क्या मध्यप्रदेश बीमारू राज्य से बाहर निकल पाया है ?


बड़वानी जिले में मोतियाबिंद के ऑपरेशन में मरीजों की आंखों की रोशनी खोने की घटना के पीछे जो भी कारण हो लेकिन इस घटना ने राज्य के उस दावे पर सवाल खड़े कर दिये हैं जिसको लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके मंत्रीमण्डल के सदस्यों के साथ-साथ पूरी भारतीय जनता पार्टी के मध्यप्रदेश से लेकर दिल्ली तक के नेता यह दावा करते नजर आते हैं कि शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्यप्रदेश को बीमारू राज्य से बाहर निकालने का काम किया है। लेकिन उनके यह दावे कहां नजर आ रहे हैं, इस पर शोध करने की जरूरत है, २००३ में भारतीय जनता पार्टी इस प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई और उस समय उसने प्रदेश की जनता से एक वायदा किया था कि वह भय, भूख और भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन इस जनता को उपलब्ध करायेगी, लेकिन भाजपा के शासनकाल के दौरान जिस व्यक्ति पर प्रदेश की जांच एजेंसियों ने छापे की कार्यवाही की वही करोड़पति निकला चाहे वह वल्लभ भवन में बैठे प्रमुख सचिव हों या जिला या तहसील स्तर पर पटवारी हो, तो वहीं एक दूसरा वायदा भी इस राज्य की जनता को भाजपा ने प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने समय किया था वह था बिजली, पानी और सड़क राज्य में यदि भाजपा के कर्णधार जो यह दावा करते नजर आते हैं कि प्रदेश की जनता को २४ घंटे बिजली उपलब्ध हो रही है तो वह जरा निष्पक्ष एजेंसी से यह जांच करा लें कि २४ घंटे बिजली देने के संबंध में सरकारी दावों में कितना दम है, प्रदेश के दूरदराज की तो बात छोडि़ए राजधानी में ही कई जगहों घंटों बिजली की कटौती धड़ल्ले से की जा रही है, तो प्रदेश भर में ट्रांसफार्मर जले पड़े हुए हैं उन्हें ठीक करने वाला कोई नहीं है जिसके संबंध में बस केवल विद्युत विभाग द्वारा समय-समय पर आदेश ही जारी किये जाते रहते हैं लेकिन धरातल पर कुछ नजर नहीं आता। राज्य की जनता दो तिहाई से अधिक जनता को आज भी शुद्ध पानी के लिये भटकना पड़ रहा है। तो वहीं स्वास्थ्य सेवाओं की जो स्थिति है वह तो समय-समय पर कोई ना क ोई घटनाओं के  बाद चर्चाओं में नजर आ जाती है, मजे की बात यह है कि हर घटना के बाद विपक्ष हंगामा तो करता है लेकिन कुछ दिनों बाद भुला दिया जाता है और उस घटना से कोई सबक यह सरकार नहीं लेती, जब घटना होती है तो बड़े-बड़े सुधार के दावे किये जाते हैं लेकिन कुछ दिनों बाद ही उन्हें बिसार दिये जाते हैं। राज्य में इस समय आर्थिक स्थिति यह है कि घर में नहीं है दाने और अम्मा चलीं भुनानें, तो जरूरी कामों के लिये सरकार अपनी परसम्पत्तियां गिरवीं रखकर व बेचकर धड़ाधड़ कर्ज लेने में लगी हुई है। राज्य की आर्थिक स्थिति यह है कि वह अब हर जरूरी काम के लिये जनभागीदारी की राह देखने में लगी हुई है, फिर चाहे वह संविधान में दिये गये स्वास्थ्य और सुविधाओं जैसे अधिकारों का मामला हो, अस्पतालों में ठीक से मरीजों क ो दवाएं तक नहीं मिल पा रही हैं तो राज्यभर की ओटी में इन्फेक्शन की भरमार है, जिसको ठीक करने के लिये राज्य सरकार के पास पैसा नहीं है और वह जनभागीदारी की आस लगाए बैठी हुई है तो वहीं प्रदेश के २७ जिलों की स्वास्थ्य सेवाएं निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में लगी है, यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं कि राज्य में हर विभाग के बाहर यह बोर्ड लगा नजर आएगा कि फलां मामले के प्रकरण के मामले में इतनी शुल्क, लेकिन इसके बावजूद भी सत्ता में बैठे लोग और राज्य के कारिंदे अपने खर्चों में कोई कटौती करते नजर नहीं आ रहे हैं। राज्य के मुख्यमंत्री जिन्हें सत्ता में काबिज होने के पहले पांव-पांव वाले भैया के नाम से राज्य की जनता पहचानती थी आज वह गगन बिहारी हो गये स्थिति यह है कि अब वह अपने गृह गांव जैत जाते हैं तो उसके आसपास के गांव जिनकी दूरी एक या दो किलोमीटर दूर होती है वहां भी हेलीकाप्टर से जाना अपनी शान समझते हैं। जबकि वहां उनके दावों के अनुसार प्रदेश के गांवों में प्रधानमंत्री सड़क योजना से सड़कों का जाल बिछा दिया गया है। तो उनकी इस तरह के गगन बिहारी हेने की वजह से यह सवाल भी उठता है कि या तो उनके आसपास के गांव में सड़कों