आरोपी को ही सौंप दी जांच, म.प्र.पुलिस का बड़ा कारनामा
होशंगाबाद में महिला प्रसाधन निर्माण घोटाला सुर्खियों में
एक पुलिस अफसर ने पेंशन के अभाव में दम तोड़ा
------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ----------------
डाॅ. नवीन आनन्द जोशी
भोपाल/ यह मध्य प्रदेश पुलिस का एक ओर चैंकाने वाला कारनामा है जिसमें आरोपी को ही बारह साल बाद जांच अधिकारी बना दिया गया है, यही नहीं आरोपी ने शासन को अंधेरे में रखकर खुद को जांचकर्ता तो बनवा लिया बल्कि एक अन्य निर्दोष पुलिस अधिकारी की पेंशन रोक कर उसे इलाज के अभाव में मृत्यु तक सौंप दी। इन दिनों होशंगाबाद जिले के महिला प्रसाधन निर्माण घोटाले की चर्चा जोरों पर है, जिसमें आई.एस. अधिकारी मनु श्रीवास्तव की धर्मपत्नि प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव ने अपने होशंगाबाद एस.पी. रहते जो घोटाला किया था और दबाया भी था उसी की जांचकर्ता बनकर सभी को चैंका दिया है।
सूत्रों के अनुसार वर्ष 2002 में महिला प्रसाधन निर्माण के नाम पर सोहागपुर, बाबई, पिपरिया और शाहपुर में गबनकर्ता भूपेन्द्र सिंह (तत्कालीन रक्षित निरीक्षक, होशंगाबाद), सह आरोपी शंखमणी त्रिपाठी (प्रधान आरक्षक, होशंगाबाद), जी.के.रेड्डी (अतिरिक्त एस.पी., देहात) और आर.एन. कत्रोलिया (टी.आई., बाबई) ने संयुक्त रूप से 1 लाख 60 हजार रूपये का गबन किया था, जिसकी जांच तत्कालीन एडिशनल एस.पी. एस.एन. बरकडे़ ने करते हुये गबन प्रमाणित कर दिया था और उसमें उक्त अधिकारियों के साथ तत्कालीन एस.पी. प्रज्ञा श्रीवास्तव को भी आरोपों में संलिप्त पाया था, जिसे वर्ष 2007 में सतीश सक्सेना, तत्कालीन आई.जी., होशंगाबाद ने जांच रिपोर्ट में गबन को हटाकर हेराफेरी कर दिया। घोटाले के मुख्य आरोपी भूपेन्द्र सिंह पदोन्नति पाकर डी.एस.पी. टैªफिक, उज्जैन बना दिये गये हैं जबकि कत्रोलिया एवं त्रिपाठी सेवा निवृत्त हो गये हैं और संयुक्त जांच में निर्दोष जी.के.रेड्डी का पेंशन न मिलने के अभाव में बीमारी के चलते गत दिवस निधन हो गया है। श्री रेड्डी ने मृत्यु पूर्व अपने अंतिम पत्र में पुलिस मुख्यालय और जांचकर्ता श्रीवास्तव को सम्बोधित करते हुए लिखा है कि पूरा गबन प्रज्ञा श्रीवास्तव की तैनाती अवधि 11.06.2002 से 18.01.2004 के दौरान हुआ है तथा कपटपूर्वक राशि भूपेन्द्र सिंह को दी है, मैं कहीं दोषी नही हूँ और मरणासन्न स्थिति में हूँ, पेशन न मिलने की सजा भुगत रहा हूँ ऐसी अवस्था में म.प्र.शासन सामान्य प्रशासन विभाग, भोपाल के परिपत्र क्र. 69-3727 दिनांक 11.01.1966 तथा मान. सर्वाेच्च न्यायालय 1993 एस.एस.सी.-723 दिनांक 07.05.1993 जिसमें पं.बंगाल सरकार विरूद्ध अनवर अली 1952 जो सात जजों की बहुमत के निर्माण में नैसर्गिक न्याय का पालन करना अनिवार्य किया गया है। अतः विभागीय जांच समाप्त की जाए।
यह पत्र दिनांक 29.01.2016 को जी.के.रेड्डी द्वारा लिखा गया है और उनकी मृत्यु 3 मार्च को हो गई है। इस पत्र के आधार पर ऋचा श्रीवास्तव द्वारा गबन की जांच किया जाना समझ से परे है। एक जानकार पुलिस अधिकारी के अनुसार इस तरह के मामले पुलिस की निष्पक्षता को संदेह के दायरे में लाकर सरकार की कमजोर प्रशासनिक क्षमता को इंगित करता है।
Comments
Post a Comment