बलात्‍कार की घटनाओं के लिये कौन जिम्‍मेदार ?


हाल ही में दिल्‍ली में एक पैरा मेडिकल छात्रा के साथ रात लगभग 9 बजे चलती बस में कुछ लोगों ने सामूहिक बलात्‍कार किया. छात्रा को सभी शासकीय प्रयासों के बावजूद बचाया नहीं जा सका. इस घटना ने कई प्रश्‍न खड़े कर दिये हैं. क्‍या देश की राजधानी में कानून व्‍यवस्‍था इतनी कमजोर हो गई है कि बलात्‍कारियों के हौसले इस सीमा तक बुलंद हो चुके हैं. जब राजधानी में जहां लगभग हर जगह पुलिस की चौकसी मौजूद है, इस प्रकार की घटनायें हो रही हैं तो देश के अन्‍य शहरों तथा छोटे छोटे गांवों में जहां पुलिस तक पहुंच पाना तथा एफआईआर कराना ही दुष्‍कर कार्य है, वहां क्‍या स्थिति होगी. दिल्‍ली में सामूहिक बलात्‍कार हुआ इसलिये मीडिया में इस घटना को इतना कवरेज मिला कि देश के कोने कोने तक खबर पहुंच गई, जगह जगह प्रदर्शन होने लगे. संसद मे भी इस मामले की गूंज सुनाई दी. फिल्‍म अभिनेत्री से राज्‍य सभा सांसद बनीं जया बच्‍चन इतनी व्‍यथित हुईं कि रो पड़ीं और पूछा कि दूसरे मुद्दों पर संसद ठप की जा सकती है तो ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर क्‍यों नहीं की गई. संभवत: यह पहला अवसर है जब किसी महिला नेत्री ने बलात्‍कार के विरुद्ध इतना मुखर प्रहार किया है. बहरहाल संसद में गैर राजनीतिक मुद्दे अधिक समय तक नहीं टिक पाते. ऐसे विषयों पर राजनेता केवल सहानुभूति स्‍वरूप दो मिनट की श्रद्धांजलि दे सकते हैं और कुछ नहीं क्‍योंकि ऐसे विषयों पर उन्‍हें कोई राजनीतिक लाभ नहीं दिखाई देता. जया बच्‍चन अभी तक प्रोफेशनल पोलिटीशियन नहीं बनी हें इसलिये भावुक हो गईं. खैर, राजनेताओं के लिये भले ही महिलाओं के विरुद्ध बलात्‍कार जैसे अत्‍याचार का मुद्दा अधिक महत्‍व नहीं रखता हो किंतु समाज को झकझोरने के लिये यह मुद्दा 2जी या एफडीआई से अधिक शक्तिशाली है. आखिर बलात्‍कार की घटनायें क्‍यों बार बार होती हैं, इसकी तह तक जाना ही होगा. एक कारण तो अपराधियों को समुचित दंड न मिल पाना है. अक्‍सर बलात्‍कार के प्रकरणों में पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज करने में आना कानी की जाती है.  पीडि़ता का डाक्‍टरी परीक्षण इतनी देर में कराया जाता है कि सबूत स्‍वत: मिट जाते हैं. कभी कभी डाक्‍टर भी कमजोर या गलत मेडिकल रिपोर्ट दे देते हैं. कभी कभी पुलिस-डाक्‍टर गठजोड़ भी बलात्‍कारी को बचाने में सहायक होता है. रही सही कमी अधिवक्‍तागण पूरी कर देते हैं जो मोटी फीस वसूल कर बलात्‍कारियों को बचाने का प्रयास करते हैं. पीडि़ता से ऐसे ऐसे अश्‍लील प्रश्‍न करते हैं कि बलात्‍कार का मुकदमा बलात्‍कार से भी अधिक पीड़ादायक बन जाता है. फिर कानून की रस्‍सी इतनी लंबी होती है कि पीडि़ता का साहस जवाब दे जाता है. कई मुकदमें दशकों तक चलते रहते हैं. पीडि़ता युवावस्‍था से अधेड़ वय को पहुंच जाती है, इस दौरान उसका यौवन, सामाजिक सम्‍मान, आर्थिक स्थिति, परिवार की प्रतिष्‍ठा, अन्‍य बहनों का भविष्‍य, सब ध्‍वस्‍त हो जाते हैं, फिर भी अपराधियों को दंड नहीं मिल पाता. वे कभी साक्ष्‍य के अभाव में, कभी संदेह का लाभ पा कर तो कभी बाइज्‍जत बरी हो कर छूट जाते हैं और पीडि़ता तथा उसके परिवार के सदस्‍यों को मुंह चिढ़ाते हुये निर्द्वंद घूमते हैं. इससे ऐसी परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं कि पीडि़ता तथा उसके परिवार के पास सामूहिक आत्‍महत्‍या के अतिरिक्‍त कोई अन्‍य विकल्‍प उपलब्‍ध नहीं होता. उनकी जीवनलाला समाप्‍त हो जाने के बाद भी न समाज जागता है और न ही शासन/प्रशासन या कानून. इससे भावी पीडि़तों को यह संदेश भली भांति चला जाता है कि वे समाज में पल रहे भेडि़यों से अपनी सुरक्षा की व्‍यवस्‍था स्‍वयं करें, शासन/प्रशासन से कोई आशा न रखें और यदि फिर भी उनके साथ कोई अनहोनी हो जाय तो इसे भाग्‍य का लेख समझ कर शिरोधार्य करें, इस घटना की चर्चा भी कहीं न करें अन्‍यथा धन-धर्म दोनों हीं गंवाने पड़ेंगे. 
