नेहरू गांधी परिवार के निशाने पर गुजरात
नेहरू गांधी परिवार के निशाने पर गुजरात
इतिहास अक्सर स्वयं को दोहराता है। गुजरात के नेताओं और नेहरू परिवार के संबंधों में यह दोहराव तो साफ-साफ जाहिर हो रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र से विनम्रतापूर्वक पूछा कि उनसे केंद्र (इसे सोनिया गांधी समझें) किस बात के लिए दुश्मनी निभा रहा है? नरेन्द्र मोदी को भी यह पता होना चाहिए कि नेहरू गांधी परिवार ने हमेशा गुजरात के साथ दुश्मनी रखी हैं। नेहरू के समय में सरदार पटेल निशाने पर थे तो आज नरेन्द्र मोदी उस खानदान के निशाने पर हैं।

एक आतंकवादी सोहराबुद्दीन शेख की पुलिस मुठभेड़ के मुद्दे पर केंद्र के इशारों पर सीबीआई ने किस तरह सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश जस्टिस तरुण चटर्जी को घेरा यह न्यायपालिका के गलियारे में सर्वश्रुत हो चुका है। जस्टिस तरुण चटर्जी से बड़े ही संदिग्ध ढंग से सीबीआई जांच का आदेश प्राप्त कर सीबीआई के अधिकारियों ने गुजरात के गृह राज्य मंत्री अमित शाह को गिरफ्तार कर लिया। सीबीआई की विशेष अदालत ने अमित शाह की सीबीआई रिमांड की मांग को ठुकरा दिया था। सीबीआई आनन -फानन में हाई कोर्ट गयी और जुम्मे के दिन सीबीआई को हाई कोर्ट के जिन जज ने रिमांड देने का निर्देश दिया संयोग से वे उसी अल्पसंख्यक समुदाय से थे जिनका मुखालिफ नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम को माना जाता है। हम न्यायपालिका पर मजहबी आधार पर कोई संदेह नहीं कर रहे हैं लेकिन जिस अंदाज में केन्द्रीय एजेंसियों ने सरकार के इशारे पर गुजरात की नरेन्द्र मोदी सरकार को घेरना शुरू किया है, जिस तरह न्यायपालिका सरकार के चंगुल में है उससे हर बात पर संदेह तो खड़ा ही होता है। सोनिया गांधी की नजर में नरेन्द्र मोदी उनके सुपुत्र राहुल गांधी की ताजपोशी में सबसे बड़ी बाधा हैं. इसलिए वे भाजपा की चुनौती को नेस्तनाबूद करने के लिए मोदी को किसी भी कीमत पर कानून की सूली पर चढ़ा देना चाहती हैं। केंद्र और गुजरात की राजनीति का पंडित जवाहरलाल नेहरु के जमाने से यही हाल है. पंडित नेहरू को हमेशा अपनी कुर्सी के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल खतरा नजर आते थे। १९४६ में यदि सरदार वल्लभ भाई पटेल कांग्रेस के अध्यक्ष हो जाते तो स्वतंत्र भारत केप्रथम प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक चयन वही होते। इस तथ्य को महात्मा गांधी भलीभांति जानते थे सो उन्होंने सरदार पटेल पर दबाव बना कर उनका नाम अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी से वापस करा दिया था। कांग्रेस में सरदार पटेल को व्यापक समर्थन प्राप्त था। उन दिनों देश में कांग्रेस की १५ प्रांतीय समितियां थीं। इनमे से १२ प्रांतीय समितियों ने सरदार पटेल के नाम का अनुमोदन किया था।

