कर्ज में डूबी सरकार, जनता की जेब काट भरेगी ब्याज ....?
डॉ नवीन जोशी
एक लाख करोड़ के कर्जे में डूब गया है मध्यप्रदेश सरकार का खजाना और जनंसख्या के लिहाज से १६ हजार रुपए का कर्जदार हो चुका है प्रदेश का प्रत्येक नागरिक, उल्लेखनीय है कि भाजपा की मौजूदा सरकार ने दिग्विजय सिंह के शासनकाल का २० हजार करोड़ रुपए का कर्ज चुकाया तो नहीं, उल्टे पिछले साढ़े बारह वर्षों में उससे पांच गुना ज्यादा कर्जा ले लिया। अर्थात २००३ में सरकार २० हजार करोड़ के कर्ज में डूबी हुई थी और वही कर्ज २०१६ में बढ़कर एक लाख करोड़ हो गया है। ऐसी दशा में यह निश्चित है, कि जनता की जेब काटकर इस भारी-भरकम कर्जे का ब्याज चुकाया जाएगा। स्वाभाविक तौर पर इसके लिए आने वाले दिनों में उपभोक्ता वस्तुओं पर टैक्स में और बढ़ोतरी की जाएगी। प्रदेश सरकार की वित्तीय स्थिति और कर्ज को लेकर अभी भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षण ने ताजा रिपोर्ट जारी नहीं की है किन्तु वित्त मंत्रालय की मानें तो सरकार ने ३१ मार्च २०१५ तक कुल ८२ हजार २६१ करोड़ रुपए का ऋण केन्द्र सरकार और अन्य वित्तीय संस्थाओं से लिया था, जो अब बढ़कर एक लाख १३ हजार करोड़ रुपए हो चुका है। बढ़ते राजकोषीय घाटे और अनियंत्रित वित्तीय प्रबंधन को देखते हुए इसमें निरंतर वृद्धि की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता एसी दशा में प्रदेश की जनता पर भार लादकर ही इससे निपटने का एकमात्र रास्ता ही दिखाई दे रहा है।
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कुशासन में नहीं थम रहा शिकायतों का दौर ....
मध्यप्रदेश की भारतीय जनता पार्टी अपने कार्यकाल के १२ वर्षों के बाद यह दावा करती नजर आ रही है कि उनके कार्यकाल के दौरान राज्य में सुशासन की ओर बढ़ा है और राज्य में पूरी तरह से सुशासन कायम है, लेकिन इस सुशासन के लिये राज्य सरकार द्वारा चलाई गई सीएम हेल्पलाइन से लेकर जिला और तहसील स्तर पर जनसुनवाई आदि सहित तमाम लोगों की समस्या दूर करने के लिये सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं मगर यह सब दिखावटी साबित हो रही हैं और स्थिति यह है कि आये दिन इन जनशिकायतों और हेल्पलाइनों की बात बात छोडि़ए जब सीएम प्रदेश की जनता से जब जहां भी रूबरू होते हैं तो उनके हाथों मे ढेरों शिकायती पत्र आम जनता की तरफ से थमा दिये जाते हैं, लेकिन इसके बाद भी समस्या थमने का नाम नहीं ले रही है इन सब परिस्थितियों के बावजूद भी सरकार द्वारा बड़े-बड़े विज्ञापनों और नेताओं के मुख से सुशासन की तारीफ में कसीदे पड़े जाते हैं उससे तो यही अंदाज लगता है कि राज्य में सुशासन के नाम पर केवल ढिंढोरा पीटा जा रहा है लेकिन आम जनता की समस्या कम होने का नाम नहीं ले रही है, बल्कि दिन-दूनी रात चौगुनी सुरसा की तरह बढ़ती नजर आ रही है। इससे यह साफ जाहिर है कि प्रदेश के जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ आम जनता पर भी प्रदेश की नौकरशाही हावी हो गई है और वह जो चाहती है वह करके दिखा देती है फिर भले ही मुख्यमंत्री कुछ भी दावा करें लेकिन हकीकत यह है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही तमाम हेल्पलाइनें केवल और केवल एक दिखावा बनकर रह गई और जनता आज भी तमाम समस्याओं से जूझ रही है और प्रदेश में बिना लेनदेन के कोई काम होता नजर नहीं आ रहा है इसके बावजूद भी मुख्यमंत्री जीरो टालरेंस नीति का राग अलापते रहते हैं। मुख्यमंत्री