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भारत का जन्म ही विश्व के कल्याण के लिए हुआ है....

भारत का जन्म ही विश्व के कल्याण के लिए हुआ हैः डॉ. भागवत

सांप्रदायिक तथा लक्षित हिंसा विरोधी विधेयक सिरे से खारिज करना चाहिये न कि केवल उसमें बदलाव लाना उचित रहेगा। संविधान, देशहित एवं समाज की एकता व सद्भाव का संरक्षण कर सभी के प्रति समान आत्मीयता की दृष्टि रखकर व न्यायसंवर्धन करनेवाला कार्यक्षम प्रशासन मिले, इस अपेक्षा से जनता के द्वारा चुनी गयी संसद व सरकार को इस प्रस्तावित कानून को सिरे से खारिज करते हुए किसी भी स्वरूप में आने ही नहीं देना चाहिये। उक्त विचार व्ययत करते हुए सरसंघचालक डॉ. भागवत ने देशविरोधी घृणित षड्यंत्रकारी मानसिकता वाले इस प्रस्तावित विधेयक की निंदा की।
नागपुर के रेशमबाग स्थित प्रांगण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर महानगर के विजया दशमी कार्यक्रम में उपस्थितों को वे संबोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि के रूप में प्रख्यात लेखक डॉ. नरेन्द्र कोहली उपस्थित थे। कार्यक्रम के प्रारंभ मे ध्वजारोहण के पश्चात मान्यवरों द्वारा शस्त्रपूजन किया गया तथा स्वयंसेवकों ने नियुद्ध, दंड-व्यायाम योग आदि का प्रदर्शन किया। नागपुर महानगर संघचालक डॉ. दिलीपजी गुप्ता ने कार्यक्रम की प्रस्तावना तथा आभार व्ययत किया । इस अवसर पर विदर्भ प्रान्त सहसंघचालक श्री राम हरकरे भी मंचासीन थे।
डॉ. भागवत ने अपने भाषण के प्रारंभ मे विजयादशमी पर्व के महत्व को प्रतिपादित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना तथा डॉ. आंबेडकर द्वारा किये गये धम्मचक्र प्रवर्तन की विशेषता का उल्लेख किया। उन्होंने भारत के वैश्विक दायित्व की बात बताते हुए कहा कि भारत का जन्म ही विश्व के कल्याण के लिए हुआ है। इसलिये हम भारतीयों का दायित्व और भी महत्वपूर्ण हो गया है। भारत के पडोसी देश नेपाल, श्रीलंका, तिब्बत आदि देशों मे रहनेवाले नागरिकों के हित की रक्षा करना भी हमारे लिये आवश्यक है। बांग्लादेश की सीमा पर अपनी सुरक्षा व्यवस्था पक्की हो, सीमायें सुरक्षित हों, घुसपैठ तथा शस्त्र, पशुधन, नकली नोट तथा नशीली दवाएं आदि की तस्करी बंद हो। इस संबंध में अपने तरफ से दृढतापूर्वक व्यवस्था करने की आवश्यकता है। हमारे संबंध वियतनाम जैसे देशों से अच्छे बनते हैं, तो इससे चीन को आपत्ति होती है।  उत्तरपूर्व भारत के उग्रवादियों से भी चीन के तार जुडे हैं।  ऐसी खबर गुप्तचर विभाग के पास है।  लेह-लद्दाख की भूमि में भारतीय सीमा के अंदर तक चीन की सैनिक घुसपैठ, भारतीय बंकर्स उद्ध्वस्त करना तथा अंतर्राष्ट्रीय सीमा संकेतों का उल्लंघन, भारतीय जलपोतों को धमकाना, भारत के तेल अन्वेषण को रोकना, यह चीन द्वारा हमें दी जानेवाली बडी चुनौती है । तथागत बुद्ध के समय से चली आ रही सांस्कृतिक संबंधों की परम्परा को  रखते हुए चीन के संबंध में सजगता बरतते हुए हमें अपने सामरिक बल व चैकसी को, सीमावर्ती यातायात व शीघ्र पहुंच के लिये आधारभूत ९ ढांचे का निर्माण करना आवश्यक है।
कश्मीर के संबंध में विचार रखते हुए डॉ. भागवत ने कहा, पाकिस्तान की शह पर जम्मू कश्मीर में उपद्रव किए जाते हैं। वास्तविकता तो यह है कि पाकिस्तान का सर्वोच्च न्यायालय भी पाकिस्तान के नियंत्रण रेखा के उस पार के कश्मीर काजम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान का अंग नहीं मानता। फिर भी पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में उपद्रव करने में लगा रहता है। इस आक्रमण के विरूद्ध मुखर बनाने की नीति केंद्र एवं राज्य के शासकों की होनी चाहिये। उत्तर-पूर्वांचल की समस्याओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि असम में अवैध घुसपैठ से उत्पन्न स्थिति को देखते हुए भी सरकार बांग्लादेश के साथ वार्ता में वहां के नागरिकों के दुख-दर्द को जाने व पूछे बिना भारत की जमीन बांग्लादेश को देने की तत्परता दिखाती हुई दिखायी देती है।
देश के गृहमंत्री द्वारा आतंकी गतिविधियों में नक्सली आतंकवाद को अधिक खतरनाक बताना विचित्र लगता है,ऐसा प्रतिपादित करते हुए डॉ. भागवत ने गृहमंत्री के दृष्टि, अध्ययन व संवेदना के अभाव को उजागर किया। देश की अर्थनीति के संबंध में उन्होंने कहा कि गरीब अधिक गरीब हो रहे हैं और हम अभी भी गरीब की परिभाषा पर विवाद करने में उलझे हैं। आम आदमी के विकास पर चिन्तन करने के बजाय पश्चिम के आर्थिक एवं असफल नीतियों का अंधानुकरण सरकार द्वारा किया जा रहा है।
वंदे मातरम् तथा भारतमाता के जयघोषों एवं चित्रों पर जिन्हें आपत्ति हो, उन्हें अपने साथ आंदोलन में शामिल करने की आवश्यकता नहीं है। इससे देश की सुरक्षा को संकट में लानेवाली शक्तियों का साहस और बढ़ सकता है। अतः आज राष्ट्र को इन विपरीत परिस्थितियों का प्रत्युत्तर देनेवाले सज्जनों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता हैं। उचित दृष्टि, उचित व्यवस्था तथा उचित बल से सज्जित सच्चरित्र व्ययितयों की मंडली स्थापित करने की आवश्यकता है। जब हम ऐसे आदर्श समाज की निर्माण करने में लग जायें तो हमारी विजय निश्चित है।
इसके पूर्व मुख्य अतिथि डॉ. नरेन्द्र कोहली ने अर्जुन के स्वजनासयित के कारण युद्ध से पलायन करने की वृत्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि हिंसा और अहिंसा की संकल्पना हमें स्पष्ट होनी चाहिये। महात्मा गांधी की अहिंसात्मक नीति और श्रीकृष्ण की युद्धनीति में साम्य है, यह भी हमें देखना चाहिये। जनता के प्रतिनिधि कौन है? सांप्रदायिकता और सेययुलॅरिझ्म का क्या अर्थ है, यह भी हमें समझना चाहिये। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतमाता ही जगदंबा है और जगदंबा की पूजा करना अर्थात भारतमाता के पुत्रों की सेवा करना है। इस अवसर पर नगर के गणमान्य नागरिक भारी संख्या में उपस्थित थे।

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