का जाल नहीं है या फिर वह बनी तो हैं लेकिन गुणवत्ताविहीन निर्माण होने की वजह से अब उन पर चलना दूभर हो गया है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री की आलीशान कार भी उन सड़कों से नहीं गुजर पा रही है इसलिये वह उडऩखटोले से ही यात्रा करना सुरक्षित मानते हैं। कुल मिलाकर राज्य के नागरिकों के समक्ष बीमारू राज्य के उन दावों और उनके अर्थांे को समझने में लोग लगे हुए हैं कि जब प्रदेश बीमारू राज्य से बाहर हो गया तो उसकी आय में वृद्धि क्यों नहीं हुई और उसकी आर्थिक स्थिति यह है कि उसे हर काम के लिये कर्ज लेना पड़ रहा है तो हर जनउपयोगी सेवाओं के लिये जनभागीदारी की राह ताकना पड़ रही है कहने को प्रदेश मेें सड़कों का जाल बिछाने का दावा किया जा रहा है लेकिन अधिकांश सड़कों पर वाहन मालिकों को गुजरने के लिये अपनी जेबें ढीली करनी पड़ती है, लेकिन उसके बाद भी वह सड़कें उस लायक नहीं हैं, तो वहीं लोगों को ना तो स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हो पा रही हैं और ना ही शुद्ध पानी तो उनके बच्चों को ठीक से सरकारी स्कूलों में शिक्षा भी ठीक से मुहैया नहीं कराई जा रही है कुल मिलाकर राज्य की प्रगति के दावों की शोध कराने की जरूरत है तो वहीं किसी निष्पक्ष एजेंसी से राज्य के प्रगति की जांच तभी यह  खुलासा हो पाएगा कि सरकार के दावे सही हैं या जमीनी हकीकत है।    
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संकट में हैं शिवराज के संकटमोचक नरोत्तम  ..
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  मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर जब-जब संकट आया उसके समाधान करने की भूमिका हमेशा नरोत्तम मिश्रा ने अदा की, फिर चाहे वह डम्पर का मामला हो या फिर व्यापमं घोटाले के हंगामे के समय मुख्यमंत्री के परिजनों पर लगाये गये आरोपों या फिर पार्टी में दूसरे दलों के नेताओं का टिकट सहित भाजपा में शामिल करने का मामला हो, यही नहीं विधानसभा में विपक्ष द्वारा खड़े किए गए हर हंगामे के समय नरोत्तम मिश्रा की जो मुख्यमंत्री क ो इस संकट से बचाने की जो भूमिका रही उन सभी के  कारण स्वास्थ्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को मध्यप्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री के संकट मोचन के नाम से लोग परिचित हैं, लेकिन बड़वानी में हुए आँखफोड़ काण्ड और स्वास्थ्य विभाग के प्रदेश के जनजीवन को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के मामले में घिरे डॉ. नरोत्तम मिश्रा पर इन दिनों एक नहीं अनेकों संकट खड़े हो गए हैं जहां विपक्ष प्रदेश भर के शासकीय चिकित्सालय में अव्यवस्था को लेकर घेरने में लगा हुआ है तो वहीं बेरल कंपनी की दवायें खरीदने के मामले में उनपर कई सवाल खड़े कर रहा है हालांकि डॉ. नरोत्तम मिश्रा उन राजनेताओं में से हैं जिन्होंने अपने वाहन चालक के पास से जब्त करोड़ों रुपये के मामले को यूं ही चुटकियों में निपटा लिया तो वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर आए संकटों को तुरत-फुरत हल करने में भी उन्होंने कई कामयाबियां हासिल की हैं। यह अलग बात है कि राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने का ढिंढोरा पीटने के बाद राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं बद से बदतर हैं, शायद यही वजह है कि अपनी नाकामयाबी को छुपाने के लिये संविधान में नागरिकों को प्रदत्त मूल सुविधाओं जिनमें स्वास्थ्य, शिक्षा और शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की बात कही गई है, उसमें से एक मूल सुविधा से प्रदेश के नागरिकों को वंचित करते हुए राज्य के २७ जिलों की स्वास्थ्य सेवाएं एनजीओ के हाथों सौंपने की तैयारी कर रही है। बड़वानी आंखफोड़ू हादसे ने इस सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलकर रख दी है, स्थिति यह है कि जिस ओटी में यह ऑपरेशन किए गए उस ओटी में इन्फेंक्शन था जिसके चलते यह सबकुछ हुआ तो वहीं वर्षों से प्रतिबंधित बैरल कंपनी द्वारा खरीदी गई दवाएं भी इसका मुख्य कारण बनीं, हालांकि इस संबंध में स्वयं बड़वानी के नेत्र चिकित्सक यह कहते हैं कि मेरे बेटे का ऑपरेशन होता तो ऐसी दवाईयों का उपयोग नहीं करता। उक्त डॉक्टर के कथन से यह साफ हो