के इस तरह के दावों की पोल तो उनके द्वारा किसानों की समस्याओं का जायजा लेने पूरे प्रदेश में मैदानी स्तर पर भेजे गए अधिकारियों के सूखा पर्यटन के दौरान मैदानी स्तर पर गए अधिकारियों को जो स्थिति दिखाई दी उन्होंने अपनी-अपनी रिपोर्ट में उनका उल्लेख किया और उन सभी अधिकारियों की रिपोर्ट में यह बात समान थी कि प्रदेश में बिना लेन-देन के कोई काम नहीं हो रहा है और अपने काम के लिये आम आदमी को अधिकारियों को लक्ष्मी दर्शन कराना राज्य में एक प्रथा सी बन गई है। इसका राज्य में कितना भ्रष्टाचार व्याप्त है जहां तक भ्रष्टाचार की बात है तो अन्य विभागों की बात छोड़ो प्रदेश के अन्नदाता की यह स्थिति है कि उसका बिना लेनदेन के कोई काम नहीं होता, इसका प्रमाण है राजस्व विभाग से जुड़े तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक और पटवारियों के आये दिन लोकायुक्त के हत्थे चढऩा राजस्व विभाग में कितना भ्रष्टाचार है इसकी स्वीकृति स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले दिनों मंदसौर दौरे में कर चुके हैं इसके बाद उन्होंने राजस्व मंत्री को अपने विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को कम करने के निर्देश भी दिये लेकिन उनके इस निर्देश के बावजूद भी राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार कम होता नजर नहीं आ रहा है। कुल मिलाकर राज्य में भ्रष्टाचार की गंगोत्री चहुंओर बह रही है और ऐसे में सरकारी विज्ञापनों और सत्ताधीशों के मुखाग्रबिन्द से आयेदिन प्रदेश में सुशासन का दावा करना बेनामी ही साबित नजर आ रहा है।
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आखिर किसके पाप की सजा भुगत रहे किसान और जनता
प्रसिद्ध शायर दुष्यंत की शेर है जिसका अर्थ इस प्रकार से है कि राजा के पाप पुण्यों की सजा उस राजा के राज्य की जनता को भुगतनी पड़ती है पता नहीं शायर ने इस तरह की कल्पना क्यों और कैसे थी यह तो वही जाने मगर मध्यप्रदेश का किसान पिछले तीन वर्षों से ओलावृष्टि व अतिवर्षा के कारण अपनी बर्बाद फसलों से तो जूझ रहा है इस वर्ष उसे कुछ आस लगी थी लेकिन पिछले कुछ दिनों से राज्य में हो रही वर्षा, ओलावृष्टि और आकाशीय बिजली गिरने से जानवरों और मनुष्यों की मृत्य के बाद अब लोगों में यह सवाल उठने लगा है कि आखिर मध्यप्रदेश की जनता किसके पाप की सजा भुगत रही है और इस प्रश्न के जवाब की खोज में हर कोई लगा हुआ है। तो वहीं इस लाख टके के सवाल की खोज करने में राज्य के बुद्धिजीवी लगे हुए हैं कि आखिर मध्यप्रदेश की जनता पर ईश्वर क्यों इस तरह से नाराज है जो पिछले चार सालों से साल-दर साल प्राकृतिक आपदा, अतिवृष्टि से राज्य के अन्नदाताओं की फसलें चौपट करने में लगा हुआ है और यह सिलसिला ऐसा लगता है कि अब थमने का नाम नहीं ले रहा है और स्थिति यह है कि जब किसानों की मेहनत मशक्कत के चलते खेतों में उनकी फसलें लहलहा रही हैं तो कहीं यह गेहूं की फसलें कटने लगी हैं और ठीक ऐसे समय में ईश्वर का प्रकोप प्रदेश की कई इलाकों में ओले बारिश और आकाशीय बिजली जैसी आफतों का प्रकोप पुन: इस प्रदेश के किसानों पर दिखाई देने लगा है। इस तरह की ईश्वरीय मार के बाद अब लोगों के जेहन में यह बात आने लगी है कि आखिर यह सब किसके पाप की सजा प्रदेश की जनता भुगत रही है और कब तक भुगतते रहेगी।
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आधी आबादी की सूखे कंठ की चिंता नहीं सरकार को ...?
