मुर्दा घोड़े पर कोड़े
जिन्हें चौथे टेस्ट से बाहर किया गया है, उनके नाम तो पहले से ही तय थे। ट्वेंटी-ट्वेंटी के लिए जिस टीम का ऐलान किया गया है, वो भी पहले से ही तय थी।
संदीप पाटिल एंड कम्पनी ने ऐसा कौन-सा कारनामा कर दिया, जिसका जिक्र किया जा सके! जिन्हें टीम से बाहर होना था, फॉर्म के आधार पर उन्हें ही टीम में रखा गया है। रस्म निभानी थी तो निभा दी, पर हासिल क्या हुआ। वही पुराने चेहरे सामने आए हैं, जो हम पहले भी देख चुके हैं। अंडर- 19, अंडर-21 की विश्व विजेता टीम का एक भी बंदा उस टीम में नहीं है, जिसकी कप्तानी धोनी कर रहे हैं। धोनी को लक्ष्मण, सौरव और द्रविड़ की तरह हाथ जोड़कर क्रिकेट को हमेशा के लिए अलविदा कह देना चाहिए, लेकिन जिस बेशर्मी के साथ उन्होंने हार के बाद कहा कि हम नागपुर टेस्ट जीतकर सीरिज बराबर कर देंगे तो हैरानी नहीं हुई। बोलने में वे माहिर हैं, इसीलिए मार्केटिंग की दुनिया में मशहूर हैं। सौरव ने अच्छी बात कही कि सिलेक्टर्स के कानों में सीसा भर दिया गया है और वो एक आंख के घोड़े की तरह टीम बना रहे हैं।
सहवाग कहां-कहां से टूटे हैं, इसकी जानकारी किसके पास है? इशांत शर्मा को क्यों लाए, जबकि वो दो साल से अनफिट हैं। आशीष नेहरा कह रहे हैं कि इशांत पहले से ही फिट नहीं थे और चोट छिपाकर टीम में खेल रहे हैं। जहीर खान को बाहर कर दिया गया। बाएं बाजू का ये गेंदबाज पहले से ही थका हुआ था, जबर्दस्ती उसे खेलाया गया। हरभजन को क्यों झेला गया है, ये बात समझ से परे है। टीवी पर किरण मोरे से लेकर न जाने कितने पुराने जानकार अपनी गलतियों को कुबूल कर रहे थे और कह रहे थे कि जूनियर लड़कों को जब तक आगे नहीं लाएंगे, भारत की हालत ऐसी ही होती रहेगी। पाटिल एंड कम्पनी में अगर ताकत होती तो धोनी और सचिन को फॉर्म के आधार पर बाहर देते, लेकिन ऐसा उन्होंने नहीं किया। इसकी कई वजह हो सकती हैं। मरे घोड़े पर कोड़े कोई कोई भी फटकार सकता है और यही काम हुआ। सौरव गांगुली ने जिस तरह से धोनी की कप्तानी पर सवालिया निशान लगाए हैं, वो टीम और सिलेक्टर्स की हालत बया कर रहे हैं। टीम में आने का पैमाना खिलाड़ी का प्रदर्शन होता है। लगातार खराब होता जाए तो खिलाड़ी को बाहर कर दिया जाता है तो फिर धोनी- सचिन के मामले में इतनी नरमी क्यों बरती गई?
संदीप पाटिल एंड कम्पनी ने ऐसा कौन-सा कारनामा कर दिया, जिसका जिक्र किया जा सके! जिन्हें टीम से बाहर होना था, फॉर्म के आधार पर उन्हें ही टीम में रखा गया है। रस्म निभानी थी तो निभा दी, पर हासिल क्या हुआ। वही पुराने चेहरे सामने आए हैं, जो हम पहले भी देख चुके हैं। अंडर- 19, अंडर-21 की विश्व विजेता टीम का एक भी बंदा उस टीम में नहीं है, जिसकी कप्तानी धोनी कर रहे हैं। धोनी को लक्ष्मण, सौरव और द्रविड़ की तरह हाथ जोड़कर क्रिकेट को हमेशा के लिए अलविदा कह देना चाहिए, लेकिन जिस बेशर्मी के साथ उन्होंने हार के बाद कहा कि हम नागपुर टेस्ट जीतकर सीरिज बराबर कर देंगे तो हैरानी नहीं हुई। बोलने में वे माहिर हैं, इसीलिए मार्केटिंग की दुनिया में मशहूर हैं। सौरव ने अच्छी बात कही कि सिलेक्टर्स के कानों में सीसा भर दिया गया है और वो एक आंख के घोड़े की तरह टीम बना रहे हैं।
सहवाग कहां-कहां से टूटे हैं, इसकी जानकारी किसके पास है? इशांत शर्मा को क्यों लाए, जबकि वो दो साल से अनफिट हैं। आशीष नेहरा कह रहे हैं कि इशांत पहले से ही फिट नहीं थे और चोट छिपाकर टीम में खेल रहे हैं। जहीर खान को बाहर कर दिया गया। बाएं बाजू का ये गेंदबाज पहले से ही थका हुआ था, जबर्दस्ती उसे खेलाया गया। हरभजन को क्यों झेला गया है, ये बात समझ से परे है। टीवी पर किरण मोरे से लेकर न जाने कितने पुराने जानकार अपनी गलतियों को कुबूल कर रहे थे और कह रहे थे कि जूनियर लड़कों को जब तक आगे नहीं लाएंगे, भारत की हालत ऐसी ही होती रहेगी। पाटिल एंड कम्पनी में अगर ताकत होती तो धोनी और सचिन को फॉर्म के आधार पर बाहर देते, लेकिन ऐसा उन्होंने नहीं किया। इसकी कई वजह हो सकती हैं। मरे घोड़े पर कोड़े कोई कोई भी फटकार सकता है और यही काम हुआ। सौरव गांगुली ने जिस तरह से धोनी की कप्तानी पर सवालिया निशान लगाए हैं, वो टीम और सिलेक्टर्स की हालत बया कर रहे हैं। टीम में आने का पैमाना खिलाड़ी का प्रदर्शन होता है। लगातार खराब होता जाए तो खिलाड़ी को बाहर कर दिया जाता है तो फिर धोनी- सचिन के मामले में इतनी नरमी क्यों बरती गई?
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