अक्‍ल से बड़ी गैस!


चुनाव आयोग ने वाजिब ऐतराज लिया है कि मतदान के ऐन पहले रियायती गैस सिलेंडरों की संख्या बढ़ाने की मंशा नीयत की खराबी है।विभागीय मंत्री वीरप्‍पा मोइली ने घोषणा में भले सफाई जोड़ दी है कि इसका चुनाव से लेना-देना नहीं और अभी यह प्रस्ताव कैबिनेट में मंजूर होना बाकी है, लेकिन सब समझ गए हैं कि गैस के कारण कांग्रेस की चुनावी हवा निकली हुई है। गरीब और मध्यम वर्ग की नाराजी का अंदेशा कांग्रेस को हो गया है और वह छह से नौ और अंत में रियायती सिलेंडरों की संख्या बारह करेगी, लेकिन गुजरात चुनाव के समय ही यह मंशा क्‍यों जताई? यह काम मतदान के बाद या आचार संहिता लागू होने के पहले भी तो हो सकता था। माना कि ढाई दर्जन राज्यों में वाले देश में कहीं न कहीं चुनाव चलते रहते हैं, लेकिन कायदा भी तो कोई चीज है और उसका पालन होना चाहिए। दो चुनावों के बीच इतना अंतर तो रहता ही है कि सरकार अपनी गलती सुधार सके।
दरअसल, गैस के बारे में कांग्रेस सरकार मुंह के बल गिरी है और इस गलत फैसले से उसका वोटर भी खफा हुआ है। तीन हजार करोड़ का गैस सब्‍सडी घाटा पाटने के और भी रास्ते थे, जिनसे यह कमी पूरी हो जाती और रसोई में आम आदमी हाय-हाय नहीं करता। फिर भी यदि बढ़ाने ही थे तो एक समान सभी सिलेंडरों पर बढ़ा देते और उपभोक्‍ता को कई तरह की जटिल खानापूर्ति से बचा लेते। इससे कालाबाजारी भी नहीं बढ़ती और न जरूरत के सिलेंडर लेने में दिक्‍कत आती। लगता है खास लोग आम के बारे में भी खास तरीके से ही सोचते हैं, तभी तो किए गए फैसलों पर आम राय जानकर उनकी सांस फूल जाती है और वो उसे वापस लेने के भोंडे तरीके इस्तेमाल करते हैं, जैसा मोइली ने किया और आयोग की डांट खाई।

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