लोकतंत्र में भारतीय संविधान में प्रदत्त स्वास्थ्य, शिक्षा और नि:शुल्क पानी राज्य की जनता को नि:शुल्क उपलब्ध कराने की संविधान में नागरिकों के प्रदत्त अधिकारों के प्रति यह भारतीय जनता पार्टी की सरकार कितनी गंभीर है इसका जीता-जागता उदाहरण है राज्य की आधी आबादी इस समय पेयजल के संकट से जूझ रही है लेकिन चाहे भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र की मोदी सरकार हो या फिर मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार दोनों इस मुद्दे पर कितने गंभीर हैं इसका जीता जागता उदाहरण है पेयजल व्यवस्था, प्रदेश में नलजल योजना ठीक से काम नहीं कर पा रही है, कहने को आठ हजार से अधिक नलजल योजनाएं प्रदेश में संचालित की जा रही हैं, लेकिन इन योजनाओं को लेकर दो विभागों पंचायतों और पीएचई में रस्सा खिंचाई का काम चल रहा है तो वहीं राज्य की तो बात छोड़ो केन्द्र सरकार ने पेयजल योजना के लिये दी जाने वाली राशि में भी भारी कटौती कर दी है वर्ष २०१४ की अवधि में जहां राज्य सरकार को इस योजना के लिये ४०० करोड़ मिले थे, वहीं मौजूदा वित्तीय वर्ष में इसे घटाकर १२० करोड़ रु पए कर दिया गया, देश और प्रदेश की जनता को अपना भगवान मानने वाली यह भाजपा के नेताओं की कार्यप्रणाली पर यदि नजर डालें तो यह समझ में आता है कि जिस भारतीय संविधान में पेयजल को नि:शुल्क जनता को प्रदान करने का उल्लेख है उसके प्रति यह नेता कितने गंभीर हैं, हालांकि लोगों को पानी पिलाना सभी धर्मों में पुण्य का काम माना जाता है लेकिन हमारे लोकतंत्र के यह आधुनिक सामंत शायद न तो संविधान की चिंता है और न ही धर्मों में पानी को लेकर दिये गये उपदेशों की, हाँ यह जरूर है कि जनता को अपने भाषणों से उनके कण्ठों की प्यास बुझाने में लगे रहते हैं, जिसके चलते आज प्रदेश की आधी से ज्यादा आबादी जल संकट से जूझ रही है लेकिन हमारे यह आधुनिक सामंतों के इस मामले को लेकर कानां पर जूं तक नहीं रेंग रही और जनता को अपने भरोसे छोड़ दिया है। राज्य की आधी से अधिक आबादी आज जलसंकट से जूझ रही है सबसे ज्यादा संकट बुंदेलखण्ड के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया के अलावा रीवा, सीधी, शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, जबलपुर सिंगरौली के लोग जलसंकट से जूझ रहे हैं। हालांकि मप्र में सूखे के हालात कोई नये नहीं हैं पिछले वर्ष भी प्रदेश की एक तिहाई आबादी यानि सवा दो करोड़ से अधिक लोगों को प्रतिदिन पानी नहीं मिला था, यह जलसंकट केवल गांवों में ही नहीं बल्कि मालवा की भी लगभग यही स्थिति है जिसके देवास, उज्जैन, इंदौर, शाजापुर के अलावा चंबल संभाग के ग्वालियर सहित आठ बड़े नगर निगमों में एक दिन छोड़़कर या अधिक दिनों के अंतराल पर पानी प्रदाय किया गया था। मजे की बात यह है कि राज्य के ११ निकाय ऐसे थे जो तीन दिन या इससे अधिक दिनों में अपनी जनता को पेयजल प्रदान कर रहे थे, ३५ निकाय दो दिन छोड़कर पानी दे रहे थे ११९ निकायों में एक दिन छोड़कर जलपूर्ति की जा रही थी, लेकिन पिछली बार जल संकट की समस्या होने के