दीनदयाल शोध संस्थान का मूल आधार 'रामदर्शन'
दीनदयाल शोध संस्थान के कार्य का मूल आधार है प्रभु राम के जीवन से प्राप्त प्रेरणा। उसी को राम दर्शन के रूप में स्थापित किया गया है, जिसमें भगवान राम के उन पहलुओं को उजागर किया गया है, जो समाज जीवन की प्रेरणा देते हैं। उद्यमिता विद्यापीठ और सुरेन्द्र पाल ग्रामोदय विद्यालय से जुड़ा राम दर्शन कोई तीर्थस्थल की बजाय प्रेरणास्थल है। उसके निर्माण के पीछे नानाजी देशमुख का उद्देेश्य कर्मशील राम का रूप सामने लाना। राम दर्शन देखने वालों में आम से लेकर खास तक हैं। पूरे साल में राम दर्शन आने वालों की संख्या एक लाख के आसपास पहुंच चुकी है। हर माह अमावस्या के समय आने वाले श्रद्घालु में अधिकांश रामदर्शन देखने पहुंचते हैं। पूरे साल में रामदर्शन देखने वालों की संख्या में लगातार वृद्घि दर्ज की जा रही है। मालूम हो कि प्रभु राम के प्रति समाज में असीम श्रद्घा है। बावजूद इसके लोगों में परस्पर सहानुभूति का भाव पनप नहीं पा रहा। दीनदयाल शोध संस्थान इस कार्य को ध्यान में रख राम दर्शन के रूप में लोगों के सामने ऐसी झांकी प्रस्तुत की है, जिसे आज की आवश्यकता अनुसार शिक्षित व सक्षम लोग अपने लोगों में फैली निरक्षरता, गरीबी, बेकारी मिटाने के लिए कदम बढ़ा सके। वर्तमान काल की चिंताजनक अवस्था में उबरने के लिए राम से अधिक प्रासंगिक प्रेरक तथा अनुकरणीय व्यक्तित्व किसी और का नहीं है। राजसत्ताविहीन होते हुए भी राम ने विराट लोकशक्ति खड़ी कर अत्याचारी रावण को परास्त किया था। राम दर्शन में भगवान राम के वनवासकालीन कार्यों के वह प्रसंग प्रदर्शित हैं, जो समाज में समरसता विकसित करने की प्रेरणा देते हैं। सत्ताभिमुखी बन परावलंबी बने रहने के स्थान पर युवाओं में आत्मविश्वास तथा स्वपराक्रम की भावना लगाने वाले प्रसंग लोगों को समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों का सहयोग करने का मानस बनाते हैं। यह प्रदर्शनी न्याय एवं प्रामाणिकता पर चट्टान के समान अडिग रहने की मानसिक विकसित करते हैं ।
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