क्या शिवराज का प्रदेश की विदाई संभव ?
पिछले दिनों दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह इस बात का खंडन किया कि वह मध्यप्रदेश से जाने वाले नहीं हैं और वह प्रदेश की सेवा ही करते रहेंगे, हालांकि राजनीति में ऐसा नहीं होता है एक समय था कि जब यही चौहान लोकसभा चुनाव के पूर्व प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल थे, और आज भी उनके मन में यह इच्छा प्रबल है तभी तो वह हर राष्ट्रीय कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अलग या उनसे कदमताल करते हुए कुछ न कुछ ऐसे अपने भाषणों के दौरान कह जाते हैं कि उससे लगता है कि वह अब प्रदेश की नहीं बल्कि देश की राजनीति करना चाहते हैं वैसे राजनीति और क्रिकेट में हर संभावनाएं बनी रहती हैं और राजनीति का यह उद्देश्य भी है कि जिस बात का खंडन हो उसको लेकर कहीं न कहीं कुछ जरूर पक रहा है, दिल्ली के इस आयोजन में मुख्यमंत्री द्वारा इस बात का खंंडन करना कि वह देश की राजनीति में नहीं जाना चाहते इस बात का संकेत है कि अब उनकी इस प्रदेश से सम्मानजनक विदाई का समय आ गया है। हालांकि उनके करीबियों की यदि बात मानी जाए तो वह उनसे इस बात को शेयर कर चुके हैं कि अब प्रदेश की राजनीति में कुछ नहीं रखा बहुत प्रदेश की सेवा कर ली अब सम्माजनक कोई पद मिलता है तो वह राष्ट्रीय राजनीति में जाने के इच्छुक हैं, वैसे भी सिंहस्थ की जो किवंदतियां हैं यदि उन पर विश्वास किया जाए तो जब-जब सिंहस्थ का आयोजन इस प्रदेश में हुआ, प्रदेश की राजनीति उससे जरूर प्रभावित हुई फिर चाहे वह सिंहस्थ के पहले हो या बाद में यह तो भविष्य बताएगा कि सिंहस्थ का प्रभाव शिवराज पर कब पडऩे वाला है। लेकिन शिवराज सिंह के इस तरह के खंडन से यह बात भी बल पकड़ रही है कि लगता है कि भाजपा आलाकमान ने अब उनको राष्ट्रीय राजनीति में कहीं न कहीं उतारने का मन बन लिया है और उसकी भनक शिवराज को लग चुकी है, शायद यही वजह है कि वह इस कार्यक्रम में यह संकेत दे गए। हालांकि बाकी जो कुछ उन्होंने इस भाषण के दौरान अपने कार्यकाल के महाघोटाला व्यापमं को लेकर जिस तरह का बयान वो जिस तरह वह अक्सर दिया करते हैं उसी को दोहराया मगर उसमें कोई नई बात उन्होंने नहीं की, यह जनता जानती है कि व्यापमं की सीबीआई जांच किसके कहने और किसके दबाव के चलते प्रारम्भ हुई और उसे दबाने का प्रयास किस प्रकार किया गया, इससे प्रदेश की नहीं बल्कि देश की जनता भलीभंाति परिचित है।
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बहुत हो चुकी राजनीतिक अब अपने वादों पर अमल करो
....यूं तो सरकारें जनता के द्वारा और जनता के लिये चुनी जाती हैं इस आदर्श सूत्र के साथ ही केन्द्र और राज्य का शासन चलता है और इस शासन चलाने के लिये राजनेताओं को जनता से लोक लुभावने तरह-तरह के वादे भी करना पड़ते हैं लेकिन उन वादों को धरातल पर उतारने के लिये भी राजनेताओं में इच्छाशक्ति भी होना चाहिए, हालांकि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान में इसकी कोई कमी नहीं है उनकी ही विकास की इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि आज प्रदेश इस मुकाम पर खड़ा है, मगर अभी यह दावा किया जाए कि भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश की सत्ता में काबिज होने के लिए जो वायदे प्रदेश की जनता के समक्ष किए थे वह पूरे कर दिए गए जिनकी बदौलत प्रदेश का चहुंमुखी विकास चहुंओर नजर आ रहा है। लेकिन सत्ताधीशों के इस दावे में दम नहीं है लेकिन भाजपा नेताओं के वादे और सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन पर नजर डालें तो आज भी २००३, २००८ और २०१३ में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के दौरान इस पार्टी के नेताओं ने जो वायदे