बाद भी सरकार के द्वारा इसे गंभीरता से नहीं लिया गया और इस वर्ष पिछले साल की तुलना में स्थिति और भी गंभीर दिखाई दे रही है वैसे तो गर्मी का मतलब ही जल संकट होता है, लेकिन इस बार अल्पवर्षा के कारण प्रदेश के गांव में फरवरी के मध्य से ही जल संकट गहरा गया है। लेकिन इस दिशा में सरकार द्वारा कोई कारगार कदम नहीं उठाये जा रहे हैं कहने को तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस समस्या से निपटने के लिये १०० करोड़ रुपये का प्रावधान रखा था लेकिन कंगाली और खाली खजाने की स्थिति से गुजर रहे वित्त विभाग के अधिकारियों ने इसमें अड़ंगा लगा दिया, उनके द्वारा लगाये गये इस तरह के अड़ंगा कब हटेगा यह कहा नहीं जा सकता लेकिन ज्यों ज्यों गर्मी बढ़ेगी त्यों त्यों राज्य में यह पेयजल संकट और गहराता जायेगा तथा पेयजल संकट को लेकर राज्य में कानूनी व्यवस्था लडख़ड़ाने लगेगी तब यदि सरकार जागी तो क्या काम की, यानि इस सरकार की यह स्थिति है कि क वर्षा जब कृषि सुखानी, यानि जब लोग पानी को लेकर एक-दूसरे के सर फोडऩे लगेंगे तब क्या यह सरकार जागेगी तो उसका क्या फायदा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
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यदि राजस्व मंत्री की कलेक्टर नहीं सुनते तो जनता का क्या कसूर ?
मध्यप्रदेश में यूं तो नौकरशाही के हावी होने का सिलसिला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सत्ता पर ताजपोशी के साथ ही समय-समय पर चर्चाओं में रहा है, इस नौकरशाही के हावी होने की शिकायतें अक्सर प्रदेश के जनप्रतिनिधि करते रहे हैं तो वहीं संघ प्रमुख मोहन भागवत के द्वारा उज्जैन में सम्पन्न हुए संघ के एक कार्यक्रम के दौरान वर्षों पहले मुख्यमंत्री से भेंट के दौरान यह चिंता जताई थी लेकिन आज भी भाजपा शासनकाल के १२ साल और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दस साल का कार्यकाल पूरा होने के बावजूद भी प्रदेश में नौकरशाही हावी होने का दौर जारी है और इससे जहां जनता परेशान है तो शिवरजा मंत्रीमण्डल के कई सदस्य, पिछले दिनों उनके ही मंत्रीमण्डल के राजस्व मंत्री रामपाल सिंह ने प्रदेश के कलेक्टरों के बारे में इस तरह की टिप्पणी करके राज्य की अफसरशाही की पोल खोलकर रख दी कि कलेक्टर वेतन हमसे लेते हैं काम दूसरों का करते हैं, राजस्व मंत्री रामपाल के इस तरह के बयान से कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं, तो वहीं शासन की कलेक्टरों के मामले में लाचारी भी साफ झलकती दिखाई दे रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सखा और उनके भरोसेमंद राजस्व मंत्री का इस तरह का बयान कि कलेक्टर उनकी सुनते नहीं हैं तो सवाल यह खड़ा होता है कि उनके विभाग के तहसीलदार, आरआई और पटवारी तक नहीं सुनते, स्थिति यह है कि उनके अपने विभाग के अंतर्गत आने वाले राजस्व कर्मचारियों पर भी उनकी पकड़ नहीं है स्थिति यह है कि राज्यभर से आये दिन इस विभाग से जुड़े लोगों के भ्रष्टाचार की गिरफ्त में आने की खबरें सुर्खियों में बनी रहती हैं तो