देश में लोकतंत्र कैसे चलेगा.....?
तो फिर देश में लोकतंत्र कैसे चलेगा.....?
कांग्रेस को अब पीएम के बोलने पर भी ऐतराज...
10 अगस्त को भी कांग्रेस ने संसद के दोनों सदनों को नहीं चलने दिया। गत सप्ताह निलंबित हुए कांग्रेस के 25 सांसद 10 अगस्त को भी फिर तख्तियां और काली पट्टी बांध कर लोकसभा में आ गए और अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को चिढ़ाने लगे। लेकिन अध्यक्ष भी ऐसे सांसदों का कुछ नहीं बिगाड़ सकी। उधर राज्य सभा में गुलाब नबी आजाद ने पीएम मोदी के बिहार में दिए गए बयान पर ऐतराज जताया और कहा कि मोदी को बोलना तक नहीं आता है। संसद में चुप रहने वाले राहुल गांधी ने बाहर बड़े गर्व के साथ कहा कि संसद तभी चल पाएगी, जब सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह का इस्तीफा आ जाएगा। राहुल ने कहा कि सुषमा यह बताए कि उनके परिवार के सदस्यों को भगौड़े ललित मोदी से कितनी धनराशि प्राप्त हुई है।
संसद का मानसून सत्र गत 21 जुलाई को शुरू हुआ था, लेकिन कांग्रेस के हंगामे की वजह से दोनों सदनों में एक दिन भी कार्य नहीं हुआ। अब 14 अगस्त को मानसून सत्र की समाप्ति हो रही है। सवाल उठता है कि आखिर यह कैसा लोकतंत्र है, जिसमें मात्र 44 सदस्यों वाला दल संसद को चलने नहीं दे रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की संसद की अध्यक्ष स्वयं को लाचार समझ रही हैं। कांग्रेस इसी में अपनी जीत मान रही है कि उसने संसद को चलने नहीं दिया है। जबकि भाजपा ने यह दर्शा दिया है कि संसद चाहे कितने भी दिन ठप रहे, लेकिन किसी भी मंत्री और मुख्यमंत्री का इस्तीफा नहीं होगा। दोनों ही दल अपनी-अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। भाजपा का यह कथन सही हो सकता है कि जब देश की जनता ने 282 सांसदों को जीता कर भेजा है, तो उसे सरकार चलाने का अवसर दिया जाना चाहिए। लेकिन वहीं हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली में सरकार के सभी निणर्यों पर संसद की मोहर लगवाना जरूरी है। मोदी सरकार ने अपने निर्णयों के तहत जो बिल संसद में रखे हैं, उन पर कोई चर्चा नहीं हो रही है। असल में होना तो ये चाहिए कि सरकार ने जो बिल रखे हैं, उस पर विपक्ष की क्या राय है, लेकिन हो इसका उल्टा रहा है। सरकार के निर्णयों पर बहस के बजाए मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे को लेकर संसद को ठप कर दिया गया है। जब संसद ही नहीं चलेगी तो फिर मोदी सरकार के निर्णय कानून में कैसे बदलेंगे। जहां तक क्षेत्रीय दलों का सवाल है तो उनकी नीति मौका परस्त रही है। मुलायम सिंह यादव सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस के खिलाफ होने की बात करते हैं, तो राज्यसभा में मुलायम की समाजवादी पार्टी के सदस्य नरेश अग्रवाल सुषमा स्वराज का इस्तीफा मांगते हैं। असल में मुलायम सिंह जैसे नेताओं की कोई नीति ही नहीं है। ऐसे नेता अपने राजनीतिक स्वार्थों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेते हैं।
(डॉ. नवीन आनंद )
कांग्रेस को अब पीएम के बोलने पर भी ऐतराज...
10 अगस्त को भी कांग्रेस ने संसद के दोनों सदनों को नहीं चलने दिया। गत सप्ताह निलंबित हुए कांग्रेस के 25 सांसद 10 अगस्त को भी फिर तख्तियां और काली पट्टी बांध कर लोकसभा में आ गए और अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को चिढ़ाने लगे। लेकिन अध्यक्ष भी ऐसे सांसदों का कुछ नहीं बिगाड़ सकी। उधर राज्य सभा में गुलाब नबी आजाद ने पीएम मोदी के बिहार में दिए गए बयान पर ऐतराज जताया और कहा कि मोदी को बोलना तक नहीं आता है। संसद में चुप रहने वाले राहुल गांधी ने बाहर बड़े गर्व के साथ कहा कि संसद तभी चल पाएगी, जब सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह का इस्तीफा आ जाएगा। राहुल ने कहा कि सुषमा यह बताए कि उनके परिवार के सदस्यों को भगौड़े ललित मोदी से कितनी धनराशि प्राप्त हुई है।
संसद का मानसून सत्र गत 21 जुलाई को शुरू हुआ था, लेकिन कांग्रेस के हंगामे की वजह से दोनों सदनों में एक दिन भी कार्य नहीं हुआ। अब 14 अगस्त को मानसून सत्र की समाप्ति हो रही है। सवाल उठता है कि आखिर यह कैसा लोकतंत्र है, जिसमें मात्र 44 सदस्यों वाला दल संसद को चलने नहीं दे रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की संसद की अध्यक्ष स्वयं को लाचार समझ रही हैं। कांग्रेस इसी में अपनी जीत मान रही है कि उसने संसद को चलने नहीं दिया है। जबकि भाजपा ने यह दर्शा दिया है कि संसद चाहे कितने भी दिन ठप रहे, लेकिन किसी भी मंत्री और मुख्यमंत्री का इस्तीफा नहीं होगा। दोनों ही दल अपनी-अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। भाजपा का यह कथन सही हो सकता है कि जब देश की जनता ने 282 सांसदों को जीता कर भेजा है, तो उसे सरकार चलाने का अवसर दिया जाना चाहिए। लेकिन वहीं हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली में सरकार के सभी निणर्यों पर संसद की मोहर लगवाना जरूरी है। मोदी सरकार ने अपने निर्णयों के तहत जो बिल संसद में रखे हैं, उन पर कोई चर्चा नहीं हो रही है। असल में होना तो ये चाहिए कि सरकार ने जो बिल रखे हैं, उस पर विपक्ष की क्या राय है, लेकिन हो इसका उल्टा रहा है। सरकार के निर्णयों पर बहस के बजाए मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे को लेकर संसद को ठप कर दिया गया है। जब संसद ही नहीं चलेगी तो फिर मोदी सरकार के निर्णय कानून में कैसे बदलेंगे। जहां तक क्षेत्रीय दलों का सवाल है तो उनकी नीति मौका परस्त रही है। मुलायम सिंह यादव सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस के खिलाफ होने की बात करते हैं, तो राज्यसभा में मुलायम की समाजवादी पार्टी के सदस्य नरेश अग्रवाल सुषमा स्वराज का इस्तीफा मांगते हैं। असल में मुलायम सिंह जैसे नेताओं की कोई नीति ही नहीं है। ऐसे नेता अपने राजनीतिक स्वार्थों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेते हैं।
(डॉ. नवीन आनंद )
Comments
Post a Comment