uma up me bjp ko nai dhar degi
उमा देगी उ.प्र. के संघर्ष में भाजपा को नई धार
अपनी प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध सुश्री उमा भारती की भारतीय जनता पार्टी में वापसी से उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ बसपा के खिलाफ पार्टी के संघर्ष को नई धार मिलने की संभावना बलवती हो गयी है । हालांकि पार्टी पहले से ही मायावती की सरकार के विरुद्ध सड़कों पर उतरकर संघर्ष कर रही है, लेकिन अब सुश्री उमा भारती के इस संघर्ष का हिस्सा बनने से उसकी ताकत और राजनीतिक ऊर्जा को नया आयाम मिलेगा ।
1990 के दशक में राम जन्मभूमि-आंदोलन जब अपने चरम पर था, तब उसमें बढ़-चढ़कर भाग लेने वाली उमा भारती बाद में मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से भाजपा की सांसद बनी । फिर केन्द्र की राजग सरकार में मंत्री रहीं । मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री भी रहीं । करीब छह साल पहले जब उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ा, तब से अब तक उनकी हिन्दुत्वनिष्ठा में किसी भी तरह की कमी नहीं आयी । सुश्री भारती की हिन्दुत्व के प्रति यही निष्ठा उन्हें फिर से भाजपा में खींच लायी । यही कारण है कि अब उन्हें पार्टी में शामिल कर उत्तर प्रदेश का स्टार प्रचारक घोषित किया गया तो प्रदेश भाजपा के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह दिखा ।
दरअसल, उत्तरप्रदेश इन दिनों बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है । अन्याय, अत्याचार, वंचितों पर हमले और उनकी बहू बेटियों के साथ दुराचार सहित हर वर्ग का हर तरह से उत्पीड़न हो रहा है । ऐसे मेें एक सशक्त विपक्ष और संघर्षशील नेता की बहुत आवश्यकता थी । सोनिया-राहुल की कांग्रेस में इस सरकार से लड़ने की इच्छाशक्ति की बेहद कमी देखी जा रही है । मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और उसके नेता पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं । आम आदमी उनके बारे में सोचता है तो गुंडाराज की याद करके हर जाता है । ऐसी स्थिति में एक सशक्त, संघर्षशील और विश्वसनीय विपक्ष की कमी को उमा भारती पूरा कर सकेंगी, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिये ।
प्रसंगवश यहाँ यह चर्चा करना अनुचित नहीं होगा कि पिछले एक दशक में भाजपा पहले से चैथे नम्बर पर खिसक गयी है 1999 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को अपने बूते 58 सीटें प्राप्त हुई थीं और उसके हिस्से में 33 प्रतिशत मत आए थे । इससे पूर्व 1991 के चुनाव मेें 220 विधनसभा सीटों के साथ पहली बार राज्य की सत्ता में आयी थी । 1993 और 1996 के विधानसभा चुनाव में उसके पास 178 सीटें थीं । गठबंधन के साथ वह कुल मिलाकर तीन बार सत्ता में रही। लेकिन धीरे-धीरे उसकी सीटें घटती चली गयी । उसके पास इस समय विधानसभा की मात्र 48 सीटें हैं और मात्र 19 प्रतिशत मत हैं । पिछले लोकसभा चुनाव में उसे मात्र 10 सीटें मिली थीं और सबसे कमजोर समझी जाने वाली कांग्रेस उसे पछाड़कर 22 सीटें ले गयी ।
1990 के दशक में राम जन्मभूमि-आंदोलन जब अपने चरम पर था, तब उसमें बढ़-चढ़कर भाग लेने वाली उमा भारती बाद में मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से भाजपा की सांसद बनी । फिर केन्द्र की राजग सरकार में मंत्री रहीं । मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री भी रहीं । करीब छह साल पहले जब उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ा, तब से अब तक उनकी हिन्दुत्वनिष्ठा में किसी भी तरह की कमी नहीं आयी । सुश्री भारती की हिन्दुत्व के प्रति यही निष्ठा उन्हें फिर से भाजपा में खींच लायी । यही कारण है कि अब उन्हें पार्टी में शामिल कर उत्तर प्रदेश का स्टार प्रचारक घोषित किया गया तो प्रदेश भाजपा के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह दिखा ।

दरअसल, उत्तरप्रदेश इन दिनों बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है । अन्याय, अत्याचार, वंचितों पर हमले और उनकी बहू बेटियों के साथ दुराचार सहित हर वर्ग का हर तरह से उत्पीड़न हो रहा है । ऐसे मेें एक सशक्त विपक्ष और संघर्षशील नेता की बहुत आवश्यकता थी । सोनिया-राहुल की कांग्रेस में इस सरकार से लड़ने की इच्छाशक्ति की बेहद कमी देखी जा रही है । मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और उसके नेता पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं । आम आदमी उनके बारे में सोचता है तो गुंडाराज की याद करके हर जाता है । ऐसी स्थिति में एक सशक्त, संघर्षशील और विश्वसनीय विपक्ष की कमी को उमा भारती पूरा कर सकेंगी, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिये ।
प्रसंगवश यहाँ यह चर्चा करना अनुचित नहीं होगा कि पिछले एक दशक में भाजपा पहले से चैथे नम्बर पर खिसक गयी है 1999 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को अपने बूते 58 सीटें प्राप्त हुई थीं और उसके हिस्से में 33 प्रतिशत मत आए थे । इससे पूर्व 1991 के चुनाव मेें 220 विधनसभा सीटों के साथ पहली बार राज्य की सत्ता में आयी थी । 1993 और 1996 के विधानसभा चुनाव में उसके पास 178 सीटें थीं । गठबंधन के साथ वह कुल मिलाकर तीन बार सत्ता में रही। लेकिन धीरे-धीरे उसकी सीटें घटती चली गयी । उसके पास इस समय विधानसभा की मात्र 48 सीटें हैं और मात्र 19 प्रतिशत मत हैं । पिछले लोकसभा चुनाव में उसे मात्र 10 सीटें मिली थीं और सबसे कमजोर समझी जाने वाली कांग्रेस उसे पछाड़कर 22 सीटें ले गयी ।
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