वहीं इसकी पुष्टि राज्य के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों मंदसौर में सार्वजनिक तौर पर की, उन्होंने राजस्व विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को स्वीकार करते हुए राजस्व मंत्री से यहां तक कह डाला कि आपके विभाग में बहुत भ्रष्टाचार है आप डण्डा लेकर इसे सुधारिये लेकिन इसके बावजूद भी राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार कम होने का नाम नहीं ले रहा है स्थिति यह है कि आये दिन कोई न कोई राजस्व विभाग से जुड़ा अधिकारी रिश्वत लेते धरे जाने की खबरें आ रही हैं। सवाल यह उठता है कि जब वह अपने राजस्व विभाग के अंतर्गत आने वाले तहसीलदार, आरआई और पटवारियों को नहीं संभाल रहे हैं और स्थिति यह है कि राज्य में चाहे सूखा के सर्वे का मामला हो या ओलावृष्टि या किसी आम किसान को खसरा खतौनी देने का मामला हो या किसानों से जुड़े राजस्व प्रकरण निपटाने का मामला हो किसानों के कामों को निपटाने में आनाकानी करते हुए लापरवाही करते हुए नजर आ रहे हैं और किसान छोटी सी जानकारी प्राप्त करने के लिये पटवारी कार्यालयों से लेकर तहसीलदार के कार्यालयों तक भटकता नजर आता है, लेकिन इस व्यवस्था पर कोई सुधार न करने में नाकाम राज्य के राजस्व मंत्री, डिप्टी कलेक्टर या फिर कलेक्टर के निर्देश न मानने की बात कह रहे हैं, हालांकि राजस्व मंत्री यह चाहते हैं कि डिप्टी कलेक्टर और कलेक्टर का विभाग दे रहा है और अधिकार सामान्य प्रशासन विभाग के पास हैं तो इससे अच्छा है कि राजस्व विभाग को भी सामान्य प्रशासन में विलय कर देना चाहिए कुल मिलाकर राजस्व मंत्री रामपाल के बयान से यह सवाल उठता है कि उनके द्वारा राजस्व विभाग की व्यवस्था सुधारने में असफलता के संकेत नजर आते हैं लेकिन फिर भी वह डिप्टी कलेक्टर और कलेक्टरों को अपने विभाग के अधीनस्थ करने की बात कह रहे हैं। तो सवाल यह भी उठता है कि राज्य के राजस्व मंत्री जो की अपने राजस्व अमले में व्याप्त भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में नाकाम साबित हो रहे हैं शायद अपनी नाकामी छुपाने के लिए अब वह अपना सारा दोष डिप्टी कलेक्टर और कलेक्टरों पर मडऩे के प्रयास में हैं।
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आखिर कब तक प्रदेश का अन्नदाता राजा के पापों का फल भोगता रहेगा .....
भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल के दौरान पिछले चार वर्षों से प्रदेश का अन्नदाता कभी अवर्षा तो कभी ओलावृष्टि तो कहीं आकाशीय बिजली के साथ-साथ जहां एक ओर प्राकृतिक आपदाओं से तो जूझ ही रहा है तो वहीं सरकारी स्तर पर किसानों के लिये किये जाने वाले व्यवस्था के कुप्रबंधन जैसे समय पर बीज, खाद और सिंचाई के लिए बिजली उपलब्ध न होना इन सभी प्राकृतिक और मानवीय आपदाओं से तो किसान पिछले चार वर्षों से जूझ ही रहा है अब जब प्रदेश के अन्नदाता द्वारा अपने खेतों से अधिक उत्पादन लेने की आस में दिन-रात मेहनत करके जब उनकी फसलें तैयार हो गईं तो अब फिर उन पर प्राकृतिक आपदाओं के बादल छाने लगे, स्थिति यह