बिना तोल के बोल!


बड़े नेताओं की छोटी बातें बता रही हैं कि गलत लोग सही जगहों पर जाकर काबिज हो गए हैं। जिन्हें बोलने तक का भान नहीं, जिन्हें पद का ध्यान नहीं, जिनके मन में बाकी लोगों के लिए मान नहीं, ऐसे नेताओं के बोल वचन डराते हैं।
यदि श्रीप्रकाश जायसवाल सार्वजनिक रूप से पुरानी पत्नी में मजा नहीं आने का कहते हैं तो भूल जाते हैं कि वो केंद्र सरकार के मंत्री हैं और देश और दुनिया की उन पर निगाह है। उनका बोलना मायने रखता है और देश की छवि का सवाल है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अभी चल रही अपनी यात्रा में विरोधियों पर भाषण में बरसे और जो कहा, वह गली मोहल्ले का नेता भी बोलने से बाज आए। नरेन्द्र मोदी, नितीन गडकरी, दिग्विजयसिंह, कपिल सिब्‍बल, बाल ठाकरे, जयराम रमेश, ममता बनर्जी, प्रभात झा, रामगोपाल यादव, लालू यादव, मनीष तिवारी, बीके हरिप्रसाद जैसे ढेरों नेताओं ने अपने बोलवचनों से राजनीति में आई गिरावट का सबूत दिया है कि बोलते समय उन्हें कुछ भी कहने से परहेज नहीं। कभी राजनीति में बोलने का इतना ज्यादा ध्यान रखा जाता था कि गलत शब्‍द के उपयोग पर नेता खुद शरमा जाते थे। एक बार सांसद प्रकाशबीर शास्त्री ने नेहरूजी से माफी मांगी कि मैंने आपको निर्मम कह दिया। तब राजनीति में ऐसी शालीनता थी कि गुस्से में नेता बोलने के बजाय चुप हो जाते थे। गांधीजी तो बोलना बंद कर चुप हो जाते कि मुंह से कुछ गलत न निकल जाए। तब नेता अपने विरोधी के लिए भी स्मान से बोलते थे और अब तो पूरे समूह के लिए कुछ भी कह डालते हैं। यह भी चिंता नेताओं को नहीं कि उनकी बात से लोगों का दिल दुखेगा। उन्हें तो बोलना है, उसके पहले नहीं सोचना है कि क्‍या बोलें। बाद में भले माफी मांगते रहें!

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