गरम हवा!
असम में यदि बोडो और गैर बोडो लोग लड़ रहे हैं, तो ये वहां की सरकार की कमजोरी है।जो सरकार दस बरस से तीन जिलों में शांति कायम न कर पाए, वह या तो काबिल नहीं या घटना में अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल है और उसे दोनों स्थितियों में बने रहने का हक नहीं। बहरहाल, असम की आग से सा्म्प्रदायिकता की रोटी सेकनेवालों की बन आई।देश का माहौल खराब करने के एक भी मौका नहीं जाने देने वाले ये चेहरे खिल उठे। लंबे समय बाद उन्हें फिर पुराने जुमले और बातें दोहराने और दहाड़ने का मौका हाथ लगा और वो काम पर हैं, लेकिन सूचना क्रांति का नुकसान पहली बार सामने आया है कि ई-मेल और मोबाइल संदेशों ने बेंगलूरू, पुणे और हैदराबाद में दहशत फैला दी कि उत्तर-पूर्व के लोग खतरे में हैं।
जो लोग ऐसी हवा गरम करने में लगे हैं, वो भूल रहे हैं कि इससे देश की शांति, एकता और सद्भाव खतरे में हैं। प्रेम और भाईचारे की ठंडक एक बार खत्म हुई तो बरसों लग जाएंगे भरपाई में। ये लोग जरा से राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस बात को भूल जाते हैं कि माहौल बदलने में पूरी एक पीढ़ी खप जाती है।राज्य सरकारों की कमजोरी और निक्मापन है कि वो एक अफवाह का मुकाबला न कर पाए। एक नेता ऐसा देश और प्रदेश में नहीं कि जो खम ठोंक कर खड़ा हो जाए सरदार पटेल की तरह कि देखता हूं कौन गड़बड़ करता है? लौह पुरुष में ही लोहे सा कठोर कलेजा और साहस होता है। पटेल की तरह इंदिरा गांधी ने भी आनंदमार्गियों को सख्त चेतावनी दे दी थी कि गड़बड़ की तो नतीजा भुगतने को तैयार रहना।अब क्यों नहीं होते ऐसे नेता? क्या कारण है कि गृह मंत्री और प्रधानमंत्री के कहने के बाद भी लोग डरे हुए और भागने को मजबूर हैं? मुख्यमंत्री की अपील असर नहीं रखती और डीजीपी अपने समाज का होने पर भी यदि उत्तर-पूर्व के लोग बेंगलूरू छोड़ रहे हैं, तो साफ है कि राष्ट्रीय भरोसे को ठेस लगी है और हवा गरम करने वाले अपने खेल में सफल हैं। बहुत बुरा है यह और संबंधित राज्य सरकारों के साथ-साथ सबसे बड़ी ज्म्मिेदारी केंद्र की है कि वो इस पर सख्त रुख अपनाए और पलायन रोके। मुंबई में जिन्होंने गड़बड़ी की, उन्हें अब समझ आया होगा कि वो कितनी बड़ी गलती पर हैं।
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