और सपने प्रदेश की जनता को दिखाए वह कहीं नजर नहीं आ रहे हैं, जहां तक बिजली की समस्या का सवाल है प्रदेश में आज भी बिजली की यह स्थिति है कि कहीं खंबे हैं तो बिजली नहीं और बिजली है तो खंबे नहीं इसके बाद भी सरकार का यह दावा कि वह २४ घंटे प्रदेश की जनता को बिजली उपलब्ध करा रही है, जहां तक सड़कों का सवाल है तो सड़कों का मकडज़ाल तो दिखाई दे रहा है लेकिन वह सड़कें किस गुणवत्ता की बनी हैं यह तो उन पर चलने पर ही नजर आता है और बात पानी की करें तो २००३ से लेकर अभी तक पानी को लेकर करोड़ों रुपए इस समस्या को हल करने के लिये बहा दिये गये लेकिन प्रदेश की आज भी दो तिहाई से अधिक जनता शुद्ध पानी के लिए तरस रही है, लेकिन सरकारी दावे के बावजूद भी उन्हें आज तक शुद्ध पानी नहीं मिल पा रहा है, बल्कि यह स्थिति है कि संविधान में दिये गये भारतीय नागरिकों के मूल अधिकारों में भी कटौती करने में यह सरकार नहीं चूक रही है। संविधान में प्रदत्त मूल सुविधाओं में प्रदेश के नौनिहालों को यह सरकार शिक्षा उपलब्ध नहीं करा पा रही है, सरकारी शिक्षण संस्थाओं की यह स्थिति है कि वह निजी शिक्षण संस्थाओं में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की संख्या को जोड़कर अपनी वाहवाही लूटने में लगी हुई है तो वहीं लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने का दावा करने वाली सरकार इस मामले में पूरी तरह से असफल साबित होती नजर आ रही है तभी तो प्रदेश के २७ जिलों के नागरिकों को दी जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है, स्वर्णिम मध्यप्रदेश के सपने दिखाने के नाम पर उद्योगों के लगाए जाने का जो दावा किया जा रहा है लेकिन वह भी सिर्फ कागजों में नजर आ रहा है न कि धरातल पर, राज्य में भ्रष्टाचार का यह आलम है कि सत्ताधीशों से लेकर पटवारी तक हर कोई भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुूबकी लगाने में लगा हुआ है, इसका जीता जागता प्रमाण है आये दिन रिश्वत लेते पकड़े जा रहे सरकारी कर्मी, इससे यह साफ जाहिर होता है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार किस तरह से व्याप्त है। हमारे जननायकों ने गरीब किसानों और भूमिहीनों के लिये १५ लाख मकान बनाने का वादा किया था लेकिन उन मकानों की क्या स्थिति और वह कहां बन रहे हैं यह वही जानें। किसानों की खेती को लाभ का धंधा बनाने का सपना दिखाने वाले किसान पुत्र मुख्यमंत्री के दावों की यह स्थिति है कि उनके शासनकाल के दस वर्षों के दौरान किसानों की खेती तो लाभ का धंधा नहीं बनी लेकिन वह इन पीडि़त किसानों के जख्मों पर अपनी खेती का बढ़चढ़कर बखान करने व नमक छिड़कने का काम करने में लगे हुए हैं हालांकि उनके इस दावे को लेकर राज्य के कृषि विशेषज्ञ इस उधेड़बुन में लगे हुए हैं कि कुछ एकड़ उनके फार्म हाउस में तीस लाख के अनार कैसे और किस तकनीक से पैदा हो रहे हैं तो वहीं कुछ ही एकड़ जमीन में लाखों रुपये के फूल कहां बिक रहे हैं यह खोज का विषय उन विशेषज्ञों और प्रदेश की जनता और खासकर किसानों के लिए बना हुआ है और हर कोई किसान इस बात से उत्सुक है कि वह उनके इस बहुउपजाऊ फार्म हाउस के दर्शन करने को मिल जाएं और साथ ही वह तकनीकी का ज्ञान भी उन्हें मिले जिससे वह भी अपनी चंद एकड़ की खेती के लाखों के अनार और फूल पैदा कर सकें। खैर यह वह जानें और कृषि वैज्ञानिक कि उनके फार्म हाउस में किस-किसका उत्पादन लाखों और करोड़ों का हो रहा है मगर राज्य के किसानों की खेती तो लाभकारी साबित नहीं हो रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दस वर्ष के शासकाल की स्थिति यह है कि राज्य में हर साल बेरोजगारों की संख्या बढ़ी तो प्रदेश के वाशिंदों को बेहतर यातायात सुविधा नहीं मिल सकी, प्रदेश को कलंकित