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jan lokpal kya hai

सरकारी लोकपाल बनाम जन लोकपाल

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आखिर क्या है जन लोकपाल? क्यों सरकार जन लोकपाल को लेकर परेशान है? असल में जन लोकपाल बिल एक ऐसा कानून है, जो भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के लिए किसी ताबूत से कम नहीं साबित होगा। पिछले 42 सालों में यह विधेयक कई बार कानून बनते-बनते नहीं बन पाया। यूपीए सरकार ने बिल का मसौदा तैयार तो किया, लेकिन सिविल सोसायटी के लोग और अब तो आम आदमी भी बिल के प्रावधानों से खुश नहीं है। समाज के कुछ प्रबुद्ध लोगों ने अपनी तरफ से कुछ सुझाव जरूर दिए, लेकिन सरकार ने उन पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा। नतीजतन, 73 साल के अन्ना हजारे को भूख हड़ताल करनी पड़ी। कहने को तो देश में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सीबीआई और केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसी संस्थाएं हैं, लेकिन समस्या यह है कि इन दोनों संस्थाओं को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर सरकारी नियंत्रण में काम करना पड़ता है। फिर सीवीसी के पास सिवाय अनुशंसा करने के और कोई अधिकार है भी नहीं। सीबीआई की हालत किसी से छुपी नहीं ह। केंद्र की सरकारें पिछले 40 सालों से लोकपाल विधेयक को पारित कराने में असफल रही हैं। राज्यों में लोकायुक्त तो हैं, लेकिन उनकी स्थिति भी महज एक सफेद हाथी बनकर रह गई है।
सरकार द्वारा बनाए गए लोकपाल बिल में केवल नेताओं को ही शामिल किया गया है। अधिकारियों और जजों के खिलाफ जांच करने का अधिकार लोकपाल को नहीं दिया गया है। जाहिर है, भ्रष्टाचार के सबसे बड़े पोषक यानी अफसरशाहों के लिए यह किसी राहत से कम नहीं है। इसके अलावा इस बिल में लोकपाल किसी के खिलाफ मुकदमा चलाने की सलाह तो सरकार को दे सकता है, लेकिन खुद किसी भ्रष्ट नेता के खिलाफ केस नहीं चला सकता। जबकि जनता की ओर से बनाए गए जन लोकपाल बिल में लोकपाल को पूर्णरूप से सरकारी नियंत्रण से बाहर रखने की बात है। इस बिल के मुताबिक किसी मामले में अगर लोकपाल चाहे तो खुद केस चला सकता है। साथ ही सरकारी धन की लूट या नुकसान को वसूलने का अधिकार भी लोकपाल को दिया गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बिल में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले सच के सिपाहियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी लोकपाल को देने की बात कही गई है। जनता चाहती है कि एक स्वतंत्र लोकपाल का गठन हो, साथ ही सीबीआई, एंटी करप्शन ब्यूरो और सीवीसी जैसी संस्थाओं का विलय भी इसमें कर दिया जाए। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि लोकपाल संस्था में विलय के बाद सीबीआई, एंटी करप्शन ब्यूरो एवं सीवीसी जैसी संस्थाएं ज्यादा कारगर, निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से काम कर पाएंगी।
वर्तमान व्यवस्था, सरकारी लोकपाल और जन लोकपाल
(1)
ऽ    वर्तमान व्यवस्था: तमाम सबूतों के बाद भी कोई नेता या बड़ा अफसर जेल नहीं जाता, क्योंकि एंटी करप्शन ब्रांच और सीबीआई सीधे सरकारों के अधीन आती हैं। किसी भी मामले में जांच या मुकदमा शुरू करने के लिए इन्हें सरकार में बैठे उन्हीं लोगों से इजाजत लेनी पड़ती है, जिनके खिलाफ जांच होनी है।
ऽ    सरकारी लोकपालः इसके पास शिकायतें आएंगी, लेकिन इसे खुद किसी मामले की जांच करने का अधिकार नहीं होगा यानी सलाह देने वाली संस्था।
ऽ    जन लोकपालः प्रस्तावित कानून के बाद केंद्र में लोकपाल और राज्य में लोकायुक्त सरकार के अधीन नहीं होंगे। एसीबी और सीबीआई का इसमें विलय कर दिया जाएगा। नेताओं या अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच और मुकदमे के लिए इसे सरकार की इजाजत लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जांच अधिकतम एक साल में और इसी तरह मुकदमे की सुनवाई भी अधिकतम एक साल में पूरी कर ली जाएगी यानी किसी भी भ्रष्ट आदमी को जेल जाने में ज्यादा से ज्यादा दो साल लगेंगे।
