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संघ शिक्षा वर्ग: राष्ट्रसेवा का अभिनव व्रत

0 डाॅ0 नवीन आनंद जोशी
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को व्यक्ति निर्माण की कार्यशाला माना जाता है और अबतक के अपने 86 वर्ष के कार्यकाल में उसने इस मामले में अनेक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किए भी हैं ।  संघ में व्यक्ति निर्माण ही इस प्रक्रिया का स्वरूप वैसे तो नितांत अनौपचारिक ही है । सतत स्नेहसिक सान्निध्य से अगणित युवाओं और किशोरों के जीवन की धारा को देश की आवश्यकताओं के अनुसार बदलते हुए संघ में देखा जा सकता है ।
संघ में कार्यकर्ता प्रशिक्षण की जो सुव्यवस्थित योजना है उसका एक आदर्श उदाहरण है, बीस दिन या अधिक चलने वाले संघ शिक्षा वर्ग । प्रतिवर्ष ग्रीष्मकाल में लगने वाले इन वर्गो में देशभर में हजारों की संख्या में युवा और प्रौढ़ गुरूकुल शैली में अपने घर परिवार से दूर रह कठोर दिनचर्या का पालन करते हुए अपने आपको एक श्रेष्ठ समाज समर्पित कार्यकर्ता के रूप में ढालने का प्रयास करते हैं । तड़के चार बजे जागरण से रात्रि दस बजे दीप विसर्जन तक शारीरिक बौद्धिक कार्यक्रमों की कठोर श्रृंखला इन वर्गो में प्रतिदिन चलती है ।
ग्रीष्मकाल में सामान्यतः होने वाले लंबे शैक्षिक अवकाश का कार्यकर्ता प्रशिक्षण के लिए उपयोग की योजना बनाकर प्रारंभक वर्षो में 40 दिनों के लिए लगाए जाते थे । 1929 में प्रथम शिक्षा वर्ग नागपुर में लगाया गया था, तब इसे ग्रीष्णकालीन वर्ग कहा जाता था । प्रारंभिक काल में संघ शाखा पर दी जाने वाली आज्ञाएं अंग्रेजी भाषा में होती थी, तदनुसार कालांतर में इन ग्रीष्ण कालीन वर्गो को भी आॅफिसर्स ट्रेनिंग कैम्प (ओ.टी.सी.) कहा जाने लगा । क्रमिक विकास की कड़ी में अंग्रेजी आज्ञाओं और शब्दों का स्थान संस्कृत और हिन्दी में लिया और ओटीसी को 1939-40 के बाद ‘ संघ शिक्षा वर्ग ’ के रूप में जाना जाने लगा । 1934 तक यह वर्ग केवल नागपुर में होते थे लेकिन काम के विकास के साथ 1935 में पहली बार पुणे में भी शिक्षा वर्ग लगाए गए।
संघ शिक्षा वर्ग में प्रशिक्षण की दृष्टि से पाठ्यक्रम का निर्धारण कर इसके तीन स्तर प्रारंभ से ही निर्धारित किए गए थे । तदनुसार प्रथम एवं द्वितीय वर्ष के वर्ग वर्तमान में देश के सभी प्रांतों में (संघ रचनानुसार 39) में आयोजित होते हैं, जबकि तृतीय वर्ष का वर्ग केवल संघ मुख्यालय नागपुर में आयोजित होता है । बीस दिवसीय प्रथम एवं द्वितीय वर्ष की तुलना में तृतीय वर्ष का शिविर तीस दिवसीय होता है और इसमें विभिनन कसौटियों पर खरे चयनित स्वयंसेवकों को ही भाग लेने की अनुमति मिलती है । तृतीय वर्ष के शिविर में देश के सभी प्रांतों के स्वयंसेवकों का संगम भारत की अनेकता में एकता का सुन्दर स्वरूप प्रस्तुत करता है ।
संघ शिक्षा वर्गो के माध्यम से युवा किशोर कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने और वर्ग की व्यवस्थाओं में हजारों की संख्या में कार्यकर्ता प्रतिवर्ष अपना योगदान देते हैं । शिविर की सुरक्षा, साफ सफाई से लेकर स्वयंसेवकों के लिए पौष्टिक सात्विक भोजन निर्माण, उनके स्वास्थ्य की चिंता करने तक के लिए लगने वाले इन स्वयंसेवकों में सामान्यतः गृहस्थ कार्यकर्ता होते हैं जो अपनी नौकरी, व्यवसाय में छुट्टी लेकर परिवार के दायित्वों को परे रखकर व सौंपे गए दायित्व का पूरी तन्मयता से अपने घर में होने वाले मांगलिक कार्य सी भावना से निर्वहन करते हैं ।
आखिरकार विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन के शिक्षा वर्गो में ऐसा कौनसा प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसके माध्यम से ध्येय निष्ठ कार्यकर्ताओं की क्रमबद्ध श्रृंखला तैयार होती जाती है ? सामान्यतः इन वर्गो में स्वयंसेवक के व्यक्तित्व के चहुँमुखी विकास की दृष्टि से शारीरिक एवं बौद्धिक कार्यक्रमों की रचना की जाती है । शारीरिक कार्यक्रमों में भारतीय खेलों के विविध प्रकारों से लेकर, योग, प्राणायाम, समता, दण्ड संचालन एवं शाखा संचालन की पद्धति का प्रशिक्षण दिया जाता है वहीं बौद्धिक कार्यक्रमों में अपने देश की समृद्ध विरासत के परिचय से लेकर संगठन समाज और समसामयिक विषयों की सम्पन्न बढ़ाने की दृष्टि से बौद्धिक वर्ग, चर्चा सत्रों का आयोजन होता है । इसी के साथ अपने देश के प्रेरणा पुण्य महापुरूषों के जीवन प्रसंग रोचक कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत किए जाते हैं ।

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