सफेदी के सिपाही!

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और भाजपा समझ गई थी कि उनके कार्यकाल में हजारों करोड़ कमा गए दिलीप सूर्यवंशी और सुधीर शर्मा गले का पत्थर हैं और जनता की नजरों में डूब मरने के लिए काफी है।वह और बहस कराकर दामन को कीचड़ से भरना नहीं चाहती थी। उससे एक गलती हुई कि उसने कांग्रेस विधायकों कल्पना परुलेकर और चौधरी राकेशसिंह को सदन से बर्खास्त कर दिया। दोनों आसंदी पर पहुंच गए थे। मौका अच्छा था कि भाजपा को बहस और कीचड़ से बचने का इससे बढ़िया और कुछ न होता। अभी प्रदेश में कांग्रेस मूढ़मति की तरह काम कर रही है। उसके हाथ बम लग गया था कि वह अपने दोनों बर्खास्त विधायकों को प्रदेश में घुमाकर हंगामा कर सकती थी कि राज्य को लूटने वालों पर चर्चा की मांग का ये नतीजा निकला है। भाजपा को गलती समझ आ गई थी और वह बचाव की मुद्रा में थी। तभी कांग्रेस ने विधायकों से माफी दिलाकर और नेता प्रतिपक्ष से पुनर्विचार की याचिका अध्यक्ष को लगवा कर सारे किए धरे पर पानी तो फेरा ही, यह भी साबित कर दिया कि वह विपक्ष की भूमिका निभाने लायक भी नहीं बची है। उसका नेतृत्व भाजपा के रणनीतिकारों के हाथ खेल रहा है और पार्टी के लाभ-हानि की न तो उसे चिंता है और न ही वो उसकी गंभीरता समझ पा रहा है।
यदि माफी नहीं मांगी जाती, तो क्‍या आसमान टूट जाता? बर्खास्त तो हो ही चुके थे। जनता में जाने का इससे बेहतर और क्‍या मुद्दा होगा? यदि उपचुनाव भी होते तो जनता आसंदी पर चढ़ जाने को बड़ा अपराध मानती या प्रदेश लूट कर करोड़ों डकार जाने को? रंगे हाथ पकड़े गए चोर को छोड़ देने से यदि यह शंका मतदाता के मन आए कि सब मिलीभगत का नतीजा है, तो गलत कुछ भी नहीं। भाजपा को संभलने का मौका देकर कांग्रेस लड़खड़ा गई है और ऐसे कदम मंजिल की तरफ तो जाते नहीं। कांग्रेस का मिशन 2013 अभी के खैवन हारों के भरोसे डूबने को है, समझने को बाकी न रहा। भाजपा के काले पर कांग्रेस ने जो सफेदी की है, उससे वह मतदाता के सामने बोलने लायक नहीं रही कि यदि वो गलत थे, तो आपने माफी क्‍यों और किसलिए मांगी?

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