सम्‍मान के लिए... अपमान!


जो महाराष्ट्र को राष्ट्र से ऊपर रखे, उसे राष्ट्रीय स्मान मिलना चाहिए? जो मराठी अस्मिता के नाम पर इलाके का बंटवारा करे और दूसरों को बीमारी बताए, मराठियों का हक खाने वाला करार दे, क्‍या उसके लिए झंडे झुकना चाहिए?जिसकी नजर में देश, संविधान, कानून और उसके उसूल कोई मायने नहीं रखते हों, जो धर्मनिरपेक्षता को ताक में रखकर सिर्फ नफरत की सियासत करता रहा हो, उसको राष्ट्रीय सम्‍मान मिलने पर अगर सवाल उठ रहे हैं तो उन्हें सुना जाना चाहिए, क्‍योंकि ठाकरे के ताबूत पर जिस तिरंगे को लपेटा गया, वो शहीदों के लिए है। उनके लिए है, जो सरहद पर जान देते हैं या फिर जो कानून को जिंदा रखने के लिए सड़क पर जिंदगी कुर्बान कर देते हैं। इनके अलावा झंडा उन्हें मिलता है, जो किसी ऐसे पद पर रहे हैं, जिससे देश चलाने में मदद मिलती हो या जिन्होंने देश को तरक्‍की दी हो। जिनके माथे पर अशोक चक्र लगा होता है या उस कुर्सी पर बैठते हैं, जो चक्र के नीचे रखी होती है, उनको इस तरह का सम्‍मान मिलता है, लेकिन बाला साहेब ऐसे किसी पद पर नहीं रहे और न ही उनके सफर से ऐसा कुछ मिलता है, जिससे देश को राह मिली हो, वो मजबूत बना हो। उन्होंने जोड़ने का काम नहीं किया। ठीक है ताकतवर नेता थे, चाबुक से सरकारों को नचाना जानते थे, उनमें दम था, जिसकी वजह से वो कभी अपने कहे से पलटे नहीं। जो कहा, कायम रहे और बतौर सेनापति भी उनकी ताकत को कुबूल किया जा सकता है, लेकिन जो किरदार राष्ट्रीय हस्ती बनाता है, वो उनमें शुरू से आखिर तक ढूंढना पड़ा।जिस कांग्रेस सरकार ने उन्हें स्मान दिया, उसी ने ताकत भी दी थी। जब लाल झंडे मुंबई पर छाए हुए थे, उसे दबाने के लिए ठाकरे का इस्तेमाल कांग्रेस ने किया और उसमें वो कामयाब रही। जितने भी कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने, सबसे उनके ताल्लुकात मजबूत रहे और जब-जब भी ठाकरे को ताकत की जरूरत पड़ी, कांग्रेस ने दिल खोलकर मदद की, क्‍योंकि उसे पता था, एक छोर से जब तक नफरत की सियासत नहीं होगी, उनकी धर्मनिरपेक्ष सियासत को दम नहीं मिलेगा, इसलिए उस कढ़ाई में लगातार घी डालते रहे और जब ठाकरे भाजपा के करीब गए, तब कहीं जाकर कांग्रेस ने डोर खींचना शुरू की और तभी उन्हें राज ठाकरे मिल गए। जो मदद बाल ठाकरे के लिए थी, वो राज को मिलने लगी। सरकार को हक है वो किसी को भी स्मान दे सकती है, लेकिन मौजूदा स्मान सरकार के सम्‍मान को कम कर रहा है।

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