jatiwadi congress
जातिवादी कांग्रेस
गत मार्च माह के कांग्रेस पार्टी के मुखपत्र ‘ कांग्रेस संदेश ’ के अंक में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू जैसे अमर शहीदों की जाति का उल्लेख करते हुए उनकी जातिगत पहचान बतायी गयी ।
अब जब शहीदों के इस अपमान पर हंगामा हुआ तो इस मुखपत्र में सम्पादक अनिल शास्त्री ने सफाई देते हुए कहा कि उनकी जाति बताना इनके जीवन वृंत्त का एक हिस्सा है ।

शहीदों की जातियाँ बताने वाली कांग्रेस को पिछले वर्ष की वह घटना याद करनी चाहिये जब एक व्यक्ति द्वारा गृह मंत्रालय से सोनिया गाँधी, प्रियंका गाँधी तथा राहुल गांधी के द्वारा अपनाये गये धर्म और उनके द्वारा निभाये जाने वाले रीति-रिवाजों के बारे में जानकारी सूचना के अधिकार से मांगी गयी थी, तब कांग्रेस केन्द्र सरकार ने गृह मंत्रालय ने यह जानकारी निजी बताकर देने से इंकार कर दिया था । उसी कांग्रेस का मुखपत्र अब देश के शहीदों की जातियों की जानकारी रेवडि़यों की तरह बाँट रहा है ताकि आने वाले समय में इन क्रांतिकारी महापुरूषों की जयंतियों और शहादत को भी जातिगत आधार पर लोग बनायें ।
जब कोई जेहादी मुस्लिम आतंकवादी आतंकी घटना के बाद पकड़ा जाता है तो यही कांग्रेसी चिल्लते हैं कि आतंकवादी का कोई धर्म या जाति नहीं होती, परन्तु किसी छोटी सी घटना में से किसी हिन्दू व्यक्ति का नाम आ जाने पर वह हिन्दू आतंकवादी माना जाता है । आखिर कांग्रेस की यह दोगली नीति कैसे ?
इतिहास गवाह है कि महात्मा गांधी भी अपने जीवन में जातिवादी मानसिकता से उबर नहीं पाये थे । 1934 में वर्धा के संघ शिक्षा वर्ग में जब महात्मा गांधी पधारे थे, तब वहाँ पर भी एक कार्यकर्ता से उसकी जाति पूछ कर और उसके द्वारा स्वयं को दलित बताये जाने पर संघ द्वारा छुआछूत की भावना से दूर रहकर कार्य करने की प्रशंसा की थी । परन्तु सवाल यह है कि जब इस शिविर में हर कार्यकर्ता केवल हिन्दू के रूप में उपस्थित था, तो फिर गांधी ने उस कार्यकर्ता की जाति पूछी क्यों ? यह उनकी जातिगत मानसिकता का द्योतक है । जबकि 1939 में पूजा के संघ शिविर में जब डाॅ0 अम्बेडकर जी आये थे तो उन्होंने किसी कार्यकर्ता की जाति नहीं पूछी और केवल छुआछूत रहित संघ कार्य की प्रशंसा की ।
जब कोई जेहादी मुस्लिम आतंकवादी आतंकी घटना के बाद पकड़ा जाता है तो यही कांग्रेसी चिल्लते हैं कि आतंकवादी का कोई धर्म या जाति नहीं होती, परन्तु किसी छोटी सी घटना में से किसी हिन्दू व्यक्ति का नाम आ जाने पर वह हिन्दू आतंकवादी माना जाता है । आखिर कांग्रेस की यह दोगली नीति कैसे ?
इतिहास गवाह है कि महात्मा गांधी भी अपने जीवन में जातिवादी मानसिकता से उबर नहीं पाये थे । 1934 में वर्धा के संघ शिक्षा वर्ग में जब महात्मा गांधी पधारे थे, तब वहाँ पर भी एक कार्यकर्ता से उसकी जाति पूछ कर और उसके द्वारा स्वयं को दलित बताये जाने पर संघ द्वारा छुआछूत की भावना से दूर रहकर कार्य करने की प्रशंसा की थी । परन्तु सवाल यह है कि जब इस शिविर में हर कार्यकर्ता केवल हिन्दू के रूप में उपस्थित था, तो फिर गांधी ने उस कार्यकर्ता की जाति पूछी क्यों ? यह उनकी जातिगत मानसिकता का द्योतक है । जबकि 1939 में पूजा के संघ शिविर में जब डाॅ0 अम्बेडकर जी आये थे तो उन्होंने किसी कार्यकर्ता की जाति नहीं पूछी और केवल छुआछूत रहित संघ कार्य की प्रशंसा की ।
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