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hindu rajya manipur me dharmantaran

हिन्दू बहुल मणिपुर में अब धर्मान्तरण


भारत की पूर्वात्तर सीमा में म्यांमार से सटा हुआ एक छोटा सा सुंदर प्रदेश है – मणिपुर । शिव-पार्वती के रास नृत्य के साथ जुड़ा हुआ है इस प्रदेश का नाम । मणिपुर की राजकुमारी चित्रागंदा से अर्जुन का विवाह, पुत्र बभ्रुवाहन का पराक्रम का गौरवमय इतिहास तत्पश्चाम महाराज भाग्यचन्द्र की यशोगाथाएँ, धर्मप्रवर्तक पाओना बृजवासी, वीर जनरल थांगल, अंग्रेजी शासन व ईसाई धर्मांतरण के विरूद्ध सशस्त्र संघर्ष करने वाले शहीद जादोनांग और पद्मभूषण से विभूषित नागा रानी गाइडिन्ल्यू – ये सभी बातें मणिपुर के साथ जुड़ी हुई हैं । चारों तरफ पहाडि़यों से घिरा कटोरा नुमा इम्फाल घाटी – इस सुंदर प्रदेश को अंग्रेजों ने ‘‘ स्विट्जरलैण्ड आॅफ द ईस्ट ’’ कहा है । मणिपुर की कुल आबादी 25 लाख है । दो तिहाई आबादी मैतेई और शेष एक तिहाई नागा और कुकी जनजातियों की है जो पहाडि़यों पर रहते हैं । देश की राजधानी से लगभग 3000 कि.मी. दूर स्थित यह प्रदेश केवल भौगोलिक ही नहीं बल्कि भावों से भी अपने आप को दूर अनुभव करता है ।
आजादी से पूर्व तक हिन्दू बहुल आबादी वाला यह प्रदश गत छः दशकों से ईसाई धर्मांतरण का निशाना बन चुका है । इस छोटे से राज्य का भारत में विलीन, काबो घाटी को बर्मा (म्यांमार) को सौंपने, विकास के प्रति दुर्लक्ष्य जैसी समस्याओं को लेकर मणिपुर के जनमानस को आंदोलित किया जाता है । नागा और कुकी जनजातियों की लगभग 32 उप-जातियाँ हैं । नागा-कुकी-मैतेई के वर्चस्व की लड़ाईयाँ भी बीच-बीच में होती रहती है । भारत विरोध को उग्र रूप देने के लिए यहाँ आतंकवादी संगठन अपने पैर पसार चुके हैं । भारत के अन्यान्य प्रांतों से आए व्यापारी, मजदूर व कर्मचारियों को भगाने के आंदोलन आम बात हैं । हिन्दी पढ़ना, पढ़ाना, बोलना, फिल्मों का प्रदर्शन पर भी प्रतिबंध लगता है ।
पहाड़ी पर रहने वाले जनजाति लोग ‘मणिपुर’ भाषा के विरूद्ध जनआन्दोलन कर अपने विद्यालयों में मणिपुरी को बंद करवाया । 80 के दशक में मणिपुर और बर्मा को मिलाकर चीन की सहायता से ‘ ब्राचीन ’ देश बनाने का भी आन्दोलन जोरों पर चला । 44 आतंकवादी गुटों की साया में मणिपुर अराजकता की स्थिति से जूझ रहा है । मणिपुर में नौ प्रशासनिक जिले हैं – इम्फाल (पूर्व), इम्फाल (पश्चिम), विष्णुपुर, थौबाल, चान्देल, उखुल, सेनापति, तामेंललाग, चूराचांदपुर । इनमें 4 जिलें घाटी और शेष 5 जिले पहाड़ी हैं ।
कल्याण आश्रम का काम 1979 में प्रारंभ हुआ । थौबाल जिले के हाइरोक गांव में एक बालक छात्रावास प्रारंभ हुआ । एक वर्ष बाद यह छात्रावास काक्चिंग में स्थानांतरित हुआ । प्रारंभ में इस छात्रावास में मरिंग, लियांगमई, रोंगमई, तराओं, मराम आदि जनजाति के छात्र पढ़ने आए । गत तीन-चार दशकों का अतीत पर ध्यान करें तो देखते हैं कि कभी एक साल भी मणिपुर शांत नहीं रहा । हर दूसरे-तीसरे महीने कोई न कोई बन्द का आहवान और नाकेबन्दी जैसी घटनाएँ आम बात है । अशांत और आतंकित सामाजिक स्थितियों का प्रभाव कल्याण आश्रम के कार्य और कार्यकर्ताओं पर पड़ता है ।
एक जनजाति विशेष के पूर्व छात्रों ने धर्म संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए संगठित होना प्रारंभ किया तो ईसाईयों ने उन्हें पीटा और आतंकित किया। पग-पग पर बाधाएँ ही बाधाएँ । धन और साधन का अभाव रहता है । आतंकवादी बंदूक की नोक पर अकूट राशि इकट्ठी कर लेते हैं । इन सभी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी नहीं है । निराशा का भाव नहीं है । आश्चर्य की बात यह है कि कुल कार्यकर्ता 50 है जो पूर्णकालिक है इनमें से 31 महिला कार्यकर्ता हैं निर्भीकता से गांवों में बालवाडि़याँ चलाती हैं, प्रवास करती हैं । बात करते समय गहरे भाव से भरे इन कार्य कर्ताओं के अथक परिश्रम से धर्म-संस्कृति जागरण अभियान धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है । तिंगकाओ रागवांग चाप्रियाक फोम-जेलियांगरांग नागा स्वधर्म संगठन और कल्याण आश्रम के संयुक्त प्रयास से कलुमकई की स्थापना गांव-गांव में हो रही है जिसमें गांववासी प्रति सप्ताह परम्परा के अनुसार पूजा पाठ करते हैं । अंधेरे में आशा किरण जैसा कल्याण आश्रम मणिपुर में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है ।

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