चंद लोगों का बंद!
ममता बनर्जी पहली नेता हैं, जो बंद के खिलाफ खुलकर आईं और कहा कि बंगाल बंद नहीं होगा। इससे कुछ नहीं होता और आम आदमी को बहुत तकलीफ होती है, लेकिन वो भी अपने राज्य में कितना खुला रख पाएंगी कि माकपा ने बंद का ऐलान किया है।बंगाल की तरह महाराष्ट्र में भी पहली बार शिवसेना के ठाकरे बंधुओं की आज के बंद में रुचि नहीं है और उन्होंने इसे बेजा बताया है। हालांकि उन्होंने गणेशोत्सव के कारण बंद से असहमति जताई है कि राज्य के सबसे बड़े त्योहार में लोगों को दिक्कत में डालना ठीक नहीं। भले कारण गणपति हो, लेकिन बंद तो नहीं है। जैसा ममता और शिवसेना ने सोचा, बाकी दलों ने क्यों नहीं सोचा? क्या होता है बंद रखकर? यदि भोपाल को सीएम शिवराजसिंह ने लंका के राष्ट्रपति के लिए चालू रखा तो प्रदेश बंद की क्या जरूरत थी? बाकी और भी तरीके हैं विरोध के लिए। बंद रखकर कब तक देश को नुकसान और लोगों को दुख दिया जाता रहेगा!चंद मगजों की फितरत होती है बंद और आम आदमी घरों में कैद रहने को मजबूर हो जाता है कि बाजार बंद है। काम-धंधे ठप हैं और उसकी सुध किसी को नहीं कि उसे दवाई लानी है, इलाज कराना है, परीक्षा देने जाना है, कहीं जरूरी में पहुंचना है। कब बंद होगा ये फिजूल का बंद। मुख्य विपक्षी दल भाजपा को संसद में बहस रास नहीं आती और वह बंद पर तुरंत उतारू हो जाती है। एक दिन का बंद देश को अरबों की चपत लगाता है और एक महीने पीछे सरका देता है। क्या ये जायज है? इसे देशभक्ति और लोगों की चिंता माना जाए? बंद पर तो अब समय आ गया है कि लोग इसके खिलाफ हों और राजनीति वालों को साफ-साफ जताएं कि जो भी दल बंद करेगा, मतदाता उसे वोट देना बंद कर देगा कि आखिर इस लाइलाज बीमारी को खत्म करना है। शायद ममता और शिवसेना से सीखें बाकी दल!
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