गुंडे तथा बलात्‍कारी उक्‍त तथ्‍यों को पीडि़तों से भी अधिक अच्छी तरह समझते हैं. इसलिये भविष्‍य में निरंतर तथा निर्बाध शारीरिक तथा आर्थिक शोषण करने के लिये बलात्‍कार की ब्‍ल्यू फिल्‍म या एमएमएस बना लेते हैं. पुलिस भले ही बलात्‍कारियों के विरुद्ध पर्याप्‍त साक्ष्‍य न एकत्र कर सके किंतु बलात्‍कारियों के पास पीडि़त को ब्‍लैक मेल करने के लिये पर्याप्‍त सामग्री रहती है. पुरुष प्रधान समाज में यदि किसी महिला को पर्याप्‍त सामाजिक तथा आर्थिक संरक्षण प्राप्‍त नहीं है तो वह कभी भी समाज के भेडि़यों की यौनक्ष्‍ुाधापूर्ति का अकस्‍मात शिकार बन सकती है. पर्याप्‍त दंड के अभाव में बलात्‍कारियों को प्रोत्‍साहन मिल रहा है.  कुछ मुस्लिम देशों में बलात्‍कार के लिये सीधे प्राणदंड की व्‍यवस्‍था है इसलिये वहां बलात्कार करने का साहस कोई नहीं कर पाता. हमारे देश में तो ऐसे ऐसे सुधारवादी हैं कि बलात्‍कारी को फांसी देने के विरुद्ध भी आंदोलन चलाने लगते हैं.  लगभग 5 वर्ष पूर्व कोलकाता में एक व्‍यक्ति को एक अबोध बच्‍ची के साथ बलात्‍कार के बाद निर्मम हत्‍या के आरोप में फांसी दी जा रही थी तो कुछ लोग उसकी फांसी के विरुद्ध सड़कों पर उतर आये थे. धन्‍य हैं ऐसे सुधारवादी. इससे बलात्‍कारियों को प्रोत्‍साहन नहीं मिलेगा तो और क्‍या होगा.
यह तस्‍वीर का एक पहलू है, अब दूसरा पहलू देखिये. आधुनिकीकरण के इस दौर में अश्‍लीलता को सबसे ज्‍यादा प्रोत्‍साहन मिला है. बाजारवाद इतना पैर पसार चुका है कि विदेशी कंपनियां अपने उत्‍पाद बेचने के लिये तरह तरह के हथकंडे इस्‍तेमाल कर रही हैं. टी वी पर ऐसे ऐसे अश्‍लील विज्ञापन दिखा रही हैं कि किशोर तथा युवा वर्ग क्‍या छोटे छोटे बच्‍चों के मन-मष्तिष्‍क भी अवैध यौन संबंधों की ओर तेजी से अग्रसर हो रहे हैं. एक विज्ञापन में एक युवक अपने शरीर पर एक परफ्यूम का स्‍प्रे करता है, उसके दो सेकेंड बाद ही दर्जनों अर्धनग्‍न युवतियां पागलों की तरह दौड़ती हुई आ कर उस युवक से लिपट जाती हैं और उसके पूरे शरीर पर चुंबन ले कर अपने लिपिस्टिक पुते होंठों के निशान डाल देती हैं. एक विज्ञापन में एक नई नवेली दुल्‍हन 16 श्रंगार कर अपने पति की प्रतीक्षा कर रही होती है तभी सामने के मकान की खिड़की खुलती है और शरीर पर स्‍प्रे डालता हुआ एक युवक प्रगट होता है. उस स्‍प्रे की सुगंध से दुल्‍हन इतनी कामांध हो जाती है कि अपने पिया से प्रथम मिलन की प्रतीक्षा भंग कर तत्‍काल अपने गहने तथा कपड़े उतारने लगती है. फिल्‍मी गानों में भी कामोत्‍तेजक दृश्‍यों तथा फूहड़़ शब्‍दों का खुल कर प्रयोग होता है. इस अश्‍लीलता के नग्‍न प्रचार का शिकार किशोर तथा युवा वर्ग सर्वाधिक हो रहा है. अब वे सामाजिक तथा धार्मिक बंधनों में रहने को तैयार नहीं हैं. वे उन्‍मुक्‍त जीवन जीना चाहते हैं जिसमें शादी ब्‍याह, घर गृहस्‍थी, बच्‍चों का पालन पोषण जैसे उलझनों वाले पड़ाव न आयें. पहले कुंवारी लड़कियां एवं महिलायें