपा का ग्राफ नीचे गिर रहा है, उसको देखते हुए कांग्रेस को एक सौ बारह से ज्यादा सीटें मिल रही हैं। उन्होंने केशुभाई पटेल खेमे से ‘टाई-अप’ की संभावना नकारते हुए कहा कि जीत ज्यादा जरूरी है और पार्टी की ताकत भी। जब पार्टी की ताकत अच्छी है तो सौदेबाजी क्‍यों। उनका कहना है कि जाति खास होती है, उ्मीदवार नहीं। प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री तय करना जनता को धोखा देना है। कारण पार्टी को जनता वोट देती है और पहले से ही जीत मानकर मुख्यमंत्री बनने की बात कहना जनता को बेकार समझना है।

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