करने वाली कुपोषण की संख्या ज्यों की त्यों बनी हुई है तो वहीं विकास के नाम पर उद्योग धंधे लगाने के गोरखधंधे के बीच राज्य में प्रदूषण भी अब फैलता नजर आ रहा है, सरकारी कामकाज में जमकर भ्रष्टाचार चल रहा है जिससे आम जन बुरी तरह पीडि़त है, जहां तक कानून व्यवस्था का सवाल है राज्य में नक्सली समस्या और सिमी का भी प्रभाव बढ़ता नजर आ रहा है, तो वहीं महिलाएं बच्चे असुरक्षा के माहौल में जीने को मजबूर हैं, राज्य में दो वर्ष में १२ हजार ९३८ अपहरण की घटनाएं घटित हो चुकी हैं, सरकारी दाख दावों के बावजूद भी राज्य की सड़कों में कोई सुधार नहीं आया। दस वर्ष की बात ही क्यों करें दो वर्ष में प्रदेश सरकार बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर इस प्रदेश की जनता को नहीं दे पाई। कुल मिलाकर अब केवल वायदों और घोषणाओं का समय नहीं है अब उन्हें धरातल पर उतारने का समय है क्योंकि चुनी हुई सरकार के दो वर्ष तो यूं ही गुजर गए अब बाकी रहे तीन वर्ष जिनमें सरकार को कुछ करके दिखाने की जरूरत है जिससे लगे कि प्रदेश स्वर्णिम मध्यप्रदेश की ओर बढ़ रहा है नहीं तो २०१८ में जनता कुछ न कुछ अपना दम दिखाने में पीछे नहीं रहेगी। अब समय है अब भी बदल जाओ बातें कम ज्यादा दिखाओ।
....यूं तो सरकारें जनता के द्वारा और जनता के लिये चुनी जाती हैं इस आदर्श सूत्र के साथ ही केन्द्र और राज्य का शासन चलता है और इस शासन चलाने के लिये राजनेताओं को जनता से लोक लुभावने तरह-तरह के वादे भी करना पड़ते हैं लेकिन उन वादों को धरातल पर उतारने के लिये भी राजनेताओं में इच्छाशक्ति भी होना चाहिए, हालांकि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान में इसकी कोई कमी नहीं है उनकी ही विकास की इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि आज प्रदेश इस मुकाम पर खड़ा है, मगर अभी यह दावा किया जाए कि भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश की सत्ता में काबिज होने के लिए जो वायदे प्रदेश की जनता के समक्ष किए थे वह पूरे कर दिए गए जिनकी बदौलत प्रदेश का चहुंमुखी विकास चहुंओर नजर आ रहा है। लेकिन सत्ताधीशों के इस दावे में दम नहीं है लेकिन भाजपा नेताओं के वादे और सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन पर नजर डालें तो आज भी २००३, २००८ और २०१३ में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के दौरान इस पार्टी के नेताओं ने जो वायदे और सपने प्रदेश की जनता को दिखाए वह कहीं नजर नहीं आ रहे हैं, जहां तक बिजली की समस्या का सवाल है प्रदेश में आज भी बिजली की यह स्थिति है कि कहीं खंबे हैं तो बिजली नहीं और बिजली है तो खंबे नहीं इसके बाद भी सरकार का यह दावा कि वह २४ घंटे प्रदेश की जनता को बिजली उपलब्ध करा रही है, जहां तक सड़कों का सवाल है तो सड़कों का मकडज़ाल तो दिखाई दे रहा है लेकिन वह सड़कें किस गुणवत्ता की बनी हैं यह तो उन पर चलने पर ही नजर आता है और बात पानी की करें तो २००३ से लेकर अभी तक पानी को लेकर करोड़ों रुपए इस समस्या को हल करने के लिये बहा दिये गये लेकिन प्रदेश की आज भी दो तिहाई से अधिक जनता शुद्ध पानी के लिए तरस रही है, लेकिन सरकारी दावे के बावजूद भी उन्हें आज तक शुद्ध पानी नहीं मिल पा रहा है, बल्कि यह स्थिति है कि संविधान में दिये गये भारतीय नागरिकों के मूल अधिकारों में भी कटौती करने में यह सरकार नहीं चूक रही है। संविधान में प्रदत्त मूल सुविधाओं में प्रदेश के नौनिहालों को यह सरकार शिक्षा उपलब्ध नहीं करा पा रही है, सरकारी शिक्षण संस्थाओं की यह स्थिति है कि वह निजी शिक्षण संस्थाओं में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की संख्या को जोड़कर अपनी वाहवाही लूटने में लगी हुई है तो वहीं लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने का दावा करने वाली सरकार इस मामले में पूरी तरह से असफल साबित होती नजर आ रही है तभी तो प्रदेश के २७ जिलों के नागरिकों को दी जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है, स्वर्णिम मध्यप्रदेश के सपने दिखाने के नाम पर उद्योगों के लगाए जाने का जो दावा किया जा रहा है लेकिन वह भी सिर्फ कागजों में नजर आ रहा है न कि धरातल पर, राज्य में भ्रष्टाचार का यह आलम है कि सत्ताधीशों से लेकर पटवारी तक हर कोई भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुूबकी लगाने में लगा हुआ है, इसका जीता जागता प्रमाण है आये दिन रिश्वत लेते पकड़े जा रहे सरकारी कर्मी, इससे यह साफ जाहिर होता है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार किस तरह से व्याप्त है। हमारे जननायकों ने गरीब किसानों और भूमिहीनों के लिये १५ लाख मकान बनाने का वादा किया था लेकिन उन मकानों की क्या स्थिति और वह कहां बन रहे हैं यह वही जानें। किसानों की खेती को लाभ का धंधा बनाने का सपना दिखाने वाले किसान पुत्र मुख्यमंत्री के दावों की यह स्थिति है कि उनके शासनकाल के दस वर्षों के दौरान किसानों की खेती तो लाभ का धंधा नहीं बनी लेकिन वह इन पीडि़त किसानों के जख्मों पर अपनी खेती का बढ़चढ़कर बखान करने व नमक छिड़कने का काम करने में लगे हुए हैं हालांकि उनके इस दावे को लेकर राज्य के कृषि विशेषज्ञ इस उधेड़बुन में लगे हुए हैं कि कुछ एकड़ उनके फार्म हाउस में तीस लाख के अनार कैसे और किस तकनीक से पैदा हो रहे हैं तो वहीं कुछ ही एकड़ जमीन में लाखों रुपये के फूल कहां बिक रहे हैं यह खोज का विषय उन विशेषज्ञों और प्रदेश की जनता और खासकर किसानों के लिए बना हुआ है और हर कोई किसान इस बात से उत्सुक है कि वह उनके इस बहुउपजाऊ फार्म हाउस के दर्शन करने को मिल जाएं और साथ ही वह तकनीकी का ज्ञान भी उन्हें मिले जिससे वह भी अपनी चंद एकड़ की खेती के लाखों के अनार और फूल पैदा कर सकें। खैर यह वह जानें और कृषि वैज्ञानिक कि उनके फार्म हाउस में किस-किसका उत्पादन लाखों और करोड़ों का हो रहा है मगर राज्य के किसानों की खेती तो लाभकारी साबित नहीं हो रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दस वर्ष के शासकाल की स्थिति यह है कि राज्य में हर साल बेरोजगारों की संख्या बढ़ी तो प्रदेश के वाशिंदों को बेहतर यातायात सुविधा नहीं मिल सकी, प्रदेश को कलंकित करने वाली कुपोषण की संख्या ज्यों की त्यों बनी हुई है तो वहीं विकास के नाम पर उद्योग धंधे लगाने के गोरखधंधे के बीच राज्य में प्रदूषण भी अब फैलता नजर आ रहा है, सरकारी कामकाज में जमकर भ्रष्टाचार चल रहा है जिससे आम जन बुरी तरह पीडि़त है, जहां तक कानून व्यवस्था का सवाल है राज्य में नक्सली समस्या और सिमी का भी प्रभाव बढ़ता नजर आ रहा है, तो वहीं महिलाएं बच्चे असुरक्षा के माहौल में जीने को मजबूर हैं, राज्य में दो वर्ष में १२ हजार ९३८ अपहरण की घटनाएं घटित हो चुकी हैं, सरकारी दाख दावों के बावजूद भी राज्य की सड़कों में कोई सुधार नहीं आया। दस वर्ष की बात ही क्यों करें दो वर्ष में प्रदेश सरकार बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर इस प्रदेश की जनता को नहीं दे पाई। कुल मिलाकर अब केवल वायदों और घोषणाओं का समय नहीं है अब उन्हें धरातल पर उतारने का समय है क्योंकि चुनी हुई सरकार के दो वर्ष तो यूं ही गुजर गए अब बाकी रहे तीन वर्ष जिनमें सरकार को कुछ करके दिखाने की जरूरत है जिससे लगे कि प्रदेश स्वर्णिम मध्यप्रदेश की ओर बढ़ रहा है नहीं तो २०१८ में जनता कुछ न कुछ अपना दम दिखाने में पीछे नहीं रहेगी। अब समय है अब भी बदल जाओ बातें कम ज्यादा दिखाओ।
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