एक आतंकवादी सोहराबुद्दीन शेख की पुलिस मुठभेड़ के मुद्दे पर केंद्र के इशारों पर सीबीआई ने किस तरह सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश जस्टिस तरुण चटर्जी को घेरा यह न्यायपालिका के गलियारे में सर्वश्रुत हो चुका है। जस्टिस तरुण चटर्जी से बड़े ही संदिग्ध ढंग से सीबीआई जांच का आदेश प्राप्त कर सीबीआई के अधिकारियों ने गुजरात के गृह राज्य मंत्री अमित शाह को गिरफ्तार कर लिया। सीबीआई की विशेष अदालत ने अमित शाह की सीबीआई रिमांड की मांग को ठुकरा दिया था। सीबीआई आनन -फानन में हाई कोर्ट गयी और जुम्मे के दिन सीबीआई को हाई कोर्ट के जिन जज ने रिमांड देने का निर्देश दिया संयोग से वे उसी अल्पसंख्यक समुदाय से थे जिनका मुखालिफ नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम को माना जाता है। हम न्यायपालिका पर मजहबी आधार पर कोई संदेह नहीं कर रहे हैं लेकिन जिस अंदाज में केन्द्रीय एजेंसियों ने सरकार के इशारे पर गुजरात की नरेन्द्र मोदी सरकार को घेरना शुरू किया है, जिस तरह न्यायपालिका सरकार के चंगुल में है उससे हर बात पर संदेह तो खड़ा ही होता है। सोनिया गांधी की नजर में नरेन्द्र मोदी उनके सुपुत्र राहुल गांधी की ताजपोशी में सबसे बड़ी बाधा हैं. इसलिए वे भाजपा की चुनौती को नेस्तनाबूद करने के लिए मोदी को किसी भी कीमत पर कानून की सूली पर चढ़ा देना चाहती हैं। केंद्र और गुजरात की राजनीति का पंडित जवाहरलाल नेहरु के जमाने से यही हाल है. पंडित नेहरू को हमेशा अपनी कुर्सी के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल खतरा नजर आते थे। १९४६ में यदि सरदार वल्लभ भाई पटेल कांग्रेस के अध्यक्ष हो जाते तो स्वतंत्र भारत केप्रथम प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक चयन वही होते। इस तथ्य को महात्मा गांधी भलीभांति जानते थे सो उन्होंने सरदार पटेल पर दबाव बना कर उनका नाम अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी से वापस करा दिया था। कांग्रेस में सरदार पटेल को व्यापक समर्थन प्राप्त था। उन दिनों देश में कांग्रेस की १५ प्रांतीय समितियां थीं। इनमे से १२ प्रांतीय समितियों ने सरदार पटेल के नाम का अनुमोदन किया था।
महात्मा गांधी ने जब सरदार पटेल को नाम वापस लेने के लिए राजी कर लिया तो अधिकाँश दिग्गज नेताओं ने गांधी के इस निर्णय का विरोध भी किया था। उन दिनों डी.पी. मिश्र मध्यप्रांत के गृहमंत्री थे। पंडित नेहरू के चैथी बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने जाने पर डी.पी.मिश्र अत्यंत खिन्न हुए उन्होंने सरदार पटेल को इसके विरोध में एक पत्र लिख मारा। सरदार पटेल नेहरू की कमियों को जानते थे। लेकिन उनके सामने महात्मा गांधी के शब्दों की बाधा थी। तत्कालीन स्थिति का बड़ा ही मार्मिक वर्णन सरदार पटेल द्वारा डी.पी.