(2)
ऽ    वर्तमान व्यवस्थाः तमाम सबूतों के बावजूद भ्रष्ट अधिकारी सरकारी नौकरी में बने रहते हैं। उन्हें नौकरी से हटाने का काम केंद्रीय सतर्कता आयोग का है, जो केवल केंद्र सरकार को सलाह दे सकता है। किसी भ्रष्ट अफसर को नौकरी से निकालने की उसकी सलाह कभी मानी नहीं जाती।
ऽ    सरकारी लोकपालः लोकपाल को कार्रवाई करने का अधिकार नहीं होगा।
ऽ    जनलोकपालः प्रस्तावित लोकपाल और लोकायुक्तों के पास ताकत होगी कि वे भ्रष्ट लोगों को उनके पद से हटा सकें। केंद्रीय सतर्कता आयोग और राज्यों के विजिलेंस विभागों का इनमें विलय कर दिया जाएगा।
(3)
ऽ    वर्तमान व्यवस्थाः आज भ्रष्ट जजों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जाता, क्योंकि एक भ्रष्ट जज के खिलाफ केस दर्ज करने के लिए सीबीआई को प्रधान न्यायाधीश की इजाजत लेनी पड़ती है।
ऽ    सरकारी लोकपालः इसके दायरे में न्यायपालिका और नौकरशाह नहीं हैं।
ऽ    जन लोकपालः लोकपाल और लोकायुक्तों को किसी जज के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए किसी की इजाजत लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ये नौकरशाहों के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकते हैं।
(4)
ऽ    वर्तमान व्यवस्थाः आम आदमी कहां जाए? अगर आम आदमी भ्रष्टाचार उजागर करता है तो उसकी शिकायत कोई नहीं सुनता. उसे प्रताडि़त किया जाता है। जान से भी मार दिया जाता है।
ऽ    सरकारी लोकपालः भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वालों को सुरक्षा देने का प्रावधान नहीं है।
ऽ    जन लोकपालः लोकपाल और लोकायुक्त किसी की शिकायत को खुली सुनवाई किए बिना खारिज नहीं कर सकेंगे। ये भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करेंगे।
(5)
ऽ    वर्तमान व्यवस्थाः कमजोर, भ्रष्ट और राजनीति से प्रभावित लोग एंटी करप्शन विभागों के मुखिया बनते हैं।
ऽ    सरकारी लोकपालः लोकपाल की नियुक्ति नेता करेंगे।
ऽ    जन लोकपालः लोकपाल और लोकायुक्तों की नियुक्ति में नेताओं की कोई भूमिका नहीं होगी। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके और जनता की भागीदारी से होगी।
(6)
ऽ    वर्तमान व्यवस्थाः भ्रष्टाचार के मामले में 6 महीने से लेकर अधिकतम 7 साल की कैद का प्रावधान है।
ऽ    सरकारी लोकपालः लोकपाल खुद सजा का निर्धारण नहीं कर सकता।
ऽ    जन लोकपालः  कम से कम 5 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा होनी चाहिए।
(7)
ऽ    वर्तमान व्यवस्थाः भ्रष्ट व्यक्ति के पकड़े जाने पर भी उससे रिश्वतखोरी द्वारा कमाया हुआ पैसा वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है।
ऽ    सरकारी लोकपालः इसमें लूट के पैसे की वापसी का प्रावधान नहीं है।
ऽ    जन लोकपालः भ्रष्टाचार से सरकार को हुई हानि का आकलन कर उसे दोषियों से वसूला जाएगा।
(8)
ऽ    वर्तमान व्यवस्थाः सरकारी दफ्तरों में लोगों को बेइज्जती झेलनी पड़ती है, उनसे रिश्वत मांगी जाती है। लोग ज्यादा से ज्यादा वरिष्ठ अधिकारियों से शिकायत कर सकते हैं, लेकिन वे भी कुछ नहीं करते, क्योंकि उन्हें भी इसका हिस्सा मिलता है।
ऽ    सरकारी लोकपालः इसमें शिकायतकर्ता या पीडि़त को मुआवजा देने का प्रावधान नहीं है।
ऽ    जन लोकपालः लोकपाल और लोकायुक्त किसी व्यक्ति का किसी भी विभाग में तय समय सीमा के अंदर काम न होने पर दोषी अधिकारियों पर 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना लगा सकेंगे, जो शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा।

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