पुण्यार्जन
बचपन में ज्ञानार्जन कीजिए और जवानी में धनार्जन, पर बुढ़ापे को पुण्यार्जन के लिए समर्पित कर दीजिऐ। बचपन माँ को दिया, जवानी पत्नी को दी और बुढ़ापा पोते-पोतियों को दे देंगे तो सोचिए अपनी सदगति की व्यवस्था कब करेंगे। आसक्ति की जड़ों को थोड़ा ढीला कीजिये। घर के बेटे और बहुओं को सलाह है कि अगर घर में कोई वृद्ध हैं तो उन्हें भार मानने की बजाय भाग्य मानिऐ। याद रखें, बूढ़ा पेड़ फल नहीं देता, पर छाया तो देता ही हैं। अपने माता-पिता को भाग्य भरोसे मत छोड़िए। उनके बुढ़ापे को सुखमय बनाने की कोशिश कीजिए। जब उन्होंने हमें प्रेम से पाला तो हम उन्हें विवशता में क्यों पाल रहे हैं। उनकी दुआएँ लीजिए और आने वाली पीढ़ी को संस्कार दीजिए। घर के बुढ़े लोंगों की सेवा करना मुश्किल हैं आप पहले अपने घर की आग बुझाइए फिर औरों के घर पर पानी छिड़किए, इसी में भलाई हैं। बुढ़ापे को बेकार मत समझिए। इसे सार्थक दिशा दीजिए। तन में बुढ़ापा भले ही आ जाए, पर मन में इसे मत आने दीजिए। आप जब 21 के हुए थे तब आपने शादी की तैयारी की थी, अब अगर आप 51 के हो गए हैं तो शान्ति की तैयारी करना शुरू कर दीजिए। सुखी बुढ़ापे का एक ही मन्त्र हैं – दादा बन जाओ तो दादागिरी छोड़ दो और परदादा बन जाओ तो दुनियादारी करना छोड़ दो। अगर आप जवान हैं तो गुस्से को मन्द रखो, नही तो केरियर बेकार हो जाएगा और बूढ़े हैं तो गुस्से को बंद रखो नहीं तो बुढ़ापा बिगड़ जाएगा। बुढ़ापे को स्वस्थ, सक्रिय और सुरक्षित रखिए। स्वस्थ बुढ़ापे के लिए खानपान को सात्त्विक और संयमित कीजिए, सक्रिय बुढ़ापे के लिए घर के छोटे-मोटे काम करते रहिए और सुरक्षित बुढ़ापे के लिए सारा धन बेटों में बाँटने के बजाय एक हिस्सा खुद व खुद की पत्नी के नाम भी रखिए। दवाओं पर ज्यादा भरोसा मत कीजिए। भोजन में हल्दी, मैथी और अजवायन का उचित मात्रा में सेवन करते रहिए, हल्के-फुल्के व्यायाम अवश्य कीजिए अथवा आधा घण्टा टहल लीजिए। घरवालों पर हम भार न लगे और शरीर भी भारी न लगे इसलिए कुछ-न-कुछ करते रहिए।
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