जाता है कि गुणवत्ताविहीन दवाईयों की खरीदी इस प्रदेश में धड़ल्ले से जारी है और यह दवाएं बड़वानी ही नहीं पूरे प्रदेश में धड़ल्ले से मरीजों को बांटी जा रही हैं, हालांकि इस तरह की अमानक दवाओं के चपेट में पहले भी सैंकड़ों रोगी काल के गाल में समा चुके हैं। उक्त डॉक्टर पलोद के अनुसार यह हमारी मजबूरी है कि ऐसी दवाओं का उपयोग अस्पताल में करना पड़ता है, इसी वजह से सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर नहीं आते, हालांकि सरकार ने यह परम्परा बना रखी है कि घटना कोई भी हो उसे मुआवजा देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली जाती है, ऐसा ही इस मामले में भी हुआ, सरकार ने इस हादसे से प्रभावित लोगों को दो-दो लाख रुपये देकर प्रदेश की  लडख़ड़ाती स्वास्थ्य व्यवस्था पर पर्दा तो डाल लिया, लेकिन सवाल यह उठता है कि प्रदेश में एक नागरिक की आंखों या जान की कीमत सिर्फ दो लाख रुपये ही है? हालांकि इस तरह के मुआवजा देने की प्रथा इस सरकार में बलात्कार पीडि़ता जैसे मामले में भी है, कांग्रेस के शासन में तत्कालीन गृहमंत्री और वर्तमान नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे ने तो बलात्कार के एक मामले में दो-दो बार मुआवजा देने की घोषणा सदन में की थी। कुल मिलाकर इस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अभी तक के संकटमोचक माने जाने वाले नरोत्तम मिश्रा इस समय खुद संकट में फंसे हुए हैं, हालांकि नरोत्तम मिश्रा में वो क्षमता है कि वह अपना और जिस पर वह मेहरबान हैं उसका संकट हल करने की उनमें क्षमता है, देखना अब यह है कि एक लम्बे अर्से से अपने वाहन चालक से करोड़ों रुपये जप्त होने के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग में तमाम तरह की अव्यवस्थाएं अमानक  दवा खरीदी और अमानक दवाओं के सेवन से कई लोगों के काल के गाल में समा जाने की घटनाओं के साथ-साथ अब एक नया यह मामला सामने आया है जिसमें बैरल कंपनी पर बैन हटने के बाद भी स्वास्थ्य मंत्री और एमपीपीएचईसीएल के एमडी फैज अहमद किदवई इतने मेहरबान हो गए कि उसे करोड़ों रुपये का ठेका दे दिया, जबकि २००७ के बाद लगातार कंपनी को दवा सप्लाई का काम दिया गया था कंपनी ने जबलपुर-मण्डला में टेंडर की शर्तों के मुताबिक दवा सप्लाई नहीं की थी, सरकार की मेहरबानी के चलते करीब दो ट्रक माल केवल कागजों में ही भेज दिया था और इसी दौरान इलाके में नगर निगम के अमले के पास हैजा फैलने की बड़ी संख्या में मरीजों की मौत हो गई थी। जिला प्रशासन की रिपोर्ट के बाद विभाग ने कंपनी को दोषी पाया था और कंपनी के बाकी आर्डर निरस्त कर दिये थे, २००९ से २०१४ के बीच यह कम्पनी ब्लैकलिस्टेड रही और उसके बाद पुन: सरकार इस पर मेहरबान हो गई और उससे बैन हटते ही करोड़ों रुपये का ठेका एक झटके में दे डाला। प्रदेश में केवल बेरल ही नहीं ऐसी और कई कंपनियां होंगी जिन पर यह सरकार पूरी तरह से मेहरबान है और उन पर मेहरबान होकर इस तरह का खेल खेला जा रहा है, तभी तो प्रदेश के शासकीय अस्पतालों की स्वास्थ्य सेवाएं बद से बदतर हैं लेकिन इन पर कोई कार्यवाही नहीं होती क्योंकि कहावत है कि अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान होता ही है, तभी तो इस तरह का खेल प्रदेश के जनजीवन के साथ धड़ल्ले से चल रहा है और लोग अपना कानूनी दांवपेंच के चलते बच निकलते हैं और उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती आखिर जिन लोगों के परिजनों के साथ इस तरह की घटनाएं घटती हैं उसका दर्द वह अच्छी तरह से जान सकता है। यही नहीं भाजपा के शासनकाल के दौरान प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान ना देकर निजी चिकित्सालयों पर ज्यादा यह सरकार मेहरबान रही है इसका जीता जागता उदाहरण है सरकारी कर्मचारियों के इलाज कराने वाली निजी संस्थाओं की सूची, इससे यह साफ जाहिर होता है कि प्रदेश सरकार स्वयं अपने अस्पतालों की ओर ध्यान नहीं दे रहा है और निजी चिकित्सालयों को बढ़ावा दे रहा है देखना अब यह है कि इन सब आरोपों से घिरे मुख्यमंत्री के संकटमोचक डॉ. नरोत्तम मिश्रा के मामले में मुख्यमंत्री क्या निर्णय लेते हैं इस ओर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।  
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