आंच और जांच!


अपने दामाद पर लगे आरोप पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का सही रवैया तो यह रहता कि वो उनके बचाव में आने की बजाय सीधे जांच का कह देतीं।
इससे किसी को न तो जांच की मांग करनी पड़ती और न सोनिया परिवार पर संदेह की आंच आती। सार्वजनिक जीवन में ईमानदार होना ही जरूरी नहीं होता, ईमानदार दिखना भी चाहिए। जब सरकार पर आरोप लगाने वालों पर तुरंत जांचें हो जाती हैं तो हम पर लग रहे धब्‍बे को बचाने से ज्यादा धोना जरूरी! क्‍यों न जांच का सामना किया जाए और यदि दामाद ने महज व्यापार किया है तो सबके सामने सच लाया जाए। कोई किसी परिवार का रिश्तेदार हो जाने से अपना व्यापार करने का हक नहीं गंवा देता है, लेकिन उस परिवार की ज्मिेदारी तो बढ़ ही जाती है कि आरोप लगने पर बचाव की जगह जांच कराई जाए और जिन्हें शंका है, उसे दूर किया जाए। कांग्रेस अध्यक्ष से इस मामले में निहायत बचकानी और नुकसानदायी हरकत हो गई है कि उन्होंने पार्टी और सरकार को बचाव में उतार दिया।

राबर्ट वाड्रा यदि सरकार और संगठन के हिस्से नहीं हैं तो दोनों को उनके पाले में उतारना चोर की दाढ़ी में तिनका ही माना जाएगा। जो व्यापार कर रहा है और जिसका कारोबार करोड़ों में है, उसे बचाव की समझ होगी ही। वो अपना बचाव खुद करेगा। सरकार और संगठन को इससे क्‍या? यदि सरकार और संगठन इसमें सीधे जांच घोषित कर देते तो वैसा नुकसान नहीं होता, जैसा अब हो रहा है कि दाल में यदि काला नहीं है तो ढंकने की ऐसी भौंडी कोशिश क्‍यों हुई?

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