छोटा दल, बड़ा दखल


अब यह समझने में कोई दिक्‍कत नहीं कि देश के भले के लिए गठबंधन की राजनीति फायदेमंद है। आम आदमी के हित में बड़े दलों की ज्यादतियों और मनमानी पर छोटे क्षेत्रीय दलों का अंकुश बहुत जरूरी है।
यदि ममता बनर्जी की टीएमसी का डंडा न हो तो केन्द्र की निरंकुश सरकार आम आदमी के चूल्हे में पानी डाल दे। इसके पहले भी ममता के कारण पेट्रोलियम पदार्थों में कीमतें बढ़ाने से लेकर किराना बाजार में विदेशी पूंजी के लाने का प्रस्ताव रुकता रहा है। एफडीआई लाने को बेकरार मनमोहनसिंह सरकार पर ममता की रोक लाभदायी है। अब समझ में आ रहा है कि दल छोटे भले हों, लेकिन बड़ी भूमिका निभाने में कारगर है। इसके पहले यही काम कम्‍युनिस्ट करते थे, जिनका मनमोहन सरकार को समर्थन था। यह ममतामयी रोक न हो तो सरकार गरीब के हक पर डाका डालने से बाज न आए और रियायती गैस सिलेंडरों की संख्या छह से बढ़ाने का सोचे भी नहीं। सरकार में शामिल दलों में अकेले टीएमसी ही ऐसी है, जो बार-बार सरकार को काबू कर रही है। एनसीपी और द्रमुक महज सरकार का लाभ लेने भर तक सीमित हैं और दोनों के मंत्री मामलों में ऐसे फंसे हैं कि तेज आवाज में सरकार से बात नहीं कर सकते।
ममता की तुनकमिजाजी और अक्‍खड़ स्वभाव को छोड़ दें तो उनकी साफगोई, जनता के प्रति सोच और ईमानदारी के आगे बार-बार सरकार को घुटने टेकने पड़ रहे हैं। अभी भी सरकार से बाहर आने की धमकी का असर है कि सरकार डीजल की कीमतें घटाने और आम आदमी को ज्यादा रियायती गैस देने पर मजबूर हो रही है। ममता का यह काम आमजन में राहत और सुकून देने वाला है। मनमोहनसिंह ने पहले कार्यकाल में जो पुण्याई कमाई थी, सब गंवाने और बेड़ा गर्क करने वाले प्रधानमंत्री की छवि बनाने पर आमादा लग रहे हैं। ममता न हो तो सरकार निर्दय हो जाए। अब जाकर सही लग रहा है कि छोटे दलों का बड़ा दखल देशहित में जरूरी है।

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