जाने... फिर पहचाने!
करोड़ों निरक्षर मुसाफिरों के हक में मद्रास हाईकोर्ट ने ठीक फैसला दिया है कि रेलवे सफर के लिए पहचान-पत्र जरूरी करने से पहले यह तो जान लें कि करोड़ों लोग अनपढ़, गरीब और जानकारी की दुनिया से दूर हैं।
ऐसे में सफर कर रहे यात्री के पास यदि पहचान-पत्र न हुआ तो बेचारा बीच रास्ते में किराया देने के बाद भी रेल से उतार दिया जाएगा। दरअसल, विकास और सुधार के नाम पर हर तरफ नए-नए नियमों की सख्ती और बाधाएं खड़ी की जा रही हैं। यदि रेलवे को दलालों और टिकट माफियाओं को रोकना है तो सजा मुसाफिरों को क्यों? अपने अमले को दुरुस्त करने के बजाय करोड़ों मुसाफिरों को तंग किया जा रहा है। माना कि पहचान-पत्र जरूरी होने से घोटाले और गड़बड़ी रुकेगी, लेकिन इस सख्ती का व्यवहारिक पक्ष तो पहले जाना जाए कि एकाएक यह सख्ती उन लोगों के लिए संकट और परेशानी का कारण बन जाएगी, जो गांवों में रहते हैं या बस्तियों में और जिनके पास पेनकार्ड, लाइसेंस या डाक पहचान-पत्र नहीं होता। मतदाता परिचय-पत्र सबके पास हो सकता है, लेकिन अभी तक करोड़ों मतदाताओं के परिचय-पत्र बनने बाकी हैं और यही हाल आधार कार्ड के हैं। अलावा इसके मेहनत-मजदूरी करने वालों में अभी इस आदत का डलना बाकी है कि वो हमेशा अपना पहचान-पत्र साथ रखें।
रेलवे ने बचाव किया है कि अभी यह सख्ती केवल आरक्षित क्लास में ही की गई है, लेकिन इसमें भी आम आदमी का हक तो मारा ही जा रहा है। यदि किसी के पास पहचान-पत्र न हो तो या मजबूरी में वह आम डिब्बे में ही जाए, भले रिजर्वेशन मिल रहा हो? बहुत अन्याय है यह। कोई भी नियम आम आदमी को नजर में रखकर बनाने चाहिए और उसमें भी यह ध्यान रखना जरूरी है कि आम आदमी की भीड़ में भी आधी आबादी उनकी है, जो शिक्षा से दूर और आधुनिक तकनीक से अनजान चूल्हे-चौके और खेत-खलिहानों में खटती रहती है। रेलवे को पहचान-पत्र की अनिवार्यता धीरे-धीरे लागू करनी होगी, ताकि यह सबकी जानकारी और आदत में शुमार हो जाए कि रेल में चढ़ना है तो पहचान-पत्र साथ में होना जरूरी है।
ऐसे में सफर कर रहे यात्री के पास यदि पहचान-पत्र न हुआ तो बेचारा बीच रास्ते में किराया देने के बाद भी रेल से उतार दिया जाएगा। दरअसल, विकास और सुधार के नाम पर हर तरफ नए-नए नियमों की सख्ती और बाधाएं खड़ी की जा रही हैं। यदि रेलवे को दलालों और टिकट माफियाओं को रोकना है तो सजा मुसाफिरों को क्यों? अपने अमले को दुरुस्त करने के बजाय करोड़ों मुसाफिरों को तंग किया जा रहा है। माना कि पहचान-पत्र जरूरी होने से घोटाले और गड़बड़ी रुकेगी, लेकिन इस सख्ती का व्यवहारिक पक्ष तो पहले जाना जाए कि एकाएक यह सख्ती उन लोगों के लिए संकट और परेशानी का कारण बन जाएगी, जो गांवों में रहते हैं या बस्तियों में और जिनके पास पेनकार्ड, लाइसेंस या डाक पहचान-पत्र नहीं होता। मतदाता परिचय-पत्र सबके पास हो सकता है, लेकिन अभी तक करोड़ों मतदाताओं के परिचय-पत्र बनने बाकी हैं और यही हाल आधार कार्ड के हैं। अलावा इसके मेहनत-मजदूरी करने वालों में अभी इस आदत का डलना बाकी है कि वो हमेशा अपना पहचान-पत्र साथ रखें।
रेलवे ने बचाव किया है कि अभी यह सख्ती केवल आरक्षित क्लास में ही की गई है, लेकिन इसमें भी आम आदमी का हक तो मारा ही जा रहा है। यदि किसी के पास पहचान-पत्र न हो तो या मजबूरी में वह आम डिब्बे में ही जाए, भले रिजर्वेशन मिल रहा हो? बहुत अन्याय है यह। कोई भी नियम आम आदमी को नजर में रखकर बनाने चाहिए और उसमें भी यह ध्यान रखना जरूरी है कि आम आदमी की भीड़ में भी आधी आबादी उनकी है, जो शिक्षा से दूर और आधुनिक तकनीक से अनजान चूल्हे-चौके और खेत-खलिहानों में खटती रहती है। रेलवे को पहचान-पत्र की अनिवार्यता धीरे-धीरे लागू करनी होगी, ताकि यह सबकी जानकारी और आदत में शुमार हो जाए कि रेल में चढ़ना है तो पहचान-पत्र साथ में होना जरूरी है।
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