मिश्र के पत्र के जवाबी पत्र में मिलता है। सरदार पटेल लिखते हैं कि पंडित नेहरू अक्सर बच्चों जैसी नादानी किया करते हैं,जिसके चलते देश के समक्ष अक्सर मुश्किलें खड़ी हो जाया करती हैं। सरदार लिखते हैं “कश्मीर में उनके (नेहरु) द्वारा किया गए कार्य संविधान सभा के लिए सिख चुनाव में हस्तक्षेप और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के तुरंत बाद उनके द्वारा आयोजित प्रेस कांफ्रेंस -सभी कार्य उनकी भावनात्मक अस्वस्थता को दर्शाते हैं। जिससे इन मामलों को सुलझाने के लिए हम पर काफी दबाव आ जाता है।” सरदार पटेल तो गांधी के कहने पर नेहरू के लिए सत्ता का सबसे बड़ा आसन छोड़ दे रहे थे लेकिन दूसरी ओर नेहरू मौका पाते ही सरदार के साथ घात कर रहे थे। नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल की जो पहली सूची भेजी उसमे सरदार पटेल का नाम गायब था। कालांतर में मजबूरी में नेहरू को सरदार पटेल को अपने मंत्रिमंडल में उप प्रधानमंत्री बनाना पडा और उन्हें गृह और सूचना-प्रसारण मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग सौंपने पड़े।
पंडित नेहरू ने योजनाबद्ध ढंग से सरदार पटेल को मुस्लिम विरोधी साबित करने का अभियान चलाया। इस काम के लिए नेहरू ने पद्मजा नायडू, मृदुला साराभाई और रफी अहमद किदवई को आगे किया। इन तीनों की मदद से नेहरू ने सरदार पटेल को घोर मुस्लिम विरोधी और पदलोलुप सिद्ध किया,बात यहाँ तक बढ़ गयी कि महात्मा गांधी ने एक दिन सरदार पटेल को पत्र लिख दिया कि “ मुझे तुम्हारे खिलाफ कई शिकायतें सुनने को मिली हैं। तुम्हारे भाषण भड़काऊ होते हैं। तुमने मुस्लिम लीग को नीचा दिखाने की कोई कसर नहीं छोड़ रखी। लोग तो कहते हैं कि तुम किसी भी स्थिति में पद पर बने रहना चाहते हो।” जिन महात्मा गांधी के एक बार कहने पर सरदार पटेल ने प्रधानमंत्री पद का मौका छोड़ दिया था,उन्हें भी यदि नेहरू के तिलंगों के प्रचार के सामने सरदार पटेल की पदलोलुपता पर शक हो गया तो आसानी से समझा जा सकता है कि गुजरात के कर्णधार के बारे में केंद्र का दुष्प्रचार कितना व्यापक होता है। सनद रहे कि आजकल नरेन्द्र मोदी के खिलाफ गुजरात में दुष्प्रचार करने वाली मल्लिका साराभाई सरदार पटेल के खिलाफ अभियान चलनेवाली मृदुला साराभाई की वंशज हैं। गांधीजी के इस पत्र का सरदार पटेल पर गहरा आघात लगा। उन्होंने ७ जनवरी १९४७ को गांधीजी को पत्र लिखा जिसमें स्पष्ट उल्लेख था कि पंडित नेहरू ने उन्हें पद छोड़ने के लिए दबाव डालते हुए स्पष्ट धमकी दी थी,जिसे उन्होंने अस्वीकार किया था,क्योंकि इससे कांग्रेस की गरिमा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता। अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को निराधार बताते हुए सरदार ने गांधीजी को साफ बताया था कि ये अफवाहें उनके खिलाफ मृदुला साराभाई द्वारा ही फैलाई गयी होंगी जिसने उनके खिलाफ अफवाहें फैलाने का शौक पाल लिया था। सरदार पटेल ने अपने पत्र में यहाँ तक बताया था कि मृदुला ने तो अफवाह फैला रखी है कि मैं नेहरू से अलग होकर नयी पार्टी बनाने जा रहा हूँ।