है कि कहीं किसानों की फसलों पर बेमौसम बारिश की मार पड़ रही है तो कहीं चीकू बराकर ओलों की बौछार, तो कहीं आकाशीय बिजली गिरने से लोगों की मौतें तक हो रही हैं। यह सभी प्राकृतिक आपदा तो किसान झेल ही रहा है तो वहीं मानवीय आपदाओं जैसे किसानों को सिंचाई के लिये बिजली न मिलना तो कहीं नहरों से उनकी सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध न होना यह सिलसिला तो जारी ही है, इन सब घटनाओं को देखकर लोगों में यह चर्चा आम है कि आखिरकार प्रदेश का अन्नदाता प्रसिद्ध शायर दुष्यंत के उस शेर की चंद लाइनें उनका अर्थ यह होता है कि राजा के पाप-पुण्यों का प्रयाश्चित उस राजा के राज्य की जनता को भोगना ही पड़ता है, आखिर प्रदेश का अन्नदाता अपने राजा के पाप-पुण्यों का प्रायश्चित करती रहेगी तो वही इस लाख टके का सवाल का जवाब ढूंढने में लगे हैं कि राजा अपने ऊपर आये संकटों के बादलों को छांटने के लिये हर तरह के पूजा-अनुष्ठान यज्ञ आदि कराता है तो कभी नलखेड़ा तो कभी पीतांबरा पीठ दतिया तो कभी पुष्कर के साथ-साथ महाकाल, कामाक्षा देवी जैसे कष्ट निवारक देवी-देवताओं की शरण में पहुंचकर यज्ञ ओर अनुष्ठान तो कराता ही रहता है, इन सब उपक्रमों के अपनाने के बावजूद क्या राजा के अनिष्ठ ग्रह शांत नहीं होते हैं। यही नहीं राजा तो हमेशा अपनी प्रजा की सुख शांति और समृद्धि के लिये हमेशा भगवान से कामना करता रहता है इसके बावजूद भी राज्य के किसानों को एक के बाद एक आपदाओं से जूझना पड़ रहा है हालांकि ज्योतिष एवं द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती प्रदेश के अन्नदाताओं पर पड़ रही प्राकृतिक आपदा, ओलावृष्टि को सांईबाबा की पूजा लोगों द्वारा करने को दोषी मान रहे हैं, शंकराचार्य जी कहते हैं कि पिछले चार-पांच वर्षों से लगातार रवि-खरीफ सीजन में प्राकृतिक आपदायें और ओलावृष्टि से हो रहे नुकसान की वजह सांईपूजा है मामला जो भी यह तो ईश्वर जानें क्योंकि जैसा हर धर्म के लोगों की अपने-अपने देवी-देवताओं में आस्था है ओर उन आस्थाओं के चलते हर कोई यह मानकर चलता है कि जो कुछ करता है वह ऊपर वाला ही करता है लेकिन सवाल यह है कि पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश के साथ-साथ पूरे देशभर में हर धर्म के धर्मावलम्बियों द्वारा अपने-अपने ईश्वर के प्रति जिस तरह के श्रद्धाओं के साथ उनकी आराधना की जा रही है, यह सब देखकर तो यही कहा जा सकता है कि ईश्वर भक्तों की आराधना से ही प्रसन्न होता है, लेकिन ऐसा मध्यप्रदेश के अन्नदाताओं पर ईश्वर प्रसन्न क्यों होता दिखाई नहीं दे रहा है, इसके पीछे के क्या कारण है यह तो वही जाने मगर राज्य के शोषित और प्राकृतिक मार से पीडि़त अन्नदाताओं के साथ-साथ राज्य के आम लोग इस लाख टके के सवाल के जवाब को खोजने में लगे हुए हैं जिसके चलते किसानों के ऊपर पिछले चार सालों से साल दर साल प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ मानवीय आपदा झेलनी पड़ रही है।
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क्या रामपाल विद्रोह के मूड में हैं ?
मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ महापर्व को लेकर यह किवदंती और परम्पराएं हैं कि सिंहस्थ की तैयारी और उसको सम्पन्न कराने वाले प्रदेश के सत्ता के मुखिया पर उसका प्रभाव पड़ता है और सिंहस्थ के बाद या ङ्क्षसहस्थ के बाद या पहले सत्ता के मुखिया को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ती है मामला जो भी हो लेकिन राज्य की वर्तमान राजनीति के चलते इन दिनों जो घटनाक्रम घटित हो रहे हैं उनको देखकर तो यही लगता है कि सिंहस्थ का असर इस प्रदेश के सत्ताधीशों पर होने लगा है, अभी हाल ही में शिवराज मंत्रीमण्डल के सदस्य राजस्व मंत्री रामपाल सिंह ने केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा प्रदेश सरकार को राजस्व विभाग से मिलने वाली दो हजार करोड़ की राशि नहीं उपलब्ध कराने का आरोप लगाया था तो उस समय यह चर्चा आम थी कि क्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की तरह उनके मंत्रीमण्डल के सदस्य भी केन्द्रीय सरकार पर प्रदेश की योजनाओं में कटौती और राशि रोकने की बात कहने लगे हैं तो वहीं अभी हाल ही में केन्द्रीय सरकार के बाद रामपाल सिंह ने मध्यप्रदेश के कलेक्टरों को लेकर आजादी के बाद सदियों से चली आ रही कलेक्टरों और डिप्टी कलेक्टरों के सामान्य प्रशासन के अधीनस्थ होने की बात पर सवाल उठाते हुए यह कह डाला कि कलेक्टर वेतन हमने लेते हैं लेकिन काम दूसरों का करते हैं, हालांकि उनके इस बयान के कई तरह के मायने किनलते हैं जहां राजनीति से जुड़े लोग इसके यह भी मायने निकालने में लगे हुए हैं कि क्या राज्य के कलेक्टर प्रदेश की जनता के और शासन की योजनाओं का क्रियान्वयन करने की बजाए राज्य में शिवराज के सत्ता पर काबिज होने के दिन से ही बुधनी से अवैध खनिज और रेत माफिया अवैध वन कटाई माफिया की जो शुरुआत हुई थी यह कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर उन्हें संरक्षण देने में लगे हुए हैं या इस तरह से जुड़े काराबारियों को, शायद यही सब राजस्व मंत्री को दिखाई दिया और उन्होंने यह तक कह डाला कि कलेक्टर वेतन हमारे से लेते हैं और काम दूसरों का करते हैं, यदि उनके राजस्व विभाग की बात की जाए तो जिस राजस्व विभाग के वह मुखिया हैं उनके उस विभाग में भ्रष्टाचार के बारे में राज्य के मुखिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंदसौर में सार्वजनिक तौर पर यह कह चुके हैं कि राजस्व विभाग में बहुत भ्रष्टाचार है रामपाल सिंह जी उठाओ डंडा और इसे ठीक कर दो। लेकिन मुख्यमंत्री के द्वारा उठाये गये इस सवाल के बावजूद भी आज भी राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार थमने का काम नहीं ले रहा है और प्रदेश कि किसी भी कोने से यह समाचार सुर्खियों में रहता है कि लोकायुक्त की गिरफ्त में फलां पटवारी फंसा या आरआई या नायब तहसीलदार या फिर उसका रीडर ऐसी स्थिति के बावजूद भी रामपाल सिंह के द्वारा कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टरों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने के कई मायने लोग तलाशने में लगे हुए हैं।
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चण्डाल योग के कारण सिंहस्थ की सफलता पर उठने लगे सवाल .....?