अपना शरीर पररुषों से छिपाती थीं. यदि कभी गलती से दुपट्टा या साड़ी का आंचल सीने से सरक गया तो घबरा जाती थीं और तत्‍काल अपने आप को पुन: व्‍यवस्थित कर लेती थीं. अब बहुत सी महिलायें कपड़े पहनती हैं तो अपना शरीर छुपाने के लिये नहीं बल्कि अपना रंग, रूप, मांसल देह तथा शरीर की बनावट प्रदर्शित कर पर-पुरुषों को आकर्षित करने के लिये. पहले महिलायें अपने पति के साथ भी खुले आम घूमने में शरमाती थीं, लड़कियां किसी एक से प्रेम करती थीं और उससे भी समाज की नजरें बचा कर छुप छुप कर मिलती थीं तथा उनके प्रेम का केवल एक उद्देश्‍य होता था, अपनी पसंद के उस युवक से ही विवाह. पाश्‍चात्‍य सभ्‍यता के अंधानुकरण में अब लड़कियां ऐसे कपड़े पहन रही हैं जिनसे शरीर छिपे कम, दिखे ज्‍यादा तथा उन्‍हें देख कर लोग उत्‍तेजित और आकर्षित हों.  जो लड़की जितने ज्‍यादा ब्‍वाय फ्रेंड बनायेगी वह उतनी बड़ी चैंपियन कहलायेगी. पहले यह कार्य लड़के किया करते थे. अब कुछ लड़कियां कपड़ों की तरह ब्‍वाय फ्रेंड बदलती हैं. आज एक के साथ घूम रही हैं, कल दूसरे के साथ, परसों तीसरे के साथ, नरसों चौथे के साथ. कुछ ऐसी भी हैं जो अपनी दोस्‍तों के बीच अपने ब्‍वाय फ्रेंड्स की लिस्‍ट बता कर गौरव का अनुभव करती हैं.
समाज कितना भी आधुनिक या पाश्चात्‍य मुखी हो जाय इस सत्‍य से इनकार नहीं किया जा सकता कि पुरुष प्रधान समाज में नारी की सुरक्षा की गारंटी पुरुष ही है. विवाह से पहले पिता तथा भाई एवं विवाहोपरांत पति, उसकी सुरक्षा का दायित्‍व निभाते हैं. कुंवारी लड़की जब पिता या भाई के साथ शालीनता के साथ चलती है तो उस पर बुरी नजर डालने या कोई अवांछित कृत्‍य करने का साहस किसी बदमाश में नहीं होता. जब विवाहोपरांत पति के साथ चलती है तो समाज उसे सम्‍मान की दृष्टि से देखता है.  गुंडे बदमाश भी जानते हैं कि इस महिला को ज़ेड प्‍लस सुरक्षा प्राप्‍त है, यह सड़क पर पड़ी हुई जूठी हड्डी नहीं है जिसे कोई भी कुत्‍ता अपने जबड़ों में दबा कर चूसने लगे. दूसरी ओर जब कोई लड़की भड़कीले वस्‍त्र पहन कर किसी पर पुरुष के शरीर से जोंक की तरह चिपक कर सार्वजनिक भ्रमण करती है तो बहुत से लोगों की भावनायें दूषित हो जाती हैं और वे उसे बल पूर्वक प्राप्‍त करने की योजना बनाने लगते हैं क्‍योंकि वे यह जानते हैं कि यह न तो उस व्‍यक्ति की बहन है, न ही पत्‍नी इसलिये यह इसके रक्षक की भूमिका नहीं निभा सकता और चूंकि यह लोग धार्मिक तथा सामाजिक मान्‍यताओं के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं इसलिये इन्‍हें सोशल सपोर्ट भी नहीं मिलेगा. संभवत: वे यह भी सोचने लगते हैं कि जिस प्रकार यह युवक पर-पुरुष हो कर भी इसके साथ आनंद के क्षण बिता रहा है, हम भी बिता सकते हैं, हम में और इस युवक में केवल एक ही तो अंतर है, वह है लड़की की सहमति का.  बलात्‍कार का एक कारण उक्‍त परिस्थितियां भी हो सकती हैं.

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