सरदार पटेल और पंडित नेहरू के बीच अधिकाँश मतभेद नेहरू के छद्म धर्मनिरपेक्षतावाद के चलते थे। पंडित नेहरू अपनी वैश्विक छवि के चक्कर में अक्सर हिन्दू विरोधी और मुस्लिम तुष्टीकरण के लिहाज से फैसले लेते थे। सरदार उनके खिलाफ अड़ जाया करते थे। हैदराबाद के मामले में पंडित नेहरू सैनिक कार्रवाई के सख्त खिलाफ थे। उनका मानना था कि सैन्य कार्रवाई से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जटिलता खड़ी हो सकती है। लेकिन सरदार पटेल और एन.जी. रंगा जैसे नेता तत्काल कार्रवाई के पक्ष में थे। रंगा का मानना था नेहरू,मौलाना आजाद और लोर्ड माउंट बेटन हैदराबाद में कश्मीर की तरह का निर्णय चाहते थे। रंगा ने लिखा है कि यदि सरदार इस तिकड़ी की सुन लेते तो हैदराबाद का मामला हमेशा के लिए उलझ जाता। एक बार सरदार पटेल ने स्वयं एम.वी.कामत को बताया था “यदि जवाहर लाल नेहरू और गोपाल स्वामी आयंगर कश्मीर मुद्दे पर हस्तक्षेप न करते और इस मसले को गृह मंत्रालय से अलग न करते तो मैं हैदराबाद की तरह ही इस मुद्दे को भी आसानी से देश-हित में सुलझा लेता।” महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरदार विरोधियों ने पंडित नेहरू के इशारे पर सरदार पटेल के खिलाफ जोरदार अभियान छेड दिया गया। विरोधियों का आरोप था कि सरदार पटेल हिन्दू अतिवादियों के प्रति सहानुभूति रखते थे इसी के चलते उन्होंने २० जनवरी १९४८ को महात्मा गांधी पर जानलेवा हमले के प्रयास के बावजूद उनकी सुरक्षा में जानबूझ कर उचित बंदोबस्त नहीं किया।
५ फरवरी १९४८ को संविधान सभा में सरदार पटेल पर गांधीजी की सुरक्षा के उपायों के बारे में सवालों की बौछार हो गयी। सरदार पटेल ने संविधान सभा में स्पष्ट किया कि किस तरह बिड़ला भवन में गांधीजी के विरोध के बावजूद समुचित सुरक्षा प्रबंध था। इसके एक दिन पहले कांग्रेस के विधायक दल की सभा में नेहरू समर्थक कांग्रेस की समाजवादी लॉबी ने सरदार पटेल को लगभग गांधीजी का हत्यारा ही सिद्ध कर दिया था। इस दिन तो खुद सरदार पटेल इतने ज्यादा आहत हुए थे कि अपने जोशीले जवाब के दौरान वे इतने भावुक हुए कि अपना वक्तव्य पूरा किये बिना ही सभा से बाहर चले गए थे। यदि कांग्रेस में सरदार पटेल को व्यापक समर्थन न प्राप्त होता तो नेहरू समर्थक वीर सावरकर की तरह ही संभव था कि सरदार पटेल पर भी महात्मा गांधी के हत्याकांड का फर्जी मुकद्दमा ही चला देते। जब नेहरू की समझ में आया कि सरदार पटेल को वह किनारे नहीं लग सकते तो संविधान सभा में सरदार पटेल के स्पष्टीकरण के बाद उन्होंने सरदार को पत्र लिख कर तात्कालिक संधि कर ली। नेहरू ने अपने पत्र में लिखा था “बापू के निधन के बाद अब सब कुछ बदल गया है और अब हमें पहले से भी अधिक कठिन परिस्थियों का सामना करना है। पुराने विवादों और मतभेदों का अब कोई महत्त्व नहीं रहा और मुझे लगता है कि हमने अब मिलकर काम करना चाहिए। यही समय की मांग है। इसके अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है। मैं तुमसे मिलकर ढेर सारी बातें करना चाहता था,लेकिन अत्यधिक व्यस्तता के चलते लम्बे समय से हम एक दूसरे से व्यक्तिगत रूप से मिल भी नहीं पा रहे थे। मुझे आशा है, हम जल्दी ही मिलकर आपसी मतभेदों और गलतफहमियों को दूर कर लेंगे।”