प्रत्येक १२ वर्ष बाद होने वाले सिंहस्थ की तैयारी में जहां एक ओर सरकारी दिन-रात लगी हुई है तो वहीं इस सिंहस्थ में जहां एक ओर आतंकी साया के साथ-साथ चण्डाल योग का भी प्रभाव पड़ता नजर आ रहा है, हालांकि आतंकी निशाने होने के कारण सरकार द्वारा सुरक्षा की चाक चौबंद व्यवस्थाएं की जा रही हैं सिंहस्थ क्षेत्र में सैंकड़ों सीसीटीवी कैमरे लगाये जा रहे हैं तो वहीं हजारों पुलिस कर्मियों के हवाले नागरिकों की सुरक्षा के इंतजाम किये जा रहे हैं लेकिन इन सबके बीच चण्डाल योग फरवरी के अंतिम सप्ताह से गुरु, मंगल, राहु और शनि चारों ग्रहों के एक साथ वक्रीय हो जाने के कारण चण्डाल योग की शुरुआत हो चुकी है हालांकि तिथियों का व विद्वानों का अलग-अलग आंकलन है, इस चण्डाल योग का प्रभाव सिंहस्थ महापर्व पर ना पड़े इसके लिये भी तमाम पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र यज्ञों का भी आयोजन किया गया तो वहीं इसके बिना विघ्न के सम्पन्न हो जाने के लिये एक लाख गणपति अर्थर्वाशीर्ष पाठ भी किये गये, पांच दिन का महारुद्र यज्ञ भी हुआ, तो यज्ञ में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हुए, यज्ञ के समापन पर केन्द्रीय समिति के अध्यक्ष माखनलाल सिंह चौहान ने आहुति भी दी, इस या में २४ लाख रुपए खर्च हुए जिसमें १०८ पण्डित शामिल हुए, इन ग्रहों की शांति के लिये काले हनुमान मंदिर जयपुर के महामण्डलेश्वर मनोहरदास ने अखाड़ों के और खालसा संतों के साथ ८४ महादेव की यात्रा इसी सप्ताह पूरी की तो वहीं सिंहस्थ की सफलता और निर्विघ्न सम्पन्न होने की कामना के साथ संतों के समूह ने शिप्रा नदी का अभिषेक किया तो वहीं महामण्डलेश्वर अरुण गिरी ने भी हेलीकाप्टर से मां शिप्रा का पूजन-अर्चन कर चुनरी उड़ाई सिंहस्थ की निर्विघ्न सफलता के लिये कामाख्या के तंत्र साधक कपालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती भी गृह योग की शांति के लिये चक्रतीर्थ शमशान में जागृत चिता पर तांत्रिक पूजा भी कर चुके हैं, कुल मिलाकर ९६ साल बाद बने इस योग के कारण सामाजिक, धार्मिक दृष्टि से अनुष्ठान और धार्मिक कार्यों में बाधा उत्पन्न न हो इसके और सिंहस्थ के निर्विघ्न सम्पन्न होने की कामना के लिये हर तरह के धार्मिक, तांत्रिक यज्ञ, भजन, पूजन सभी का आयोजन सरकार द्वारा कराया जा चुका है लेकिन इसके बाद भी यह सवाल उठता है कि क्या चण्डाल योग की शांति के लिये किये जाने वाले सभी अनुष्ठान आदि कर दिये गये हैं, अब इसकी शांति हो जाने के बाद भी लोगों के मन में यह भय अभी भी व्याप्त है कि चण्डाल योग के चलते धार्मिक संघर्ष, असामाजिक तत्वों और आतंकवादियों के उपद्रव, रोगों की उत्पत्ति और भगदड़ से जनहानि की संभावनायें जो व्यक्त की जा रही थीं अब इन सभी पूजा-पाठ और अनुष्ठानों के बाद अब इनकी संभावना क्षीण हो गई है, लेकिन विद्वानों के अनुसार चारों ग्रह की यह स्थिति अधिकतम छ: माह रहेगी और इसी अवधि में सिंहस्थ महापर्व है इसलिये इस अपार भीड़ भरे आयोजन में कुछ भी अप्रिय घटना घटित हो सकती है इसलिये इन ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करने और भगवान महाकाल को प्रसन्न करने ज्योतिर्विदों, तांत्रिकों, साधकों, विद्वानों और पण्डितों ने अपने-अपने स्तर पर हर प्रकार के जतन किये, ज्योर्तिविद पण्डित आनंद शंकर व्यास के द्वारा नवरात्रि से ही साढ़े छ: माह के लिये पूजा-प्रार्थना और गुप्त अनुष्ठान शुरू करवा रखे थे, तो वहीं महाकालेश्वर मंदिर में प्रबंध समिति का ११ दिवसीय महाकाल यज्ञ भी सम्पन्न हो चुका है, इसके बाद यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि चण्डाल योग के दौरान गुरु, मंगल, राहु और शनि चारों ग्रहों का एकसाथ वक्रीय होने का प्रभाव अब कम हो गया होगा, लेकिन इसके बावजूद भी इस योग के चलते सिंहस्थ महापर्व की सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाए इसको लेकर सभी चिंतित हैं और इन ग्रहों की की शांति के लिये अभी भी अनुष्ठान व पूजा-पाठ जारी है, तो वहीं सरकारी स्तर पर इसके सम्पन्न कराये जाने के लिये पूरी तैयारियां की जा रही हैं तो वहीं सुरक्षा के भी चाक चौबंद व्यवस्था के सारे इंतजाम किये जा रहे हैं।
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