जरूरत की जय...!

जरूरत की जय...!यदि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने गांवों में शौचालयों को मंदिर के मुकाबले ज्यादा जरूरी बता दिया है तो इसमें धार्मिक भावना कहां आहत हो रही है? सर्वोच्च न्यायालय ने हर गांव में सार्वजनिक शौचालय बनाने की नसीहत दी है। मंदिर जरूरी है या शौचालय?
देश की आधी आबादी आज भी खुले में दिनचर्चा निपटाने को मजबूर है और खासकर सबसे ज्यादा असुविधा महिलाओं को है। ऐसे कई मामले हुए जिनमें महिलाएं शौचालय नहीं होने पर पति का घर छोड़कर आ गई थी। इसके बिना जिए कैसे? यदि गांव-गांव में मंदिर बनवाने वालों ने शौचालय बनवा दिए होते तो ये सबसे बड़ा धर्म का काम होता। महिलाएं और बच्चे तकलीफ पा रहे हैं, एक जरूरी प्राकृतिक सुविधा उन्हें उपलब्‍ध नहीं कराई जाए और इस मानवीय जरूरत की कमी पर हमें शर्म तक नहीं आती, उल्टे हमारी धार्मिक भावनाएं आहत हो जाती है? धार्मिक भावनाओं के आहत होने का ठेका लिए दलों की भी सरकारें है, उन्होंने ये बहुत जरूरी जरूरत पूरी क्‍यों नहीं की? करोड़ों लोग मामूली सुविधा के लिए तरस रहे हैं, तब हमारा धर्म कुछ नहीं कहता और मंत्री जरूरत को मंदिर से ज्यादा जरूरी बता दे तो भावनाएं आहत हो जाती है और हम सड़क पर निकल पड़ते हैं।
गांव-गांव में शौचालय हो और हमें दुनिया में इसकी कमी के चलते शर्मिंदा न होना पड़े, इसके लिए हम आज तक सड़क पर नहीं निकले! जो काम हमने कभी का कर देना था, जिसे हो जाना था कि हम देश की तरक्की की बातें करते नहीं थकते, वो तो आज तक हुआ नहीं, कमबख्त भावनाएं हैं कि आहत हो रही है। देश की बड़ी आबादी शौचालय से मरहूम है, इस पर हमारी भावनाओं को न शर्म आ रही है और न धर्म याद आ रहा है कि उसमें भी सबसे ज्यादा जोर सबको बराबर रखने पर दिया गया है।

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