सरदार पटेल तो पहले से ही चाहते थे कि नेहरू चमचों की फौज से मुक्त हो जाएँ। उन्होंने नेहरू के इस पत्र का जवाब दिया। “ मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ कि हमें आपसी बातचीत के लिए समय निकालाना होगा। ताकि हम अपने दृष्टिकोण से एक-दूसरे को अवगत करा सकें और मतभेदों को दूर कर सक।“ नेहरू और पटेल के बीच यह समझौता ज्यादा दिन नहीं चला। १९४८-५० के बीच पूर्वी बंगाल(बंगलादेश) से बड़े पैमाने पर हिन्दुओं को बाहर किया जाने लगा। जब बड़े पैमाने पर हिन्दू पश्चिम बंगाल आने लगे तो बंगाल से प्रतिरोध के स्वर उठने लगे। नेहरू मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों के चलते इस पर मौन साधे हुए थे। बांग्लादेश यानी तत्कालीन पाकिस्तान में हिदुओं पर अत्याचार बढ़ने लगा। इस पर सरदार पटेल ने पंडित नेहरू को पत्र लिखा कि हमें पाकिस्तान सरकार को स्पष्ट कर देना चाहिए यदि पूर्वी बंगाल से इसी तरह हिदुओं को भारत भेजा जाता रहा तो हमें विवश होकर पश्चिम बंगाल से उतनी ही संख्या में मुसलामानों को भेजना पड़ेगा। सरदार पटेल की इसी ईंट का जवाब पत्थर से देने वाली नीति का अनुसरण करते हैं नरेंद्र मोदी। वे गुजरात के दंगों के लिए गोधरा को जिम्मेदार मानते हैं लेकिन कांगेस की तो पंडित नेहरू की तरह आदत है। वह सोहराबुद्दीन को मासूम और अमित शाह को मुजरिम मानती है। उसे अफजल गुरु और अजमल कसब से कहीं ज्यादा खतरनाक नरेंद्र मोदी नजर आते हैं। छह दशकों में नेहरू-गांधी परिवार की नीतियां नहीं बदली हैं। पहले वे सरदार पटेल को मुस्लिम- द्रोही साबित कर खुद मुस्लिमों के मसीहा बनाना चाहते थे अब निशाने पर नरेंद्र मोदी हैं। तब बदनाम करने के लिए सुपारी मृदुला साराभाई, मौलाना आजाद, पद्मजा नायडू और रफी अहमद किदवई के पास थी अब यही काम मल्लिका साराभाई, तीस्ता सीतलवाड, अहमद पटेल, रुबाबुद्दीन जैसे लोगों के पास है।
पंडित नेहरू ने योजनाबद्ध ढंग से सरदार पटेल को मुस्लिम विरोधी साबित करने का अभियान चलाया। इस काम के लिए नेहरू ने पद्मजा नायडू, मृदुला साराभाई और रफी अहमद किदवई को आगे किया। इन तीनों की मदद से नेहरू ने सरदार पटेल को घोर मुस्लिम विरोधी और पदलोलुप सिद्ध किया,बात यहाँ तक बढ़ गयी कि महात्मा गांधी ने एक दिन सरदार पटेल को पत्र लिख दिया कि “ मुझे तुम्हारे खिलाफ कई शिकायतें सुनने को मिली हैं। तुम्हारे भाषण भड़काऊ होते हैं। तुमने मुस्लिम लीग को नीचा दिखाने की कोई कसर नहीं छोड़ रखी। लोग तो कहते हैं कि तुम किसी भी स्थिति में पद पर बने रहना चाहते हो।” जिन महात्मा गांधी के एक बार कहने पर सरदार पटेल ने प्रधानमंत्री पद का मौका छोड़ दिया था,उन्हें भी यदि नेहरू के तिलंगों के प्रचार के सामने सरदार पटेल की पदलोलुपता पर शक हो गया तो आसानी से समझा जा सकता है कि गुजरात के कर्णधार के बारे में केंद्र का दुष्प्रचार कितना व्यापक होता है। सनद रहे कि आजकल नरेन्द्र मोदी के खिलाफ गुजरात में दुष्प्रचार करने वाली मल्लिका साराभाई सरदार पटेल के खिलाफ अभियान चलनेवाली मृदुला साराभाई