परिक्रमा पर सरकार

जब सारे काम हो जाते हैं और कोई जिम्‍मेदारी बाकी नहीं रहती, तो रिवाज है कि चलो अब मन की शांति के लिए यह भी कर लिया जाए। लेकिन मध्यप्रदेश में तो अभी करने को बहुत कुछ बाकी है, फिर सरकार तीर्थ पर चली गई?क्‍या भय, भूख, आपदा और विपदा सब खत्म हो गए? क्‍या प्रदेश नंदनकानन हो गया है, जो सरकार के पास करने को कुछ न रहा और वो पूरे मजमे के साथ गोवर्धन परिक्रमा करने चल दी। क्‍या प्रदेश की कानून-व्यवस्था चुस्त और अव्यवस्थाएं खत्म हो गईं, जो अब गोवर्धन जाने के सिवाय कोई काम न बचा ? गोवर्धन को धारण करने वाले कृष्ण ने कर्म का अमर संदेश दिया था और इसी कारण वे संसार में पहले गुरु, राजनीतिज्ञ और कर्मयोगी माने गए। उस ईश्वर के धाम को पिकनिक माना जा रहा है और सारे दरबारियों के साथ ऐसा जाया जा रहा है कि तमाशे में तब्‍दील हो गया। 
शायद शिवराजसिंह के सपनों का मध्यप्रदेश यही है कि वो रोता-बिलखता रहे और सरकार गोवर्धन परिक्रमा करती रहे।ऐसा नहीं है कि नेताओं की निजी इच्छाएं और काम नहीं होते और उन पर अमल नहीं करना चाहिए। लेकिन इसके लिए जीवन पड़ा है। शिवराजसिंह सरकार कोई अनादि काल तक तो सत्ता में रहेगी नहीं, फिर क्‍यों अभी जनसेवा का कीमती समय फिजूल खर्च किया जा रहा है। जब कुर्सी नहीं होगी और निरे फालतू रहोगे, तब परिक्रमा क्‍या, गोवर्धन पर ही रहना। कोई उंगली न उठाएगा। सवाल उठता ही तब है, जब हम कर्तव्य का ध्यान नहीं रखते। सरकार के पास करने को सैकड़ों काम हैं, हजारों समस्याएं हैं और वह परिक्रमा करने में लगी है। होना तो यह था कि शिवराज सरकार इसमें पूरा हफ्ता बिगाड़ने की बजाय, तय करती कि वह पूरे हफ्ते मंत्रालय में पूरे समय काम करेगी, ताकि प्रदेश भर के परेशान लोगों की वल्लभ भवन की परिक्रमा करने की मजबूरी खत्म हो। लेकिन ऐसा हो कैसे?

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