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rashtriya charitra ko bacchane ka sankalp

राष्ट्रीय चरित्र को बचाने का संकल्प लें

0 डाॅ0 नवीन आनन्द
15 अगस्त 2011, भारत का 64 वाँ स्वतंत्रता दिवस । सारे देश को बधाई। परन्तु क्या हम स्वतंत्रता की बधाईयाँ बांटने लायक हैं । क्या हम सबका मन इस स्वतंत्रता की सौगात पाकर प्रसन्न हैं ? हमारे शूरमाओं ने, हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने सिरों की बलियाँ चढ़ा चढ़ा कर, अपनी उन्मुक्त जवानियों को अंग्रेजी जेलों में कैद रखकर, अपनी नंगी पीठों पर सटाक सटाक पड़ती बेतों और उधड़ती लहूलुहान होती चमड़ी की परवाह किये बगैर वंदे मातरम् के घोष से अंग्रेजों के अत्याचारों का जवाब दे देकर, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है जैसे गीत गाते फांसी के फंदों को चूम-चूम कर पंच महाभूत की देह को राष्ट्र की बलिवेदी पर कुर्बान कर कर भारत को स्वतंत्रता दिलवायी । अवश्य ही उन्होंने सपने देखें होंगे भारत में रामराज्य के, हर दिल में खुशी और हर आंगन में वैभव के । शहीद होती उन आत्माओं ने अवश्य ही संकल्प लिया था अगले जन्म में स्वतंत्र भारत में जन्म लेने का ।
वो आत्माएं अवश्य ही फिर इस भूमि पर अवतरित हुई हैं और देश के लिये जीने और मरने के लिए फिर से अपने आपको भारत माता के सम्मुख किया है । वे आज भी प्रतिदिन अपने समय की अपने श्रम की, अपनी बुद्धि की, अपने सामथ्र्य की आहुतियाँ दे रहे हैं । उनका स्वप्न तो आज भी वही है, ‘भारत के परम वैभव का’ । स्वतंत्रता पूर्व देश के लिये मरने की तमन्ना थी तो अब स्वतंत्रता के बाद देश के लिये जीने की तमन्ना है । परन्तु दुःख की बात एक और हो गई कि उस वक्त भारत में आकर राज करने वाले भारत का वैभव लूट लूट कर अपनी मेमों और कुत्तों को सजाने वालेे अंग्रेजों ने भी शायद अगले जन्म में भारत में पैदा होने की इच्छा रखी होगी, अवश्य ही ईसा मसीह से प्रार्थना की होगी कि भगवान उनको भारत में पैदा होकर लूट-खसोट- अत्याचार का तांडव खेलने रहने का और देशभक्तों की लाशों पर नृत्य करने का, उन पर अत्याचार कर नृशंस अट्टहास करने का अवसर दे । पता नहीं उनके कौन से जन्मों के पुण्य स्वरूप वे भी फिस इस देश में पैदा हो गये हैं। आज देश में कहीं भी, कभी भी होते बम धमाके, भ्रष्टाचार की गलाडूब गतिविधियाँ, अनाचार, अत्याचार और व्यभिचार में अपने राष्ट्रीय चरित्र को ताक पर रखकर विदेशियों की नकल करती युवा पीढ़ी क्या इस देश की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रख पाएगी ?
लगता है दीन, हीन बनी भारत माता का आंचल आंसूओं से तरबतर है और अपनी संतानों का आह्वान कर रही है, ‘‘ हे राम-कृष्ण के वंशजों उठो ! हे हनुमान, विक्रम, शिवा और राणा के अपराजित पौरूष उठ जाओ ! हे सीता-सावित्री के शील, फिर से इस धरा पर अपनी प्रतिष्ठा करो ! हे लक्ष्मी, जीजा और दुर्गा के पराक्रम, फिर से हुंकार भरो ! देखो ! मेरे वस्त्र इन आततायियों ने चीर-चीर कर फाड़ डाले हैं । देखो ! मेरे वक्षस्थल को इन नर-पिशाचों ने नोंच नोंच कर विदीर्ण कर डाला है । देखो ! मेरे इन सुंदर लहराते केशों को खींच खींच कर द्रुपदसुता की तरह घसीट घसीट कर मुझे लाचार, बेबस, श्रीहीन कर डाला है । हे मेरे लाड़लों ! हे मेरे प्यारों, क्यों तुम चुप हो ? क्यों तुम कर्महीन और दिशाहीन हो रहे हो । क्या तुम्हारी माता का क्रंदन तुम्हारे हृदय को झकझोर नहीं रहा ? क्या मेरा विलाप तुम्हारे बाजुओं को नहीं हचमचाता ? तो फिर क्यों सोये हो ? उठो, और जुट जाओ अपने कर्म पथ पर । मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ होगा । तुम अवश्य ही विजयश्री को वरण करोगे । तुम्हारे स्वप्न अवश्य ही पूरे होंगे ।’’

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