की वंशज हैं। गांधीजी के इस पत्र का सरदार पटेल पर गहरा आघात लगा। उन्होंने ७ जनवरी १९४७ को गांधीजी को पत्र लिखा जिसमें स्पष्ट उल्लेख था कि पंडित नेहरू ने उन्हें पद छोड़ने के लिए दबाव डालते हुए स्पष्ट धमकी दी थी,जिसे उन्होंने अस्वीकार किया था,क्योंकि इससे कांग्रेस की गरिमा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता। अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को निराधार बताते हुए सरदार ने गांधीजी को साफ बताया था कि ये अफवाहें उनके खिलाफ मृदुला साराभाई द्वारा ही फैलाई गयी होंगी जिसने उनके खिलाफ अफवाहें फैलाने का शौक पाल लिया था। सरदार पटेल ने अपने पत्र में यहाँ तक बताया था कि मृदुला ने तो अफवाह फैला रखी है कि मैं नेहरू से अलग होकर नयी पार्टी बनाने जा रहा हूँ।
सरदार पटेल और पंडित नेहरू के बीच अधिकाँश मतभेद नेहरू के छद्म धर्मनिरपेक्षतावाद के चलते थे। पंडित नेहरू अपनी वैश्विक छवि के चक्कर में अक्सर हिन्दू विरोधी और मुस्लिम तुष्टीकरण के लिहाज से फैसले लेते थे। सरदार उनके खिलाफ अड़ जाया करते थे। हैदराबाद के मामले में पंडित नेहरू सैनिक कार्रवाई के सख्त खिलाफ थे। उनका मानना था कि सैन्य कार्रवाई से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जटिलता खड़ी हो सकती है। लेकिन सरदार पटेल और एन.जी. रंगा जैसे नेता तत्काल कार्रवाई के पक्ष में थे। रंगा का मानना था नेहरू,मौलाना आजाद और लोर्ड माउंट बेटन हैदराबाद में कश्मीर की तरह का निर्णय चाहते थे। रंगा ने लिखा है कि यदि सरदार इस तिकड़ी की सुन लेते तो हैदराबाद का मामला हमेशा के लिए उलझ जाता। एक बार सरदार पटेल ने स्वयं एम.वी.कामत को बताया था “यदि जवाहर लाल नेहरू और गोपाल स्वामी आयंगर कश्मीर मुद्दे पर हस्तक्षेप न करते और इस मसले को गृह मंत्रालय से अलग न करते तो मैं हैदराबाद की तरह ही इस मुद्दे को भी आसानी से देश-हित में सुलझा लेता।” महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरदार विरोधियों ने पंडित नेहरू के इशारे पर सरदार पटेल के खिलाफ जोरदार अभियान छेड दिया गया। विरोधियों का आरोप था कि सरदार पटेल हिन्दू अतिवादियों के प्रति सहानुभूति रखते थे इसी के चलते उन्होंने २० जनवरी १९४८ को महात्मा गांधी पर जानलेवा हमले के प्रयास के बावजूद उनकी सुरक्षा में जानबूझ कर उचित बंदोबस्त नहीं किया।
५ फरवरी १९४८ को संविधान सभा में सरदार पटेल पर गांधीजी की सुरक्षा के उपायों के बारे में सवालों की बौछार हो गयी। सरदार पटेल ने संविधान सभा में स्पष्ट किया कि किस तरह बिड़ला भवन में गांधीजी के विरोध के बावजूद समुचित सुरक्षा प्रबंध था। इसके एक दिन पहले कांग्रेस के विधायक दल की सभा में नेहरू समर्थक कांग्रेस की समाजवादी लॉबी ने सरदार पटेल को लगभग गांधीजी का हत्यारा ही सिद्ध कर दिया था। इस दिन तो खुद सरदार पटेल इतने ज्यादा आहत हुए थे कि अपने जोशीले जवाब के दौरान वे इतने भावुक हुए कि अपना वक्तव्य पूरा किये बिना ही सभा से बाहर चले गए थे। यदि कांग्रेस में सरदार पटेल को व्यापक समर्थन न प्राप्त होता तो नेहरू समर्थक वीर सावरकर की तरह ही संभव था कि सरदार पटेल पर भी महात्मा गांधी के हत्याकांड का फर्जी मुकद्दमा ही चला देते। जब नेहरू की समझ में आया कि सरदार पटेल को वह किनारे नहीं लग सकते तो संविधान सभा में सरदार पटेल के स्पष्टीकरण के बाद उन्होंने सरदार को पत्र लिख कर तात्कालिक संधि कर ली। नेहरू ने अपने पत्र में लिखा था “बापू के निधन के बाद अब सब कुछ बदल गया है और अब हमें पहले से भी अधिक कठिन परिस्थियों का सामना करना है। पुराने विवादों और मतभेदों का अब कोई महत्त्व नहीं रहा और मुझे लगता है कि हमने अब मिलकर काम करना चाहिए। यही समय की मांग है। इसके अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है। मैं तुमसे मिलकर ढेर सारी बातें करना चाहता था,लेकिन अत्यधिक व्यस्तता के चलते लम्बे समय से हम एक दूसरे से व्यक्तिगत रूप से मिल भी नहीं पा रहे थे। मुझे आशा है, हम जल्दी ही मिलकर आपसी मतभेदों और गलतफहमियों को दूर कर लेंगे।”
सरदार पटेल तो पहले से ही चाहते थे कि नेहरू चमचों की फौज से मुक्त हो जाएँ। उन्होंने नेहरू के इस पत्र का जवाब दिया। “ मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ कि हमें आपसी बातचीत के लिए समय निकालाना होगा। ताकि हम अपने दृष्टिकोण से एक-दूसरे को अवगत करा सकें और मतभेदों को दूर कर सक।“ नेहरू और पटेल के बीच यह समझौता ज्यादा दिन नहीं चला। १९४८-५० के बीच पूर्वी बंगाल(बंगलादेश) से बड़े पैमाने पर हिन्दुओं को बाहर किया जाने लगा। जब बड़े पैमाने पर हिन्दू पश्चिम बंगाल आने लगे तो बंगाल से प्रतिरोध के स्वर उठने लगे। नेहरू मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों के चलते इस पर मौन साधे हुए थे। बांग्लादेश यानी तत्कालीन पाकिस्तान में हिदुओं पर अत्याचार बढ़ने लगा। इस पर सरदार पटेल ने पंडित नेहरू को पत्र लिखा कि हमें पाकिस्तान सरकार को स्पष्ट कर देना चाहिए यदि पूर्वी बंगाल से इसी तरह हिदुओं को भारत भेजा जाता रहा तो हमें विवश होकर पश्चिम बंगाल से उतनी ही संख्या में मुसलामानों को भेजना पड़ेगा। सरदार पटेल की इसी ईंट का जवाब पत्थर से देने वाली नीति का अनुसरण करते हैं नरेंद्र मोदी। वे गुजरात के दंगों के लिए गोधरा को जिम्मेदार मानते हैं लेकिन कांगेस की तो पंडित नेहरू की तरह आदत है। वह सोहराबुद्दीन को मासूम और अमित शाह को मुजरिम मानती है। उसे अफजल गुरु और अजमल कसब से कहीं ज्यादा खतरनाक नरेंद्र मोदी नजर आते हैं। छह दशकों में नेहरू-गांधी परिवार की नीतियां नहीं बदली हैं। पहले वे सरदार पटेल को मुस्लिम- द्रोही साबित कर खुद मुस्लिमों के मसीहा बनाना चाहते थे अब निशाने पर नरेंद्र मोदी हैं। तब बदनाम करने के लिए सुपारी मृदुला साराभाई, मौलाना आजाद, पद्मजा नायडू और रफी अहमद किदवई के पास थी अब यही काम मल्लिका साराभाई, तीस्ता सीतलवाड, अहमद पटेल, रुबाबुद्दीन जैसे लोगों के पास है।
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